पवित्र बाइबिल - Hindi Holy Bible

अध्याय   1  2  3  4  5  6  7  8  9  10  11  12  13  14  15  16  17  18  19  20  

 अय्यूब - अध्याय 1

1 ऊज़ देश में अय्यूब नाम एक पुरुष था; वह खरा और सीधा था और परमेश्वर का भय मानता और बुराई से परे रहता था।

2 उसके सात बेटे और तीन बेटियां उत्पन्न हुई।

3 फिर उसके सात हजार भेड़-बकरियां, तीन हजार ऊंट, पांच सौ जोड़ी बैल, और पांच सौ गदहियां, और बहुत ही दास-दासियां थीं; वरन उसके इतनी सम्पत्ति थी, कि पूरबियों में वह सब से बड़ा था।

4 उसके बेटे उपने अपने दिन पर एक दूसरे के घर में खाने-पीने को जाया करते थे; और अपनी तीनों बहिनों को अपने संग खाने-पीने के लिये बुलवा भेजते थे।

5 और जब जब जेवनार के दिन पूरे हो जाते, तब तब अय्यूब उन्हें बुलवा कर पवित्र करता, और बड़ी भोर उठ कर उनकी गिनती के अनुसार होमबलि चढ़ाता था; क्योंकि अय्यूब सोचता था, कि कदाचित मेरे लड़कों ने पाप कर के परमेश्वर को छोड़ दिया हो। इसी रीति अय्यूब सदैव किया करता था।

6 एक दिन यहोवा परमेश्वर के पुत्र उसके साम्हने उपस्थित हुए, और उनके बीच शैतान भी आया।

7 यहोवा ने शैतान से पूछा, तू कहां से आता है? शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, कि पृथ्वी पर इधर-उधर घूमते-फिरते और डोलते-डालते आया हूँ।

8 यहोवा ने शैतान से पूछा, क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है? क्योंकि उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय मानने वाला और बुराई से दूर रहने वाला मनुष्य और कोई नहीं है।

9 शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, क्या अय्यूब परमेश्वर का भय बिना लाभ के मानता है?

10 क्या तू ने उसकी, और उसके घर की, और जो कुछ उसका है उसके चारों ओर बाड़ा नहीं बान्धा? तू ने तो उसके काम पर आशीष दी है,

11  और उसकी सम्पत्ति देश भर में फैल गई है। परन्तु अब अपना हाथ बढ़ाकर जो कुछ उसका है, उसे छू; तब वह तेरे मुंह पर तेरी निन्दा करेगा।

12 यहोवा ने शैतान से कहा, सुन, जो कुछ उसका है, वह सब तेरे हाथ में है; केवल उसके शरीर पर हाथ न लगाना। तब शैतान यहोवा के साम्हने से चला गया।

13 एक दिन अय्यूब के बेटे-बेटियां बड़े भाई के घर में खाते और दाखमधु पी रहे थे;

14 तब एक दूत अय्यूब के पास आकर कहने लगा, हम तो बैलों से हल जोत रहे थे, और गदहियां उनके पास चर रही थी,

15 कि शबा के लोग धावा कर के उन को ले गए, और तलवार से तेरे सेवकों को मार डाला; और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने को आया हूँ।

16 वह अभी यह कह ही रहा था कि दूसरा भी आकर कहने लगा, कि परमेश्वर की आग आकाश से गिरी और उस से भेड़-बकरियां और सेवक जलकर भस्म हो गए; और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने को आया हूँ।

17 वह अभी यह कह ही रहा था, कि एक और भी आकर कहने लगा, कि कसदी लोग तीन गोल बान्धकर ऊंटों पर धावा कर के उन्हें ले गए, और तलवार से तेरे सेवकों को मार डाला; और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने को आया हूँ।

18 वह अभी यह कह ही रहा था, कि एक और भी आकर कहने लगा, तेरे बेटे-बेटियां बड़े भाई के घर में खाते और दाखमधु पीते थे,

19 कि जंगल की ओर से बड़ी प्रचण्ड वायु चली, और घर के चारों कोनों को ऐसा झोंका मारा, कि वह जवानों पर गिर पड़ा और वे मर गए; और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने को आया हूँ।

20 तब अय्यूब उठा, और बागा फाड़, सिर मुंड़ाकर भूमि पर गिरा और दण्डवत् कर के कहा,

21 मैं अपनी मां के पेट से नंगा निकला और वहीं नंगा लौट जाऊंगा; यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है।

22 इन सब बातों में भी अय्यूब ने न तो पाप किया, और न परमेश्वर पर मूर्खता से दोष लगाया।

 अय्यूब - अध्याय 2

1 फिर एक और दिन यहोवा परमेश्वर के पुत्र उसके साम्हने उपस्थित हुए, और उनके बीच शैतान भी उसके साम्हने उपस्थित हुआ।

2 यहोवा ने शैतान से पूछा, तू कहां से आता है? शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, कि इधर-उधर घूमते-फिरते और डोलते-डालते आया हूँ।

3 यहोवा ने शैतान से पूछा, क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है कि पृथ्वी पर उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय मानने वाला और बुराई से दूर रहने वाला मनुष्य और कोई नहीं है? और यद्यापि तू ने मुझे उसको बिना कारण सत्यानाश करते को उभारा, तौभी वह अब तक अपनी खराई पर बना है।

4 शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, खाल के बदले खाल, परन्तु प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है।

5 सो केवल अपना हाथ बढ़ाकर उसकी हड्डियां और मांस छू, तब वह तेरे मुंह पर तेरी निन्दा करेगा।

6 यहोवा ने शैतान से कहा, सुन, वह तेरे हाथ में है, केवल उसका प्राण छोड़ देना।

7 तब शैतान यहोवा के साम्हने से निकला, और अय्यूब को पांव के तलवे से ले सिर की चोटी तक बड़े बड़े फोड़ों से पीड़ित किया।

8 तब अय्यूब खुजलाने के लिये एक ठीकरा ले कर राख पर बैठ गया।

9 तब उसकी स्त्री उस से कहने लगी, क्या तू अब भी अपनी खराई पर बना है? परमेश्वर की निन्दा कर, और चाहे मर जाए तो मर जा।

10 उसने उस से कहा, तू एक मूढ़ स्त्री की सी बातें करती है, क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दु:ख न लें? इन सब बातों में भी अय्यूब ने अपने मुंह से कोई पाप नहीं किया।

11 जब तेमानी एलीपज, और शूही बिलदद, और नामाती सोपर, अय्यूब के इन तीन मित्रों ने इस सब विपत्ति का समाचार पाया जो उस पर पड़ी थीं, तब वे आपस में यह ठान कर कि हम अय्यूब के पास जा कर उसके संग विलाप करेंगे, और उसको शान्ति देंगे, अपने अपने यहां से उसके पास चले।

12 जब उन्होंने दूर से आंख उठा कर अय्यूब को देखा और उसे न चीन्ह सके, तब चिल्लाकर रो उठे; और अपना अपना बागा फाड़ा, और आकाश की ओर धूलि उड़ाकर अपने अपने सिर पर डाली।

13 तब वे सात दिन और सात रात उसके संग भूमि पर बैठे रहे, परन्तु उसका दु:ख बहुत ही बड़ा जान कर किसी ने उस से एक भी बात न कही।

 अय्यूब - अध्याय 3

1 इसके बाद अय्यूब मुंह खोल कर अपने जन्मदिन को धिक्कारने

2 और कहने लगा,

3 वह दिन जल जाए जिस में मैं उत्पन्न हुआ, और वह रात भी जिस में कहा गया, कि बेटे का गर्भ रहा।

4 वह दिन अन्धियारा हो जाए! ऊपर से ईश्वर उसकी सुधि न ले, और न उस में प्रकाश होए।

5 अन्धियारा और मृत्यु की छाया उस पर रहे। बादल उस पर छाए रहें; और दिन को अन्धेरा कर देने वाली चीज़ें उसे डराएं।

6 घोर अन्धकार उस रात को पकड़े; वर्ष के दिनों के बीच वह आनन्द न करने पाए, और न महीनों में उसकी गिनती की जाए।

7 सुनो, वह रात बांझ हो जाए; उस में गाने का शब्द न सुन पड़े

8 जो लोग किसी दिन को धिक्कारते हैं, और लिब्यातान को छेड़ने में निपुण हैं, उसे धिक्कारें।

9 उसकी संध्या के तारे प्रकाश न दें; वह उजियाले की बाट जोहे पर वह उसे न मिले, वह भोर की पलकों को भी देखने न पाए;

10 क्योंकि उसने मेरी माता की कोख को बन्द न किया और कष्ट को मेरी दृष्टि से न छिपाया।

11 मैं गर्भ ही में क्यों न मर गया? पेट से निकलते ही मेरा प्राण क्यों न छूटा?

12 मैं घुटनों पर क्यों लिया गया? मैं छातियों को क्यों पीने पाया?

13 ऐसा न होता तो मैं चुपचाप पड़ा रहता, मैं सोता रहता और विश्राम करता,

14 और मैं पृथ्वी के उन राजाओं और मन्त्रियों के साथ होता जिन्होंने अपने लिये सुनसान स्थान बनवा लिए,

15 वा मैं उन राजकुमारों के साथ होता जिनके पास सोना था जिन्होंने अपने घरों को चान्दी से भर लिया था;

16 वा मैं असमय गिरे हुए गर्भ की नाईं हुआ होता, वा ऐसे बच्चों के समान होता जिन्होंने उजियाले को कभी देखा ही न हो।

17 उस दशा में दुष्ट लोग फिर दु:ख नहीं देते, और थके मांदे विश्राम पाते हैं।

18 उस में बन्धुए एक संग सुख से रहते हैं; और परिश्रम कराने वाले का शब्द नहीं सुनते।

19 उस में छोटे बड़े सब रहते हैं, और दास अपने स्वामी से स्वतन्त्र रहता है।

20 दु:खियों को उजियाला, और उदास मन वालों को जीवन क्यों दिया जाता है?

21 वे मृत्यु की बाट जोहते हैं पर वह आती नहीं; और गड़े हुए धन से अधिक उसकी खोज करते हैं;

22 वे क़ब्र को पहुंचकर आनन्दित और अत्यन्त मगन होते हैं।

23 उजियाला उस पुरुष को क्यों मिलता है जिसका मार्ग छिपा है, जिसके चारों ओर ईश्वर ने घेरा बान्ध दिया है?

24 मुझे तो रोटी खाने की सन्ती लम्बी लम्बी सांसें आती हैं, और मेरा विलाप धारा की नाईं बहता रहता है।

25 क्योंकि जिस डरावनी बात से मैं डरता हूँ, वही मुझ पर आ पड़ती है, और जिस बात से मैं भय खाता हूँ वही मुझ पर आ जाती है।

26 मुझे न तो चैन, न शान्ति, न विश्राम मिलता है; परन्तु दु:ख ही आता है।

 अय्यूब - अध्याय 4

1 तब तेमानी एलीपज ने कहा,

2 यदि कोई तुझ से कुछ कहने लगे, तो क्या तुझे बुरा लगेगा? परन्तु बोले बिना कौन रह सकता है?

3 सुन, तू ने बहुतों को शिक्षा दी है, और निर्बल लोगों को बलवन्त किया है।

4 गिरते हुओं को तू ने अपनी बातों से सम्भाल लिया, और लड़खड़ाते हुए लोगों को तू ने बलवन्त किया।

5 परन्तु अब विपत्ति तो तुझी पर आ पड़ी, और तू निराश हुआ जाता है; उसने तुझे छुआ और तू घबरा उठा।

6 क्या परमेश्वर का भय ही तेरा आसरा नहीं? और क्या तेरी चालचलन जो खरी है तेरी आशा नहीं?

7 क्या तुझे मालूम है कि कोई निर्दोष भी कभी नाश हुआ है? या कहीं सज्जन भी काट डाले गए?

8 मेरे देखने में तो जो पाप को जोतते और दु:ख बोते हैं, वही उसको काटते हैं।

9 वे तो ईश्वर की श्वास से नाश होते, और उसके क्रोध के झोंके से भस्म होते हैं।

10 सिंह का गरजना और हिंसक सिंह का दहाड़ना बन्द हो आता है। और जवान सिंहों के दांत तोड़े जाते हैं।

11 शिकार न पाकर बूढ़ा सिंह मर जाता है, और सिंहनी के बच्चे तितर बितर हो जाते हैं।

12 एक बात चुपके से मेरे पास पहुंचाई गई, और उसकी कुछ भनक मेरे कान में पड़ी।

13 रात के स्वप्नों की चिन्ताओं के बीच जब मनुष्य गहरी निद्रा में रहते हैं,

14 मुझे ऐसी थरथराहट और कंपकंपी लगी कि मेरी सब हड्डियां तक हिल उठीं।

15 तब एक आत्मा मेरे साम्हने से हो कर चली; और मेरी देह के रोएं खड़े हो गए।

16 वह चुपचाप ठहर गई और मैं उसकी आकृति को पहिचान न सका। परन्तु मेरी आंखों के साम्हने कोई रुप था; पहिले सन्नाटा छाया रहा, फिर मुझे एक शब्द सुन पड़ा,

17 क्या नाशमान मनुष्य ईश्वर से अधिक न्यायी होगा? क्या मनुष्य अपने सृजनहार से अधिक पवित्र हो सकता है?

18 देख, वह अपने सेवकों पर भरोसा नहीं रखता, और अपने स्वर्गदूतों को मूर्ख ठहराता है;

19 फिर जो मिट्टी के घरों में रहते हैं, और जिनकी नेव मिट्टी में डाली गई है, और जो पतंगे की नाईं पिस जाते हैं, उनकी क्या गणना।

20 वे भोर से सांझ तक नाश किए जाते हैं, वे सदा के लिये मिट जाते हैं, और कोई उनका विचार भी नहीं करता।

21 क्या उनके डेरे की डोरी उनके अन्दर ही अन्दर नहीं कट जाती? वे बिना बुद्धि के ही मर जाते हैं!

 अय्यूब - अध्याय 5

1 पुकार कर देख; क्या कोई है जो तुझे उत्तर देगा? और पवित्रों में से तू किस की ओर फिरेगा?

2 क्योंकि मूढ़ तो खेद करते करते नाश हो जाता है, और भोला जलते जलते मर मिटता है।

3 मैं ने मूढ़ को जड़ पकड़ते देखा है; परन्तु अचानक मैं ने उसके वासस्थान को धिक्कारा।

4 उसके लड़के-बाले उद्धार से दूर हैं, और वे फाटक में पीसे जाते हैं, और कोई नहीं है जो उन्हें छुड़ाए।

5 उसके खेत की उपज भूखे लोग खा लेते हैं, वरन कटीली बाड़ में से भी निकाल लेते हैं; और प्यासा उनके धन के लिये फन्दा लगाता है।

6 क्योंकि विपत्ति धूल से उत्पन्न नहीं होती, और न कष्ट भूमि में से उगता है;

7 परन्तु जैसे चिंगारियां ऊपर ही ऊपर को उड़ जाती हैं,वैसे ही मनुष्य कष्ट ही भोगने के लिये उत्पन्न हुआ है।

8 परन्तु मैं तो ईश्वर ही को खोजता रहूंगा और अपना मुक़द्दमा परमेश्वर पर छोड़ दूंगा।

9 वह तो एसे बड़े काम करता है जिनकी थाह नहीं लगती, और इतने आश्चर्यकर्म करता है, जो गिने नहीं जाते।

10 वही पृथ्वी के ऊपर वर्षा करता, और खेतों पर जल बरसाता है।

11 इसी रीति वह नम्र लोगों को ऊंचे स्थान पर बिठाता है, और शोक का पहिरावा पहिने हुए लोग ऊंचे पर पहुँचकर बचते हैं।

12 वह तो धूर्त्त लोगों की कल्पनाएं व्यर्थ कर देता है, और उनके हाथों से कुछ भी बन नहीं पड़ता।

13 वह बुद्धिमानों को उनकी धूर्त्तता ही में फंसाता है; और कुटिल लोगों की युक्ति दूर की जाती है।

14 उन पर दिन को अन्धेरा छा जाता है, और दिन दुपहरी में वे रात की नाईं टटोलते फिरते हैं।

15 परन्तु वह दरिद्रों को उनके वचनरुपी तलवार से और बलवानों के हाथ से बचाता है।

16 इसलिये कंगालों को आशा होती है, और कुटिल मनुष्यों का मुंह बन्द हो जाता है।

17 देख, क्या ही धन्य वह मनुष्य, जिस को ईश्वर ताड़ना देता है; इसलिये तू सर्वशक्तिमान की ताड़ना को तुच्छ मत जान।

18 क्योंकि वही घायल करता, और वही पट्टी भी बान्धता है; वही मारता है, और वही अपने हाथों से चंगा भी करता है।

19 वह तुझे छ: विपत्तियों से छुड़ाएगा; वरन सात से भी तेरी कुछ हानि न होने पाएगी।

20 अकाल में वह तुझे मुत्यु से, और युद्ध में तलवार की धार से बचा लेगा।

21 तू वचनरूपी कोड़े से बचा रहेगा और जब विनाश आए, तब भी तुझे भय न होगा।

22 तू उजाड़ और अकाल के दिनों में हँसमुख रहेगा, और तुझे बनैले जन्तुओं से डर न लगेगा।

23 वरन मैदान के पत्थर भी तुझ से वाचा बान्धे रहेंगे, और वनपशु तुझ से मेल रखेंगे।

24 और तुझे निश्चय होगा, कि तेरा डेरा कुशल से है, और जब तू अपने निवास में देखे तब कोई वस्तु खोई न होगी।

25 तुझे यह भी निश्चित होगा, कि मेरे बहुत वंश होंगे। और मेरे सन्तान पृथ्वी की घास के तुल्य बहुत होंगे।

26 जैसे पूलियों का ढेर समय पर खलिहान में रखा जाता है, वैसे ही तू पूरी अवस्था का हो कर क़ब्र को पहुंचेगा।

27 देख, हम ने खोज खोजकर ऐसा ही पाया है; इसे तू सुन, और अपने लाभ के लिये ध्यान में रख।

 अय्यूब - अध्याय 6

1 फिर अय्यूब ने कहा,

2 भला होता कि मेरा खेद तौला जाता, और मेरी सारी विपत्ति तुला में धरी जाती!

3 क्योंकि वह समुद्र की बालू से भी भारी ठहरती; इसी कारण मेरी बातें उतावली से हूई हैं।

4 क्योंकि सर्वशक्तिमान के तीर मेरे अन्दर चुभे हैं; और उनका विष मेरी आत्मा में पैठ गया है; ईश्वर की भयंकर बात मेरे विरुद्ध पांति बान्धे है।

5 जब बनैले गदहे को घास मिलती, तब क्या वह रेंकता है? और बैल चारा पाकर क्या डकारता है?

6 जो फीका है वह क्या बिना नमक खाया जाता है? क्या अण्डे की सफेदी में भी कुछ स्वाद होता है?

7 जिन वस्तुओं को मैं छूना भी नहीं चाहता वही मानो मेरे लिये घिनौना आहार ठहरी हैं।

8 भला होता कि मुझे मुंह मांगा वर मिलता और जिस बात की मैं आशा करता हूँ वह ईश्वर मुझे दे देता!

9 कि ईश्वर प्रसन्न हो कर मुझे कुचल डालता, और हाथ बढ़ा कर मुझे काट डालता!

10 यही मेरी शान्ति का कारण; वरन भारी पीड़ा में भी मैं इस कारण से उछल पड़ता; क्योंकि मैं ने उस पवित्र के वचनों का कभी इनकार नहीं किया।

11 मुझ में बल ही क्या है कि मैं आशा रखूं? और मेरा अन्त ही क्या होगा, कि मैं धीरज धरूं?

12 क्या मेरी दृढ़ता पत्थरों की सी है? क्या मेरा शरीर पीतल का है?

13 क्या मैं निराधार नहीं हूँ? क्या काम करने की शक्ति मुझ से दूर नहीं हो गई?

14 जो पड़ोसी पर कृपा नहीं करता वह सर्वशक्तिमान का भय मानना छोड़ देता है।

15 मेरे भाई नाले के समान विश्वासघाती हो गए हैं, वरन उन नालों के समान जिनकी धार सूख जाती है;

16 और वे बरफ के कारण काले से हो जाते हैं, और उन में हिम छिपा रहता है।

17 परन्तु जब गरमी होने लगती तब उनकी धाराएं लोप हो जाती हैं, और जब कड़ी धूप पड़ती है तब वे अपनी जगह से उड़ जाते हैं

18 वे घूमते घूमते सूख जातीं, और सुनसान स्थान में बहकर नाश होती हैं।

19 तेमा के बनजारे देखते रहे और शबा के काफिले वालों ने उनका रास्ता देखा।

20 वे लज्जित हुए क्योंकि उन्होंने भरोसा रखा था और वहां पहुँचकर उनके मुंह सूख गए।

21 उसी प्रकार अब तुम भी कुछ न रहे; मेरी विपत्ति देखकर तुम डर गए हो।

22 क्या मैं ने तुम से कहा था, कि मुझे कुछ दो? वा अपनी सम्पत्ति में से मेरे लिये घूस दो?

23 वा मुझे सताने वाले के हाथ से बचाओ? वा उपद्रव करने वालों के वश से छुड़ा लो?

24 मुझे शिक्षा दो और मैं चुप रहूंगा; और मुझे समझाओ, कि मैं ने किस बान में चूक की है।

25 सच्चाई के वचनों में कितना प्रभाव होता है, परन्तु तुम्हारे विवाद से क्या लाभ होता है?

26 क्या तुम बातें पकड़ने की कल्पना करते हो? निराश जन की बातें तो वायु की सी हैं।

27 तुम अनाथों पर चिट्ठी डालते, और अपने मित्र को बेचकर लाभ उठाने वाले हो।

28 इसलिये अब कृपा कर के मुझे देखो; निश्चय मैं तुम्हारे साम्हने कदापि झूठ न बोलूंगा।

29 फिर कुछ अन्याय न होने पाए; फिर इस मुक़द्दमे में मेरा धर्म ज्यों का त्यों बना है, मैं सत्य पर हूँ।

30 क्या मेरे वचनों में कुछ कुटिलता है? क्या मैं दुष्टता नहीं पहचान सकता?

 अय्यूब - अध्याय 7

1 क्या मनुष्य को पृथ्वी पर कठिन सेवा करनी नहीं पड़ती? क्या उसके दिन मजदूर के से नहीं होते?

2 जैसा कोई दास छाया की अभिलाषा करे, वा मजदूर अपनी मजदूरी की आशा रखे;

3 वैसा ही मैं अनर्थ के महीनों का स्वामी बनाया गया हूँ, और मेरे लिये क्लेश से भरी रातें ठहराई गई हैं।

4 जब मैं लेट लाता, तब कहता हूँ, मैं कब उठूंगा? और रात कब बीतेगी? और पौ फटने तक छटपटाते छटपटाते उकता जाता हूँ।

5 मेरी देह कीड़ों और मिट्टी के ढेलों से ढकी हुई है; मेरा चमड़ा सिमट जाता, और फिर गल जाता है।

6 मेरे दिन जुलाहे की धड़की से अधिक फुतीं से चलने वाले हैं और निराशा में बीते जाते हैं।

7 याद कर कि मेरा जीवन वायु ही है; और मैं अपनी आंखों से कल्याण फिर न देखूंगा।

8 जो मुझे अब देखता है उसे मैं फिर दिखाई न दूंगा; तेरी आंखें मेरी ओर होंगी परन्तु मैं न मिलूंगा।

9 जैसे बादल छटकर लोप हो जाता है, वैसे ही अधोलोक में उतरने वाला फिर वहां से नहीं लौट सकता;

10 वह अपने घर को फिर लौट न आएगा, और न अपने स्थान में फिर मिलेगा।

11 इसलिये मैं अपना मुंह बन्द न रखूंगा; अपने मन का खेद खोल कर कहूंगा; और अपने जीव की कड़ुवाहट के कारण कुड़कुड़ाता रहूंगा।

12 क्या मैं समुद्र हूँ, वा मगरमच्छ हूँ, कि तू मुझ पर पहरा बैठाता है?

13 जब जब मैं सोचता हूं कि मुझे खाट पर शान्ति मिलेगी, और बिछौने पर मेरा खेद कुछ हलका होगा;

14 तब तब तू मुझे स्वप्नों से घबरा देता, और दर्शनों से भयभीत कर देता है;

15 यहां तक कि मेरा जी फांसी को, और जीवन से मृत्यु को अधिक चाहता है।

16 मुझे अपने जीवन से घृणा आती है; मैं सर्वदा जीवित रहना नहीं चाहता। मेरा जीवनकाल सांस सा है, इसलिये मुझे छोड़ दे।

17 मनुष्य क्या है, कि तू उसे महत्व दे, और अपना मन उस पर लगाए,

18 और प्रति भोर को उसकी सुधि ले, और प्रति क्षण उसे जांचता रहे?

19 तू कब तक मेरी ओर आंख लगाए रहेगा, और इतनी देर के लिये भी मुझे न छोड़ेगा कि मैं अपना थूक निगल लूं?

20 हे मनुष्यों के ताकने वाले, मैं ने पाप तो किया होगा, तो मैं ने तेरा क्या बिगाड़ा? तू ने क्यों मुझ को अपना निशाना बना लिया है, यहां तक कि मैं अपने ऊपर आप ही बोझ हुआ हूँ?

21 और तू क्यों मेरा अपराध क्षमा नहीं करता? और मेरा अधर्म क्यों दूर नहीं करता? अब तो मैं मिट्टी में सो जाऊंगा, और तू मुझे यत्न से ढूंढ़ेगा पर मेरा पता नहीं मिलेगा।

 अय्यूब - अध्याय 8

1 तब शूही बिलदद ने कहा,

2 तू कब तक ऐसी ऐसी बातें करता रहेगा? और तेरे मुंह की बातें कब तक प्रचण्ड वायु सी रहेंगी?

3 क्या ईश्वर अन्याय करता है? और क्या सर्वशक्तिमान धर्म को उलटा करता है?

4 यदि तेरे लड़के-बालों ने उसके विरुद्ध पाप किया है, तो उसने उन को उनके अपराध का फल भुगताया है।

5 तौभी यदि तू आप ईश्वर को यत्न से ढूंढ़ता, और सर्वशक्तिमान से गिड़गिड़ाकर बिनती करता,

6 और यदि तू निर्मल और धमीं रहता, तो निश्चय वह तेरे लिये जागता; और तेरी धमिर्कता का निवास फिर ज्यों का त्यों कर देता।

7 चाहे तेरा भाग पहिले छोटा ही रहा हो परन्तु अन्त में तेरी बहुत बढती होती।

8 अगली पीढ़ी के लोगों से तो पूछ, और जो कुछ उनके पुरखाओं ने जांच पड़ताल की है उस पर ध्यान दे।

9 क्योंकि हम तो कल ही के हैं, और कुछ नहीं जानते; और पृथ्वी पर हमारे दिन छाया की नाईं बीतते जाते हैं।

10 क्या वे लोग तुझ से शिक्षा की बातें न कहेंगे? क्या वे अपने मन से बात न निकालेंगे?

11 क्या कछार की घास पानी बिना बढ़ सकती है? क्या सरकणडा कीच बिना बढ़ता है?

12 चाहे वह हरी हो, और काटी भी न गई हो, तौभी वह और सब भांति की घास से पहिले ही सूख जाती है।

13 ईश्वर के सब बिसराने वालों की गति ऐसी ही होती है और भक्तिहीन की आशा टूट जाती है।

14 उसकी आश का मूल कट जाता है; और जिसका वह भरोसा करता है, वह मकड़ी का जाला ठहराता है।

15 चाहे वह अपने घर पर टेक लगाए परन्तु वह न ठहरेगा; वह उसे दृढ़ता से थांभेगा परन्तु वह स्थिर न रहेगा।

16 वह घाम पाकर हरा भरा हो जाता है, और उसकी डालियां बगीचे में चारों ओर फैलती हैं।

17 उसकी जड़ कंकरों के ढेर में लिपटी हुई रहती है, और वह पत्थर के स्थान को देख लेता है।

18 परन्तु जब वह अपने स्थान पर से नाश किया जाए, तब वह स्थान उस से यह कह कर मुंह मोड़ लेगा कि मैं ने उसे कभी देखा ही नहीं।

19 देख, उसकी आनन्द भरी चाल यही है; फिर उसी मिट्टी में से दूसरे उगेंगे।

20 देख, ईश्वर न तो खरे मनुष्य को निकम्मा जान कर छोड़ देता है, और न बुराई करने वालों को संभालता है।

21 वह तो तुझे हंसमुख करेगा; और तुझ से जयजयकार कराएगा।

22 तेरे बैरी लज्जा का वस्त्र पहिनेंगे, और दुष्टों का डेरा कहीं रहने न पाएगा।

 अय्यूब - अध्याय 9

1 तब अय्यूब ने कहा,

2 मैं निश्चय जानता हूं, कि बात ऐसी ही है; परन्तु मनुष्य ईश्वर की दृष्टि में क्योंकर धमीं ठहर सकता है?

3 चाहे वह उस से मुक़द्दमा लड़ना भी चाहे तौभी मनुष्य हजार बातों में से एक का भी उत्तर न दे सकेगा।

4 वह बुद्धिमान और अति सामथीं है: उसके विरोध में हठ कर के कौन कभी प्रबल हुआ है?

5 वह तो पर्वतों को अचानक हटा देता है और उन्हें पता भी नहीं लगता, वह क्रोध में आकर उन्हें उलट पुलट कर देता है।

6 वह पृथ्वी को हिला कर उसके स्थान से अलग करता है, और उसके खम्भे कांपने लगते हैं।

7 उसकी आज्ञा बिना सूर्य उदय होता ही नहीं; और वह तारों पर मुहर लगाता है;

8 वह आकाशमण्डल को अकेला ही फैलाता है, और समुद्र की ऊंची ऊंची लहरों पर चलता है;

9 वह सप्तर्षि, मृगशिरा और कचपचिया और दक्खिन के नक्षत्रों का बनाने वाला है।

10 वह तो ऐसे बड़े कर्म करता है, जिनकी थाह नहीं लगती; और इतने आश्चर्यकर्म करता है, जो गिने नहीं जा सकते।

11 देखो, वह मेरे साम्हने से हो कर तो चलता है परन्तु मुझ को नहीं दिखाई पड़ता; और आगे को बढ़ जाता है, परन्तु मुझे सूझ ही नहीं पड़ता है।

12 देखो, जब वह छीनने लगे, तब उसको कौन रोकेगा? कौन उस से कह सकता है कि तू यह क्या करता है?

13 ईश्वर अपना क्रोध ठंडा नहीं करता। अभिमानी के सहायकों को उसके पांव तले झुकना पड़ता है।

14 फिर मैं क्या हूं, जो उसे उत्तर दूं, और बातें छांट छांटकर उस से विवाद करूं?

15 चाहे मैं निर्दोष भी होता परन्तु उसको उत्तर न दे सकता; मैं अपने मुद्दई से गिड़गिड़ाकर बिनती करता।

16 चाहे मेरे पुकारने से वह उत्तर भी देता, तौभी मैं इस बात की प्रतीति न करता, कि वह मेरी बात सुनता है।

17 वह तो आंधी चला कर मुझे तोड़ डालता है, और बिना कारण मेरे चोट पर चोट लगाता है।

18 वह मुझे सांस भी लेने नहीं देता है, और मुझे कड़वाहट से भरता है।

19 जो सामर्थ्य की चर्चा हो, तो देखो, वह बलवान है: और यदि न्याय की चर्चा हो, तो वह कहेगा मुझ से कौन मुक़द्दमा लड़ेगा?

20 चाहे मैं निर्दोष ही क्यों न हूँ, परन्तु अपने ही मुंह से दोषी ठहरूंगा; खरा होने पर भी वह मुझे कुटिल ठहराएगा।

21 मैं खरा तो हूँ, परन्तु अपना भेद नहीं जानता; अपने जीवन से मुझे घृण आती है।

22 बात तो एक ही है, इस से मैं यह कहता हूँ कि ईश्वर खरे और दुष्ट दोनों को नाश करता है।

23 जब लोग विपत्ति से अचानक मरने लगते हैं तब वह निर्दोष लोगों के जांचे जाने पर हंसता है।

24 देश दुष्टों के हाथ में दिया गया है। वह उसके न्यायियों की आंखों को मून्द देता है; इसका करने वाला वही न हो तो कौन है?

25 मेरे दिन हरकारे से भी अधिक वेग से चले जाते हैं; वे भागे जाते हैं और उन को कल्याण कुछ भी दिखाई नहीं देता।

26 वे वेग चाल से नावों की नाईं चले जाते हैं, वा अहेर पर झपटते हुए उक़ाब की नाईं।

27 जो मैं कहूं, कि विलाप करना फूल जाऊंगा, और उदासी छोड़कर अपना मन प्रफुल्लित कर दूंगा,

28 तब मैं अपने सब दुखों से डरता हूँ। मैं तो जानता हूँ, कि तू मुझे निर्दोष न ठहराएगा।

29 मैं तो दोषी ठहरूंगा; फिर व्यर्थ क्यों परिश्रम करूं?

30 चाहे मैं हिम के जल में स्नान करूं, और अपने हाथ खार से निर्मल करूं,

31 तौभी तू मुझे गड़हे में डाल ही देगा, और मेरे वस्त्र भी मुझ से घिनाएंगे।

32 क्योंकि वह मेरे तुल्य मनुष्य नहीं है कि मैं उस से वादविवाद कर सकूं, और हम दोनों एक दूसरे से मुक़द्दमा लड़ सकें।

33 हम दोनों के बीच कोई बिचवई नहीं है, जो हम दोंनों पर अपना हाथ रखे। वह अपना सोंटा मुझ पर से दूर करे

34  और उसकी भय देनेवाली बात मुझे न घबराए।

35 तब मैं उस से निडर हो कर कुछ कह सकूंगा, क्योंकि मैं अपनी दृष्टि में ऐसा नहीं हूँ।

 अय्यूब - अध्याय 10

1 मेरा प्राण जीवित रहने से उकताता है; मैं स्वतंत्रता पूर्वक कुड़कुड़ाऊंगा; और मैं अपने मन की कड़वाहट के मारे बातें करूंगा।

2 मैं ईश्वर से कहूंगा, मुझे दोषी न ठहरा; मुझे बता दे, कि तू किस कारण मुझ से मुक़द्दमा लड़ता है?

3 क्या तुझे अन्धेर करना, और दुष्टों की युक्ति को सफल कर के अपने हाथों के बनाए हुए को निकम्मा जानना भला लगता है?

4 क्या तेरी देहधारियों की सी आंखें है? और क्या तेरा देखना मनुष्य का सा है?

5 क्या तेरे दिन मनुष्य के दिन के समान हैं, वा तेरे वर्ष पुरुष के समयों के तुल्य हैं,

6 कि तू मेरा अधर्म ढूंढ़ता, और मेरा पाप पूछता है?

7 तुझे तो मालूम ही है, कि मैं दुष्ट नहीं हूँ, और तेरे हाथ से कोई छुड़ाने वाला नहीं!

8 तू ने अपने हाथों से मुझे ठीक रचा है और जोड़कर बनाया है; तौभी मुझे नाश किए डालता है।

9 स्मरण कर, कि तू ने मुझ को गून्धी हुई मिट्टी की नाईं बनाया, क्या तू मुझे फिर धूल में मिलाएगा?

10 क्या तू ने मुझे दूध की नाईं उंडेलकर, और दही के समान जमाकर नहीं बनाया?

11 फिर तू ने मुझ पर चमड़ा और मांस चढ़ाया और हड्डियां और नसें गूंथकर मुझे बनाया है।

12 तू ने मुझे जीवन दिया, और मुझ पर करुणा की है; और तेरी चौकसी से मेरे प्राण की रक्षा हई है।

13 तौभी तू ने ऐसी बातों को अपने मन में छिपा रखा; मैं तो जान गया, कि तू ने ऐसा ही करने को ठाना था।

14 जो मैं पाप करूं, तो तू उसका लेखा लेगा; और अधर्म करने पर मुझे निर्दोष न ठहराएगा।

15 जो मैं दुष्टता करूं तो मुझ पर हाय! और जो मैं धमीं बनूं तौभी मैं सिर न उठाऊंगा, क्योंकि मैं अपमान से भरा हुआ हूं और अपने दु:ख पर ध्यान रखता हूँ।

16 और चाहे सिर उठाऊं तौभी तू सिंह की नाईं मेरा अहेर करता है, और फिर मेरे विरुद्ध आश्चर्यकर्म करता है।

17 तू मेरे साम्हने अपने नये नये साक्षी ले आता है, और मुझ पर अपना क्रोध बढ़ाता है; और मुझ पर सेना पर सेना चढ़ाई करती है।

18 तू ने मुझे गर्भ से क्यों निकाला? नहीं तो मैं वहीं प्राण छोड़ता, और कोई मुझे देखने भी न पाता।

19 मेरा होना न होने के समान होता, और पेट ही से क़ब्र को पहुंचाया जाता।

20 क्या मेरे दिन थोड़े नहीं? मुझे छोड़ दे, और मेरी ओर से मुंह फेर ले, कि मेरा मन थोड़ा शान्त हो जाए

21 इस से पहिले कि मैं वहां जाऊं, जहां से फिर न लौटूंगा, अर्थात अन्धियारे और घोर अन्धकार के देश में, जहां अन्धकार ही अन्धकार है;

22 और मृत्यु के अन्धकार का देश जिस में सब कुछ गड़बड़ है; और जहां प्रकाश भी ऐसा है जैसा अन्धकार।

 अय्यूब - अध्याय 11

1 तब नामाती सोपर ने कहा:

2 बहुत सी बातें जो कही गई हैं, क्या उनका उत्तर देना न चाहिये? क्या बकवादी मनुष्य धमीं ठहराया जाए?

3 क्या तेरे बड़े बोल के कारण लोग चुप रहें? और जब तू ठट्ठा करता है, तो क्या कोई तुझे लज्जित न करे?

4 तू तो यह कहता है कि मेरा सिद्धान्त शुद्ध है और मैं ईश्वर की दृष्टि में पवित्र हूँ।

5 परन्तु भला हो, कि ईश्वर स्वयं बातें करें, और तेरे विरुद्ध मुंह खोले,

6 और तुझ पर बुद्धि की गुप्त बातें प्रगट करे, कि उनका मर्म तेरी बुद्धि से बढ़कर है। इसलिये जान ले, कि ईश्वर तेरे अधर्म में से बहुत कुछ भूल जाता है।

7 क्या तू ईश्वर का गूढ़ भेद पा सकता है? और क्या तू सर्वशक्तिमान का मर्म पूरी रीति से जांच सकता है?

8 वह आकाश सा ऊंचा है; तू क्या कर सकता है? वह अधोलोक से गहिरा है, तू कहां समझ सकता है?

9 उसकी माप पृथ्वी से भी लम्बी है और समुद्र से चौड़ी है।

10 जब ईश्वर बीच से गुजरकर बन्द कर दे और अदालत (कचहरी) में बुलाए, तो कौन उसको रोक सकता है।

11 क्योंकि वह पाखण्डी मनुष्यों का भेद जानता है, और अनर्थ काम को बिना सोच विचार किए भी जान लेता है।

12 परन्तु मनुष्य छूछा और निर्बुद्धि होता है; क्योंकि मनुष्य जन्म ही से जंगली गदहे के बच्चे के समान होता है।

13 यदि तू अपना मन शुद्ध करे, और ईश्वर की ओर अपने हाथ फैलाए,

14 और जो कोई अनर्थ काम तुझ से होता हो उसे दूर करे, और अपने डेरों में कोई कुटिलता न रहने दे,

15 तब तो तू निश्चय अपना मुंह निष्कलंक दिखा सकेगा; और तू स्थिर हो कर कभी न डरेगा।

16 तब तू अपना दु:ख भूल जाएगा, तू उसे उस पानी के समान स्मरण करेगा जो बह गया हो।

17 और तेरा जीवन दोपहर से भी अधिक प्रकाशमान होगा; और चाहे अन्धेरा भी हो तौभी वह भोर सा हो जाएगा।

18 और तुझे आशा होगी, इस कारण तू निर्भय रहेगा; और अपने चारों ओर देख देखकर तू निर्भय विश्राम कर सकेगा।

19 और जब तू लेटेगा, तब कोई तुझे डराएगा नहीं; और बहुतेरे तुझे प्रसन्न करने का यत्न करेंगे।

20 परन्तु दुष्ट लोगों की आंखें रह जाएंगी, और उन्हें कोई शरुण स्थान न मिलेगा और उनकी आशा यही होगी कि प्राण निकल जाए।

 अय्यूब - अध्याय 12

1 तब अय्यूब ने कहा;

2 नि:सन्देह मनुष्य तो तुम ही हो और जब तुम मरोगे तब बुद्धि भी जाती रहेगी।

3 परन्तु तुम्हारी नाईं मुझ में भी समझ है, मैं तुम लोगों से कुछ नीचा नहीं हूँ कौन ऐसा है जो ऐसी बातें न जानता हो?

4 मैं ईश्वर से प्रार्थना करता था, और वह मेरी सुन लिया करता था; परन्तु अब मेरे पड़ोसी मुझ पर हंसते हैं; जो धमीं और खरा मनुष्य है, वह हंसी का कारण हो गया है।

5 दु:खी लोग तो सुखियों की समझ में तुच्छ जाने जाते हैं; और जिनके पांव फिसला चाहते हैं उनका अपमान अवश्य ही होता है।

6 डाकुओं के डेरे कुशल क्षेम से रहते हैं, और जो ईश्वर को क्रोध दिलाते हैं, वह बहुत ही निडर रहते हैं; और उनके हाथ में ईश्वर बहुत देता है।

7 पशुओं से तो पूछ और वे तुझे दिखाएंगे; और आकाश के पक्षियों से, और वे तुझे बता देंगे।

8 पृथ्वी पर ध्यान दे, तब उस से तुझे शिक्षा मिलेगी; ओर समुद्र की मछलियां भी तुझ से वर्णन करेंगी।

9 कौन इन बातों को नहीं जानता, कि यहोवा ही ने अपने हाथ से इस संसार को बनाया है।

10 उसके हाथ में एक एक जीवधारी का प्राण, और एक एक देहधारी मनुष्य की आत्मा भी रहती है।

11 जैसे जीभ से भोजन चखा जाता है, क्या वैसे ही कान से वचन नहीं परखे जाते?

12 बूढ़ों में बुद्धि पाई जाती है, और लम्बी आयु वालों में समझ होती तो है।

13 ईश्वर में पूरी बुद्धि और पराक्रम पाए जाते हैं; युक्ति और समझ उसी में हैं।

14 देखो, जिस को वह ढा दे, वह फिर बनाया नहीं जाता; जिस मनुष्य को वह बन्द करे, वह फिर खोला नहीं जाता।

15 देखो, जब वह वर्षा को रोक रखता है तो जल सूख जाता है; फिर जब वह जल छोड़ देता है तब पृथ्वी उलट जाती है।

16 उस में सामर्थ्य और खरी बुद्धि पाई जाती है; धोख देने वाला और धोखा खाने वाला दोनों उसी के हैं।

17 वह मंत्रियों को लूटकर बन्धुआई में ले जाता, और न्यायियों को मूर्ख बना देता है।

18 वह राजाओं का अधिकार तोड़ देता है; और उनकी कमर पर बन्धन बन्धवाता है।

19 वह याजकों को लूटकर बन्धुआई में ले जाता और सामर्थियों को उलट देता है।

20 वह विश्वासयोग्य पुरुषों से बोलने की शक्ति और पुरनियों से विवेक की शक्ति हर लेता है।

21 वह हाकिमों को अपमान से लादता, और बलवानों के हाथ ढीले कर देता है।

22 वह अन्धियारे की गहरी बातें प्रगट करता, और मृत्यु की छाया को भी प्रकाश में ले आता है।

23 वह जातियों को बढ़ाता, और उन को नाश करता है; वह उन को फैलाता, और बन्धुआई में ले जाता है।

24 वह पृथ्वी के मुख्य लोगों की बुद्धि उड़ा देता, और उन को निर्जन स्थानों में जहां रास्ता नहीं है, भटकाता है।

25 वे बिन उजियाले के अन्धेरे में टटोलते फिरते हैं; और वह उन्हें ऐसा बना देता है कि वे मतवाले की नाईं डगमगाते हुए चलते हैं।

 अय्यूब - अध्याय 13

1 सुनो, मैं यह सब कुछ अपनी आंख से देख चुका, और अपने कान से सुन चुका, और समझ भी चुका हूँ।

2 जो कुछ तुम जानते हो वह मैं भी जानता हूँ; मैं तुम लोगों से कुछ कम नहीं हूँ।

3 मैं तो सर्वशक्तिमान से बातें करूंगा, और मेरी अभिलाषा ईश्वर से वादविवाद करने की है।

4 परन्तु तुम लोग झूठी बात के गढ़ने वाले हो; तुम सबके सब निकम्मे वैद्य हो।

5 भला होता, कि तुम बिलकुल चुप रहते, और इस से तुम बुद्धिमान ठहरते।

6 मेरा विवाद सुनो, और मेरी बहस की बातों पर कान लगाओ।

7 क्या तुम ईश्वर के निमित्त टेढ़ी बातें कहोगे, और उसके पक्ष में कपट से बोलोगे?

8 क्या तुम उसका पक्षपात करोगे? और ईश्वर के लिये मुकद्दमा चलाओगे।

9 क्या यह भला होगा, कि वह तुम को जांचे? क्या जैसा कोई मनुष्य को धोखा दे, वैसा ही तुम क्या उसको भी धेखा दोगे?

10 जो तुम छिपकर पक्षपात करो, तो वह निश्चय तुम को डांटेगा।

11 क्या तुम उसके माहात्म्य से भय न खाओगे? क्या उसका डर तुम्हारे मन में न समाएगा?

12 तुम्हारे स्मरणयोग्य नीतिवचन राख के समान हैं; तुम्हारे कोट मिट्टी ही के ठहरे हैं:

13 मुझ से बात करना छोड़ो, कि मैं भी कुछ कहने पाऊं; फिर मुझ पर जो चाहे वह आ पड़े।

14 मैं क्यों अपना मांस अपने दांतों से चबाऊं? और क्यों अपना प्राण हथेली पर रखूं?

15 वह मुझे घात करेगा, मुझे कुछ आशा नहीं; तौभी मैं अपनी चाल चलन का पक्ष लूंगा।

16 और यह भी मेरे बचाव का कारण होगा, कि भक्तिहीन जन उसके साम्हने नहीं जा सकता।

17 चित्त लगाकर मेरी बात सुनो, और मेरी बिनती तुम्हारे कान में पड़े।

18 देखो, मैं ने अपने बहस की पूरी तैयारी की है; मुझे निश्चय है कि मैं निर्दोष ठहरूंगा।

19 कौन है जो मुझ से मुकद्दमा लड़ सकेगा? ऐसा कोई पाया जाए, तो मैं चुप हो कर प्राण छोडूंगा।

20 दो ही काम मुझ से न कर, तब मैं तुझ से नहीं छिपूंगा:

21 अपनी ताड़ना मुझ से दूर कर ले, और अपने भय से मुझे भयभीत न कर।

22 तब तेरे बुलाने पर मैं बोलूंगा; नहीं तो मैं प्रश्न करूंगा, और तू मुझे उत्तर दे।

23 मुझ से कितने अधर्म के काम और पाप हुए हैं? मेरे अपराध और पाप मुझे जता दे।

24 तू किस कारण अपना मुंह फेर लेता है, और मुझे अपना शत्रु गिनता है?

25 क्या तू उड़ते हुए पत्ते को भी कंपाएगा? और सूखे डंठल के पीछे पड़ेगा?

26 तू मेरे लिये कठिन दु:खों की आज्ञा देता है, और मेरी जवानी के अधर्म का फल मुझे भुगता देता है।

27 और मेरे पांवों को काठ में ठोंकता, और मेरी सारी चाल चलन देखता रहता है; और मेरे पांवों की चारों ओर सीमा बान्ध लेता है।

28 और मैं सड़ी गली वस्तु के तुल्य हूं जो नाश हो जाती है, और कीड़ा खाए कपड़े के तुल्य हूँ।

 अय्यूब - अध्याय 14

1 मनुष्य जो स्त्री से उत्पन्न होता है, वह थोड़े दिनों का और दुख से भरा रहता है।

2 वह फूल की नाईं खिलता, फिर तोड़ा जाता हे; वह छाया की रीति पर ढल जाता, और कहीं ठहरता नहीं।

3 फिर क्या तू ऐसे पर दृष्टि लगाता है? क्या तू मुझे अपने साथ कचहरी में घसीटता है?

4 अशुद्ध वस्तु से शुद्ध वस्तु को कौन निकाल सकता है? कोई नहीं।

5 मनुष्य के दिन नियुक्त किए गए हैं, और उसके महीनों की गिनती तेरे पास लिखी है, और तू ने उसके लिये ऐसा सिवाना बान्धा है जिसे वह पार नहीं कर सकता,

6 इस कारण उस से अपना मुंह फेर ले, कि वह आराम करे, जब तक कि वह मजदूर की नाईं अपना दिन पूरा न कर ले।

7 वृक्ष की तो आशा रहती है, कि चाहे वह काट डाला भी जाए, तौभी फिर पनपेगा और उस से नर्म नर्म डालियां निकलती ही रहेंगी।

8 चाहे उसकी जड़ भूमि में पुरानी भी हो जाए, और उसका ठूंठ मिट्टी में सूख भी जाए,

9 तौभी वर्षा की गन्ध पाकर वह फिर पनपेगा, और पौधे की नाईं उस से शाखाएं फूटेंगी।

10 परन्तु पुरुष मर जाता, और पड़ा रहता है; जब उसका प्राण छूट गया, तब वह कहां रहा?

11 जैसे नील नदी का जल घट जाता है, और जैसे महानद का जल सूखते सूखते सूख जाता है,

12 वैसे ही मनुष्य लेट जाता और फिर नहीं उठता; जब तक आकाश बना रहेगा तब तक वह न जागेगा, और न उसकी नींद टूटेगी।

13 भला होता कि तू मुझे अधोलोक में छिपा लेता, और जब तक तेरा कोप ठंढा न हो जाए तब तक मुझे छिपाए रखता, और मेरे लिये समय नियुक्त कर के फिर मेरी सुधि लेता।

14 यदि मनुष्य मर जाए तो क्या वह फिर जीवित होगा? जब तक मेरा छूटकारा न होता तब तक मैं अपनी कठिन सेवा के सारे दिन आशा लगाए रहता।

15 तू मुझे बुलाता, और मैं बोलता; तुझे अपने हाथ के बनाए हुए काम की अभिलाषा होती।

16 परन्तु अब तू मेरे पग पग को गिनता है, क्या तू मेरे पाप की ताक में लगा नहीं रहता?

17 मेरे अपराध छाप लगी हुई थैली में हैं, और तू ने मेरे अधर्म को सी रखा है।

18 और निश्चय पहाड़ भी गिरते गिरते नाश हो जाता है, और चट्टान अपने स्थान से हट जाती है;

19 और पत्थर जल से घिस जाते हैं, और भूमि की धूलि उसकी बाढ़ से बहाई जाती है; उसी प्रकार तू मनुष्य की आशा को मिटा देता है।

20 तू सदा उस पर प्रबल होता, और वह जाता रहता है; तू उसका चिहरा बिगाड़कर उसे निकाल देता है।

21 उसके पुत्रों की बड़ाई होती है, और यह उसे नहीं सूझता; और उनकी घटी होती है, परन्तु वह उनका हाल नहीं जानता।

22 केवल अपने ही कारण उसकी देह को दु:ख होता है; और अपने ही कारण उसका प्राण अन्दर ही अन्दर शोकित रहता है।

 अय्यूब - अध्याय 15

1 तब तेमानी एलीपज ने कहा,

2 क्या बुद्धिमान को उचित है कि अज्ञानता के साथ उत्तर दे, वा अपने अन्त:करण को पूरबी पवन से भरे?

3 क्या वह निष्फल वचनों से, वा व्यर्थ बातों से वादविवाद करे?

4 वरन तू भय मानना छोड़ देता, और ईश्वर का ध्यान करना औरों से छुड़ाता है।

5 तू अपने मुंह से अपना अधर्म प्रगट करता है, और धूर्त्त लोगों के बोलने की रीति पर बोलता है।

6 मैं तो नहीं परन्तु तेरा मुंह ही तुझे दोषी ठहराता है; और तेरे ही वचन तेरे विरुद्ध साक्षी देते हैं।

7 क्या पहिला मनुष्य तू ही उत्पन्न हुआ? क्या तेरी उत्पत्ति पहाड़ों से भी पहिले हुई?

8 क्या तू ईश्वर की सभा में बैठा सुनता था? क्या बुद्धि का ठेका तू ही ने ले रखा है?

9 तू ऐसा क्या जानता है जिसे हम नहीं जानते? तुझ में ऐसी कौन सी समझ है जो हम में नहीं?

10 हम लोगों में तो पक्के बाल वाले और अति पुरनिये मनुष्य हैं, जो तेरे पिता से भी बहुत आयु के हैं।

11 ईश्वर की शान्तिदायक बातें, और जो वचन तेरे लिये कोमल हैं, क्या ये तेरी दृष्टि में तुच्छ हैं?

12 तेरा मन क्यों तुझे खींच ले जाता है? और तू आंख से क्यों सैन करता है?

13 तू भी अपनी आत्मा ईश्वर के विरुद्ध करता है, और अपने मुंह से व्यर्थ बातें निकलने देता है।

14 मनुष्य है क्या कि वह निष्कलंक हो? और जो स्त्री से उत्पन्न हुआ वह है क्या कि निर्दोष हो सके?

15 देख, वह अपने पवित्रों पर भी विश्वास नहीं करता, और स्वर्ग भी उसकी दृष्टि में निर्मल नहीं है।

16 फिर मनुष्य अधिक घिनौना और मलीन है जो कुटिलता को पानी की नाईं पीता है।

17 मैं तुझे समझा दूंगा, इसलिये मेरी सुन ले, जो मैं ने देखा है, उसी का वर्णन मैं करता हूँ।

18 (वे ही बातें जो बुद्धिमानों ने अपने पुरखाओं से सुन कर बिना छिपाए बताया है।

19 केवल उन्हीं को देश दिया गया था, और उनके मध्य में कोई विदेशी आता जाता नहीं था।)

20 दुष्ट जन जीवन भर पीड़ा से तड़पता है, और बलात्कारी के वर्षों की गिनती ठहराई हुई है।

21 उसके कान में डरावना शब्द गूंजता रहता है, कुशल के समय भी नाशक उस पर आ पड़ता है।

22 उसे अन्धियारे में से फिर निकलने की कुछ आशा नहीं होती, और तलवार उसकी घात में रहती है।

23 वह रोटी के लिये मारा मारा फिरता है, कि कहां मिलेगी। उसे निश्चय रहता है, कि अन्धकार का दिन मेरे पास ही है।

24 संकट और दुर्घटना से उस को डर लगता रहता है, ऐसे राजा की नाईं जो युद्ध के लिये तैयार हो, वे उस पर प्रबल होते हैं।

25 उसने तो ईश्वर के विरुद्ध हाथ बढ़ाया है, और सर्वशक्तिमान के विरुद्ध वह ताल ठोंकता है,

26 और सिर उठा कर और अपनी मोटी मोटी ढालें दिखाता हुआ घमण्ड से उस पर धावा करता है;

27 इसलिये कि उसके मुंह पर चिकनाईं छा गई है, और उसकी कमर में चर्बी जमी है।

28 और वह उजाड़े हुए नगरों में बस गया है, और जो घर रहने योग्य नहीं, और खण्डहर होने को छोड़े गए हैं, उन में बस गया है।

29 वह धनी न रहेगा, और न उसकी सम्पत्ति बनी रहेगी, और ऐसे लोगों के खेत की उपज भूमि की ओर न झुकने पाएगी।

30 वह अन्धियारे से कभी न निकलेगा, और उसकी डालियां आग की लपट से झुलस जाएंगी, और ईश्वर के मुंह की श्वास से वह उड़ जाएगा।

31 वह अपने को धोखा देकर व्यर्थ बातों का भरोसा न करे, क्योंकि उसका बदला धोखा ही होगा।

32 वह उसके नियत दिन से पहिले पूरा हो जाएगा; उसकी डालियां हरी न रहेंगी।

33 दाख की नाईं उसके कच्चे फल झड़ जाएंगे, और उसके फूल जलपाई के वृक्ष के से गिरेंगे।

34 क्योंकि भक्तिहीन के परिवार से कुछ बन न पड़ेगा, और जो घूस लेते हैं, उनके तम्बू आग से जल जाएंगे।

35 उनके उपद्रव का पेट रहता, और अनर्थ उत्पन्न होता है: और वे अपने अन्त:करण में छल की बातें गढ़ते हैं।

 अय्यूब - अध्याय 16

1 तब अय्यूब ने कहा,

2 ऐसी बहुत सी बातें मैं सुन चुका हूँ, तुम सब के सब निकम्मे शान्तिदाता हो। क्या व्यर्थ बातों का अन्त कभी होगा?

3  तू कौन सी बात से झिड़ककर उत्तर देता।

4 जो तुम्हारी दशा मेरी सी होती, तो मैं भी तुम्हारी सी बातें कर सकता; मैं भी तुम्हारे विरुद्ध बातें जोड़ सकता, और तुम्हारे विरुद्ध सिर हिला सकता।

5 वरन मैं अपने वचनों से तुम को हियाव दिलाता, और बातों से शान्ति देकर तुम्हारा शोक घटा देता।

6 चाहे मैं बोलूं तौभी मेरा शोक न घटेगा, चाहे मैं चुप रहूं, तौभी मेरा दु:ख कुछ कम न होगा।

7 परन्तु अब उसने मुझे उकता दिया है; उसने मेरे सारे परिवार को उजाड़ डाला है।

8 और उसने जो मेरे शरीर को सुखा डाला है, वह मेरे विरुद्ध साक्षी ठहरा है, और मेरा दुबलापन मेरे विरुद्ध खड़ा हो कर मेरे साम्हने साक्षी देता है।

9 उसने क्रोध में आकर मुझ को फाड़ा और मेरे पीछे पड़ा है; वह मेरे विरुद्ध दांत पीसता; और मेरा बैरी मुझ को आंखें दिखाता है।

10 अब लोग मुझ पर मुंह पसारते हैं, और मेरी नामधराई कर के मेरे गाल पर थपेड़ा मारते, और मेरे विरुद्ध भीड़ लगाते हैं।

11 ईश्वर ने मुझे कुटिलों के वश में कर दिया, और दुष्ट लोगों के हाथ में फेंक दिया है।

12 मैं सुख से रहता था, और उसने मुझे चूर चूर कर डाला; उसने मेरी गर्दन पकड़ कर मुझे टुकड़े टुकड़े कर दिया; फिर उसने मुझे अपना निशाना बनाकर खड़ा किया है।

13 उसके तीर मेरे चारों ओर उड़ रहे हैं, वह निर्दय हो कर मेरे गुर्दों को बेधता है, और मेरा पित्त भूमि पर बहाता है।

14 वह शूर की नाईं मुझ पर धावा कर के मुझे चोट पर चोट पहुंचा कर घायल करता है।

15 मैं ने अपनी खाल पर टाट को सी लिया है, और अपना सींग मिट्टी में मैला कर दिया है।

16 रोते रोते मेरा मुंह सूज गया है, और मेरी आंखों पर घोर अन्धकार छा गया है;

17 तौभी मुझ से कोई उपद्रव नहीं हुआ है, और मेरी प्रार्थना पवित्र है।

18 हे पृथ्वी, तू मेरे लोहू को न ढांपना, और मेरी दोहाई कहीं न रुके।

19 अब भी स्वर्ग में मेरा साक्षी है, और मेरा गवाह ऊपर है।

20 मेरे मित्र मुझ से घृणा करते हैं, परन्तु मैं ईश्वर के साम्हने आंसू बहाता हूँ,

21 कि कोई ईश्वर के विरुद्ध सज्जन का, और आदमी का मुक़द्दमा उसके पड़ोसी के विरुद्ध लड़े।

22 क्योंकि थोड़े ही वर्षों के बीतने पर मैं उस मार्ग से चला जाऊंगा, जिस से मैं फिर वापिस न लौटूंगा।

 अय्यूब - अध्याय 17

1 मेरा प्राण नाश हुआ चाहता है, मेरे दिन पूरे हो चुके हैं; मेरे लिये कब्र तैयार है।

2 निश्चय जो मेरे संग हैं वह ठट्ठा करने वाले हैं, और उनका झगड़ा रगड़ा मुझे लगातार दिखाई देता है।

3 जमानत दे अपने और मेरे बीच में तू ही जामिन हो; कौन है जो मेरे हाथ पर हाथ मारे?

4 तू ने इनका मन समझने से रोका है, इस कारण तू इन को प्रबल न करेगा।

5 जो अपने मित्रों को चुगली खाकर लुटा देता, उसके लड़कों की आंखें रह जाएंगी।

6 उसने ऐसा किया कि सब लोग मेरी उपमा देते हैं; और लोग मेरे मुंह पर थूकते हैं।

7 खेद के मारे मेरी आंखों में घुंघलापन छा गया है, और मेरे सब अंग छाया की नाईं हो गए हैं।

8 इसे देखकर सीधे लोग चकित होते हैं, और जो निर्दोष हैं, वह भक्तिहीन के विरुद्ध उभरते हैं।

9 तौभी धमीं लोग अपना मार्ग पकड़े रहेंगे, और शुद्ध काम करने वाले सामर्थ्य पर सामर्थ्य पाते जाएंगे।

10 तुम सब के सब मेरे पास आओ तो आओ, परन्तु मुझे तुम लोगों में एक भी बुद्धिमान न मिलेगा।

11 मेरे दिन तो बीत चुके, और मेरी मनसाएं मिट गई, और जो मेरे मन में था, वह नाश हुआ है।

12 वे रात को दिन ठहराते; वे कहते हैं, अन्धियारे के निकट उजियाला है।

13 यदि मेरी आशा यह हो कि अधोलोक मेरा धाम होगा, यदि मैं ने अन्धियारे में अपना बिछौना बिछा लिया है,

14 यदि मैं ने सड़ाहट से कहा कि तू मेरा पिता है, और कीड़े से, कि तू मेरी मां, और मेरी बहिन है,

15 तो मेरी आशा कहां रही? और मेरी आशा किस के देखने में आएगी?

16 वह तो अधोलोक में उतर जाएगी, और उस समेत मुझे भी मिट्टी में विश्राम मिलेगा।

 अय्यूब - अध्याय 18

1 तब शूही बिल्दद ने कहा,

2 तुम कब तक फन्दे लगा लगाकर वचन पकड़ते रहोगे? चित्त लगाओ, तब हम बोलेंगे।

3 हम लोग तुम्हारी दृष्टि में क्यों पशु के तुल्य समझे जाते, और अशुद्ध ठहरे हैं।

4 हे अपने को क्रोध में फाड़ने वाले क्या तेरे निमित्त पृथ्वी उजड़ जाएगी, और चट्टान अपने स्थान से हट जाएगी?

5 तौभी दुष्टों का दीपक बुझ जाएगा, और उसकी आग की लौ न चमकेगी।

6 उसके डेरे में का उजियाला अन्धेरा हो जाएगा, और उसके ऊपर का दिया बुझ जाएगा।

7 उसके बड़े बड़े फाल छोटे हो जाएंगे और वह अपनी ही युक्ति के द्वारा गिरेगा।

8 वह अपना ही पांव जाल में फंसाएगा, वह फन्दों पर चलता है।

9 उसकी एड़ी फन्दे में फंस जाएगी, और वह जाल में पकड़ा जाएगा।

10 फन्दे की रस्सियां उसके लिये भूमि में, और जाल रास्ते में छिपा दिया गया है।

11 चारों ओर से डरावनी वस्तुएं उसे डराएंगी और उसके पीछे पड़कर उसको भगाएंगी।

12 उसका बल दु:ख से घट जाएगा, और विपत्ति उसके पास ही तैयार रहेगी।

13 वह उसके अंग को खा जाएगी, वरन काल का पहिलौठा उसके अंगों को खा लेगा।

14 अपने जिस डेरे का भरोसा वह करता है, उस से वह छीन लिया जाएगा; और वह भयंकरता के राजा के पास पहुंचाया जाएगा।

15 जो उसके यहां का नहीं है वह उसके डेरे में वास करेगा, और उसके घर पर गन्धक छितराई जाएगी।

16 उसकी जड़ तो सूख जाएगी, और डालियां कट जाएंगी।

17 पृथ्वी पर से उसका स्मरण मिट जाएगा, और बाज़ार में उसका नाम कभी न सुन पड़ेगा।

18 वह उजियाले से अन्धियारे में ढकेल दिया जाएगा, और जगत में से भी भगाया जाएगा।

19 उसके कुटुम्बियों में उसके कोई पुत्र-पौत्र न रहेगा, और जहां वह रहता था, वहां कोई बचा न रहेगा।

20 उसका दिन देखकर पूरबी लोग चकित होंगे, और पश्चिम के निवासियों के रोएं खड़े हो जाएंगे।

21 नि:सन्देह कुटिल लोगों के निवास ऐसे हो जाते हैं, और जिस को ईश्वर का ज्ञान नहीं रहता उसका स्थान ऐसा ही हो जाता है।

 अय्यूब - अध्याय 19

1 तब अय्यूब ने कहा,

2 तुम कब तक मेरे प्राण को दु:ख देते रहोगे; और बातों से मुझे चूर चूर करोगे?

3 इन दसों बार तुम लोग मेरी निन्दा ही करते रहे, तुम्हें लज्जा नहीं आती, कि तुम मेरे साथ कठोरता का बरताव करते हो?

4 मान लिया कि मुझ से भूल हुई, तौभी वह भूल तो मेरे ही सिर पर रहेगी।

5 यदि तुम सचमुच मेरे विरुद्ध अपनी बड़ाई करते हो और प्रमाण देकर मेरी निन्दा करते हो,

6 तो यह जान लो कि ईश्वर ने मुझे गिरा दिया है, और मुझे अपने जाल में फंसा लिया है।

7 देखो, मैं उपद्रव! उपद्रव! यों चिल्लाता रहता हूँ, परन्तु कोई नहीं सुनता; मैं सहायता के लिये दोहाई देता रहता हूँ, परन्तु कोई न्याय नहीं करता।

8 उसने मेरे मार्ग को ऐसा रूंधा है कि मैं आगे चल नहीं सकता, और मेरी डगरें अन्धेरी कर दी हैं।

9 मेरा वैभव उसने हर लिया है, और मेरे सिर पर से मुकुट उतार दिया है।

10 उसने चारों ओर से मुझे तोड़ दिया, बस मैं जाता रहा, और मेरा आसरा उसने वृक्ष की नाईं उखाड़ डाला है।

11 उसने मुझ पर अपना क्रोध भड़काया है और अपने शत्रुओं में मुझे गिनता है।

12 उसके दल इकट्ठे हो कर मेरे विरुद्ध मोर्चा बान्धते हैं, और मेरे डेरे के चारों ओर छावनी डालते हैं।

13 उसने मेरे भाइयों को मुझ से दूर किया है, और जो मेरी जान पहचान के थे, वे बिलकुल अनजान हो गए हैं।

14 मेरे कुटुंबी मुझे छोड़ गए हैं, और जो मुझे जानते थे वह मुझे भूल गए हैं।

15 जो मेरे घर में रहा करते थे, वे, वरन मेरी दासियां भी मुझे अनजाना गिनने लगीं हैं; उनकी दृष्टि में मैं परदेशी हो गया हूँ।

16 जब मैं अपने दास को बुलाता हूँ, तब वह नहीं बोलता; मुझे उस से गिड़गिड़ाना पड़ता है।

17 मेरी सांस मेरी स्त्री को और मेरी गन्ध मेरे भाइयों की दृष्टि में घिनौनी लगती है।

18 लड़के भी मुझे तुच्छ जानते हैं; और जब मैं उठने लगता, तब वे मेरे विरुद्ध बोलते हैं।

19 मेरे सब परम मित्र मुझ से द्वेष रखते हैं, और जिन से मैं ने प्रेम किया सो पलटकर मेरे विरोधी हो गए हैं।

20 मेरी खाल और मांस मेरी हड्डियों से सट गए हैं, और मैं बाल बाल बच गया हूं।

21 हे मेरे मित्रो! मुझ पर दया करो, दया, क्योंकि ईश्वर ने मुझे मारा है।

22 तुम ईश्वर की नाईं क्यों मेरे पीछे पड़े हो? और मेरे मांस से क्यों तृप्त नहीं हुए?

23 भला होता, कि मेरी बातें लिखी जातीं; भला होता, कि वे पुस्तक में लिखी जातीं,

24 और लोहे की टांकी और शीशे से वे सदा के लिये चट्टान पर खोदी जातीं।

25 मुझे तो निश्चय है, कि मेरा छुड़ाने वाला जीवित है, और वह अन्त में पृथ्वी पर खड़ा होगा।

26 और अपनी खाल के इस प्रकार नाश हो जाने के बाद भी, मैं शरीर में हो कर ईश्वर का दर्शन पाऊंगा।

27 उसका दर्शन मैं आप अपनी आंखों से अपने लिये करूंगा, और न कोई दूसरा। यद्यपि मेरा हृदय अन्दर ही अन्दर चूर चूर भी हो जाए, तौभी मुझ में तो धर्म का मूल पाया जाता है!

28  और तुम जो कहते हो हम इस को क्योंकर सताएं!

29 तो तुम तलवार से डरो, क्योंकि जलजलाहट से तलवार का दण्ड मिलता है, जिस से तुम जान लो कि न्याय होता है।

 अय्यूब - अध्याय 20

1 तब नामाती सोपर ने कहा,

2 मेरा जी चाहता है कि उत्तर दूं, और इसलिये बोलने में फुतीं करता हूँ।

3 मैं ने ऐसी चितौनी सुनी जिस से मेरी निन्दा हुई, और मेरी आत्मा अपनी समझ के अनुसार तुझे उत्तर देती है।

4 क्या तू यह नियम नहीं जानता जो प्राचीन और उस समय का है, जब मनुष्य पृथ्वी पर बसाया गया,

5 कि दुष्टों का ताली बजाना जल्दी बन्द हो जाता और भक्तिहीनों का आनन्द पल भर का होता है?

6 चाहे ऐसे मनुष्य का माहात्म्य आकाश तक पहुंच जाए, और उसका सिर बादलों तक पहुंचे,

7 तौभी वह अपनी विष्ठा की नाईं सदा के लिये नाश हो जाएगा; और जो उसको देखते थे वे पूछेंगे कि वह कहां रहा?

8 वह स्वप्न की नाईं लोप हो जाएगा और किसी को फिर न मिलेगा; रात में देखे हुए रूप की नाईं वह रहने न पाएगा।

9 जिसने उसको देखा हो फिर उसे न देखेगा, और अपने स्थान पर उसका कुछ पता न रहेगा।

10 उसके लड़के-बाले कंगालों से भी बिनती करेंगे, और वह अपना छीना हुआ माल फेर देगा।

11 उसकी हड्डियों में जवानी का बल भरा हुआ है परन्तु वह उसी के साथ मिट्टी में मिल जाएगा।

12 चाहे बुराई उसको मीठी लगे, और वह उसे अपनी जीभ के नीचे छिपा रखे,

13 और वह उसे बचा रखे और न छोड़े, वरन उसे अपने तालू के बीच दबा रखे,

14 तौभी उसका भोजन उसके पेट में पलटेगा, वह उसके अन्दर नाग का सा विष बन जाएगा।

15 उसने जो धन निगल लिया है उसे वह फिर उगल देगा; ईश्वर उसे उसके पेट में से निकाल देगा।

16 वह नागों का विष चूस लेगा, वह करैत के डसने से मर जाएगा।

17 वह नदियों अर्थात मधु और दही की नदियों को देखने न पाएगा।

18 जिसके लिये उसने परिश्रम किया, उसको उसे लौटा देना पड़ेगा, और वह उसे निगलने न पाएगा; उसकी मोल ली हुई वस्तुओं से जितना आनन्द होना चाहिये, उतना तो उसे न मिलेगा।

19 क्योंकि उसने कंगालों को पीस कर छोड़ दिया, उसने घर को छीन लिया, उसको वह बढ़ाने न पाएगा।

20 लालसा के मारे उसको कभी शान्ति नहीं मिलती थी, इसलिये वह अपनी कोई मनभावनी वस्तु बचा न सकेगा।

21 कोई वस्तु उसका कौर बिना हुए न बचती थी; इसलिये उसका कुशल बना न रहेगा

22 पूरी सम्पत्ति रहते भी वह सकेती में पड़ेगा; तब सब दु:खियों के हाथ उस पर उठेंगे।

23 ऐसा होगा, कि उसका पेट भरने के लिये ईश्वर अपना क्रोध उस पर भड़काएगा, और रोटी खाने के समय वह उस पर पड़ेगा।

24 वह लोहे के हथियार से भागेगा, और पीतल के धनुष से मारा जाएगा।

25 वह उस तीर को खींच कर अपने पेट से निकालेगा, उसकी चमकीली नोंक उसके पित्ते से हो कर निकलेगी, भय उस में समाएगा।

26 उसके गड़े हुए धन पर घोर अन्धकार छा जाएगा। वह ऐसी आग से भस्म होगा, जो मनुष्य की फूंकी हुई न हो; और उसी से उसके डेरे में जो बचा हो वह भी भस्म हो जाएगा।

27 आकाश उसका अधर्म प्रगट करेगा, और पृथ्वी उसके विरुद्ध खड़ी होगी।

28 उसके घर की बढ़ती जाती रहेगी, वह उसके क्रोध के दिन बह जाएगी।

29 परमेश्वर की ओर से दुष्ट मनुष्य का अंश, और उसके लिये ईश्वर का ठहराया हुआ भाग यही है।

 

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