पवित्र बाइबिल - Hindi Holy Bible

अध्याय   21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 

 उत्पत्ति - अध्याय 21

1 सो यहोवा ने जैसा कहा था वैसा ही सारा की सुधि लेके उसके साथ अपने वचन के अनुसार किया।

2 सो सारा को इब्राहीम से गर्भवती हो कर उसके बुढ़ापे में उसी नियुक्त समय पर जो परमेश्वर ने उससे ठहराया था एक पुत्र उत्पन्न हुआ।

3 और इब्राहीम ने अपने पुत्र का नाम जो सारा से उत्पन्न हुआ था इसहाक रखा।

4 और जब उसका पुत्र इसहाक आठ दिन का हुआ, तब उसने परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार उसका खतना किया।

5 और जब इब्राहीम का पुत्र इसहाक उत्पन्न हुआ तब वह एक सौ वर्ष का था।

6 और सारा ने कहा, परमेश्वर ने मुझे प्रफुल्लित कर दिया है; इसलिये सब सुनने वाले भी मेरे साथ प्रफुल्लित होंगे।

7 फिर उसने यह भी कहा, कि क्या कोई कभी इब्राहीम से कह सकता था, कि सारा लड़कों को दूध पिलाएगी? पर देखो, मुझ से उसके बुढ़ापे में एक पुत्र उत्पन्न हुआ।

8 और वह लड़का बढ़ा और उसका दूध छुड़ाया गया: और इसहाक के दूध छुड़ाने के दिन इब्राहीम ने बड़ी जेवनार की।

9 तब सारा को मिस्री हाजिरा का पुत्र, जो इब्राहीम से उत्पन्न हुआ था, हंसी करता हुआ देख पड़ा।

10 सो इस कारण उसने इब्राहीम से कहा, इस दासी को पुत्र सहित बरबस निकाल दे: क्योंकि इस दासी का पुत्र मेरे पुत्र इसहाक के साथ भागी न होगा।

11 यह बात इब्राहीम को अपने पुत्र के कारण बुरी लगी।

12 तब परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, उस लड़के और अपनी दासी के कारण तुझे बुरा न लगे; जो बात सारा तुझ से कहे, उसे मान, क्योंकि जो तेरा वंश कहलाएगा सो इसहाक ही से चलेगा।

13 दासी के पुत्र से भी मैं एक जाति उत्पन्न करूंगा इसलिये कि वह तेरा वंश है।

14 सो इब्राहीम ने बिहान को तड़के उठ कर रोटी और पानी से भरी चमड़े की थैली भी हाजिरा को दी, और उसके कन्धे पर रखी, और उसके लड़के को भी उसे दे कर उसको विदा किया: सो वह चली गई, और बेर्शेबा के जंगल में भ्रमण करने लगी।

15 जब थैली का जल चुक गया, तब उसने लड़के को एक झाड़ी के नीचे छोड़ दिया।

16 और आप उससे तीर भर के टप्पे पर दूर जा कर उसके साम्हने यह सोचकर बैठ गई, कि मुझ को लड़के की मृत्यु देखनी न पड़े। तब वह उसके साम्हने बैठी हुई चिल्ला चिल्ला के रोने लगी।

17 और परमेश्वर ने उस लड़के की सुनी; और उसके दूत ने स्वर्ग से हाजिरा को पुकार के कहा, हे हाजिरा तुझे क्या हुआ? मत डर; क्योंकि जहां तेरा लड़का है वहां से उसकी आवाज परमेश्वर को सुन पड़ी है।

18 उठ, अपने लड़के को उठा और अपने हाथ से सम्भाल क्योंकि मैं उसके द्वारा एक बड़ी जाति बनाऊंगा।

19 परमेश्वर ने उसकी आंखे खोल दी, और उसको एक कुंआ दिखाई पड़ा; सो उसने जा कर थैली को जल से भर कर लड़के को पिलाया।

20 और परमेश्वर उस लड़के के साथ रहा; और जब वह बड़ा हुआ, तब जंगल में रहते रहते धनुर्धारी बन गया।

21 वह तो पारान नाम जंगल में रहा करता था: और उसकी माता ने उसके लिये मिस्र देश से एक स्त्री मंगवाई॥

22 उन दिनों में ऐसा हुआ कि अबीमेलेक अपने सेनापति पीकोल को संग ले कर इब्राहीम से कहने लगा, जो कुछ तू करता है उस में परमेश्वर तेरे संग रहता है:

23 सो अब मुझ से यहां इस विषय में परमेश्वर की किरिया खा, कि तू न तो मुझ से छल करेगा, और न कभी मेरे वंश से करेगा, परन्तु जैसी करूणा मैं ने तुझ पर की है, वैसी ही तू मुझ पर और इस देश पर भी जिस में तू रहता है करेगा

24 इब्राहीम ने कहा, मैं किरिया खाऊंगा।

25 और इब्राहीम ने अबीमेलेक को एक कुएं के विषय में, जो अबीमेलेक के दासों ने बरीयाई से ले लिया था, उलाहना दिया।

26 तब अबीमेलेक ने कहा, मैं नहीं जानता कि किस ने यह काम किया: और तू ने भी मुझे नहीं बताया, और न मैं ने आज से पहिले इसके विषय में कुछ सुना।

27 तब इब्राहीम ने भेड़-बकरी, और गाय-बैल ले कर अबीमेलेक को दिए; और उन दोनों ने आपस में वाचा बान्धी।

28 और इब्राहीम ने भेड़ की सात बच्ची अलग कर रखीं।

29 तब अबीमेलेक ने इब्राहीम से पूछा, इन सात बच्चियों का, जो तू ने अलग कर रखी हैं, क्या प्रयोजन है?

30 उसने कहा, तू इन सात बच्चियों को इस बात की साक्षी जान कर मेरे हाथ से ले, कि मैं ने कुंआ खोदा है।

31 उन दोनों ने जो उस स्थान में आपस में किरिया खाई, इसी कारण उसका नाम बेर्शेबा पड़ा।

32 जब उन्होंने बेर्शेबा में परस्पर वाचा बान्धी, तब अबीमेलेक, और उसका सेनापति पीकोल उठ कर पलिश्तियों के देश में लौट गए।

33 और इब्राहीम ने बेर्शेबा में झाऊ का एक वृक्ष लगाया, और वहां यहोवा, जो सनातन ईश्वर है, उससे प्रार्थना की।

34 और इब्राहीम पलिश्तियों के देश में बहुत दिनों तक परदेशी हो कर रहा॥

 उत्पत्ति - अध्याय 22

1 इन बातों के पश्चात ऐसा हुआ कि परमेश्वर ने, इब्राहीम से यह कहकर उसकी परीक्षा की, कि हे इब्राहीम: उसने कहा, देख, मैं यहां हूं।

2 उसने कहा, अपने पुत्र को अर्थात अपने एकलौते पुत्र इसहाक को, जिस से तू प्रेम रखता है, संग ले कर मोरिय्याह देश में चला जा, और वहां उसको एक पहाड़ के ऊपर जो मैं तुझे बताऊंगा होमबलि करके चढ़ा।

3 सो इब्राहीम बिहान को तड़के उठा और अपने गदहे पर काठी कसकर अपने दो सेवक, और अपने पुत्र इसहाक को संग लिया, और होमबलि के लिये लकड़ी चीर ली; तब कूच करके उस स्थान की ओर चला, जिसकी चर्चा परमेश्वर ने उससे की थी।

4 तीसरे दिन इब्राहीम ने आंखें उठा कर उस स्थान को दूर से देखा।

5 और उसने अपने सेवकों से कहा गदहे के पास यहीं ठहरे रहो; यह लड़का और मैं वहां तक जा कर, और दण्डवत करके, फिर तुम्हारे पास लौट आऊंगा।

6 सो इब्राहीम ने होमबलि की लकड़ी ले अपने पुत्र इसहाक पर लादी, और आग और छुरी को अपने हाथ में लिया; और वे दोनों एक साथ चल पड़े।

7 इसहाक ने अपने पिता इब्राहीम से कहा, हे मेरे पिता; उसने कहा, हे मेरे पुत्र, क्या बात है उसने कहा, देख, आग और लकड़ी तो हैं; पर होमबलि के लिये भेड़ कहां है?

8 इब्राहीम ने कहा, हे मेरे पुत्र, परमेश्वर होमबलि की भेड़ का उपाय आप ही करेगा।

9 सो वे दोनों संग संग आगे चलते गए। और वे उस स्थान को जिसे परमेश्वर ने उसको बताया था पहुंचे; तब इब्राहीम ने वहां वेदी बनाकर लकड़ी को चुन चुनकर रखा, और अपने पुत्र इसहाक को बान्ध के वेदी पर की लकड़ी के ऊपर रख दिया।

10 और इब्राहीम ने हाथ बढ़ाकर छुरी को ले लिया कि अपने पुत्र को बलि करे।

11 तब यहोवा के दूत ने स्वर्ग से उसको पुकार के कहा, हे इब्राहीम, हे इब्राहीम; उसने कहा, देख, मैं यहां हूं।

12 उसने कहा, उस लड़के पर हाथ मत बढ़ा, और न उससे कुछ कर: क्योंकि तू ने जो मुझ से अपने पुत्र, वरन अपने एकलौते पुत्र को भी, नहीं रख छोड़ा; इस से मैं अब जान गया कि तू परमेश्वर का भय मानता है।

13 तब इब्राहीम ने आंखे उठाई, और क्या देखा, कि उसके पीछे एक मेढ़ा अपने सींगो से एक झाड़ी में बंझा हुआ है: सो इब्राहीम ने जाके उस मेंढ़े को लिया, और अपने पुत्र की सन्ती होमबलि करके चढ़ाया।

14 और इब्राहीम ने उस स्थान का नाम यहोवा यिरे रखा: इसके अनुसार आज तक भी कहा जाता है, कि यहोवा के पहाड़ पर उपाय किया जाएगा।

15 फिर यहोवा के दूत ने दूसरी बार स्वर्ग से इब्राहीम को पुकार के कहा,

16 यहोवा की यह वाणी है, कि मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूं, कि तू ने जो यह काम किया है कि अपने पुत्र, वरन अपने एकलौते पुत्र को भी, नहीं रख छोड़ा;

17 इस कारण मैं निश्चय तुझे आशीष दूंगा; और निश्चय तेरे वंश को आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान अनगिनित करूंगा, और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा:

18 और पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी: क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।

19 तब इब्राहीम अपने सेवकों के पास लौट आया, और वे सब बेर्शेबा को संग संग गए; और इब्राहीम बेर्शेबा में रहता रहा॥

20 इन बातों के पश्चात ऐसा हुआ कि इब्राहीम को यह सन्देश मिला, कि मिल्का के तेरे भाई नाहोर से सन्तान उत्पन्न हुए हैं।

21 मिल्का के पुत्र तो ये हुए, अर्थात उसका जेठा ऊस, और ऊस का भाई बूज, और कमूएल, जो अराम का पिता हुआ।

22 फिर केसेद, हज़ो, पिल्दाश, यिद्लाप, और बतूएल।

23 इन आठों को मिल्का इब्राहीम के भाई नाहोर के जन्माए जनी। और बतूएल ने रिबका को उत्पन्न किया।

24 फिर नाहोर के रूमा नाम एक रखेली भी थी; जिस से तेबह, गहम, तहश, और माका, उत्पन्न हुए॥

 उत्पत्ति - अध्याय 23

1 सारा तो एक सौ सत्ताईस बरस की अवस्था को पहुंची; और जब सारा की इतनी अवस्था हुई;

2 तब वह किर्यतर्बा में मर गई। यह तो कनान देश में है, और हेब्रोन भी कहलाता है: सो इब्राहीम सारा के लिये रोने पीटने को वहां गया।

3 तब इब्राहीम अपने मुर्दे के पास से उठ कर हित्तियों से कहने लगा,

4 मैं तुम्हारे बीच पाहुन और परदेशी हूं: मुझे अपने मध्य में कब्रिस्तान के लिये ऐसी भूमि दो जो मेरी निज की हो जाए, कि मैं अपने मुर्दे को गाड़ के अपने आंख की ओट करूं।

5 हित्तियों ने इब्राहीम से कहा,

6 हे हमारे प्रभु, हमारी सुन: तू तो हमारे बीच में बड़ा प्रधान है: सो हमारी कब्रों में से जिस को तू चाहे उस में अपने मुर्दे को गाड़; हम में से कोई तुझे अपनी कब्र के लेने से न रोकेगा, कि तू अपने मुर्दे को उस में गाड़ने न पाए।

7 तब इब्राहीम उठ कर खड़ा हुआ, और हित्तियों के सम्मुख, जो उस देश के निवासी थे, दण्डवत करके कहने लगा,

8 यदि तुम्हारी यह इच्छा हो कि मैं अपने मुर्दे को गाड़ के अपनी आंख की ओट करूं, तो मेरी प्रार्थना है, कि सोहर के पुत्र एप्रोन से मेरे लिये बिनती करो,

9 कि वह अपनी मकपेला वाली गुफा, जो उसकी भूमि की सीमा पर है; उसका पूरा दाम ले कर मुझे दे दे, कि वह तुम्हारे बीच कब्रिस्तान के लिये मेरी निज भूमि हो जाए।

10 और एप्रोन तो हित्तियों के बीच वहां बैठा हुआ था। सो जितने हित्ती उसके नगर के फाटक से हो कर भीतर जाते थे, उन सभों के साम्हने उसने इब्राहीम को उत्तर दिया,

11 कि हे मेरे प्रभु, ऐसा नहीं, मेरी सुन; वह भूमि मैं तुझे देता हूं, और उस में जो गुफा है, वह भी मैं तुझे देता हूं; अपने जाति भाइयों के सम्मुख मैं उसे तुझ को दिए देता हूं: सो अपने मुर्दे को कब्र में रख।

12 तब इब्राहीम ने उस देश के निवासियों के साम्हने दण्डवत की।

13 और उनके सुनते हुए एप्रोन से कहा, यदि तू ऐसा चाहे, तो मेरी सुन: उस भूमि का जो दाम हो, वह मैं देना चाहता हूं; उसे मुझ से ले ले, तब मैं अपने मुर्दे को वहां गाडूंगा।

14 एप्रोन ने इब्राहीम को यह उत्तर दिया,

15 कि, हे मेरे प्रभु, मेरी बात सुन; एक भूमि का दाम तो चार सौ शेकेल रूपा है; पर मेरे और तेरे बीच में यह क्या है? अपने मुर्दे को कब्र में रख।

16 इब्राहीम ने एप्रोन की मानकर उसको उतना रूपा तौल दिया, जितना उसने हित्तियों के सुनते हुए कहा था, अर्थात चार सौ ऐसे शेकेल जो व्यापारियों में चलते थे।

17 सो एप्रोन की भूमि, जो माम्रे के सम्मुख की मकपेला में थी, वह गुफा समेत, और उन सब वृक्षों समेत भी जो उस में और उसके चारोंऔर सीमा पर थे,

18 जितने हित्ती उसके नगर के फाटक से हो कर भीतर जाते थे, उन सभों के साम्हने इब्राहीम के अधिकार में पक्की रीति से आ गई।

19 इसके पश्चात इब्राहीम ने अपनी पत्नी सारा को, उस मकपेला वाली भूमि की गुफा में जो माम्रे के अर्थात हेब्रोन के साम्हने कनान देश में है, मिट्टी दी।

20 और वह भूमि गुफा समेत, जो उस में थी, हित्तियों की ओर से कब्रिस्तान के लिये इब्राहीम के अधिकार में पक्की रीति से आ गई।

 उत्पत्ति - अध्याय 24

1 इब्राहीम वृद्ध था और उसकी आयु बहुत थी और यहोवा ने सब बातों में उसको आशीष दी थी।

2 सो इब्राहीम ने अपने उस दास से, जो उसके घर में पुरनिया और उसकी सारी सम्पत्ति पर अधिकारी था, कहा, अपना हाथ मेरी जांघ के नीचे रख:

3 और मुझ से आकाश और पृथ्वी के परमेश्वर यहोवा की इस विषय में शपथ खा, कि तू मेरे पुत्र के लिये कनानियों की लड़कियों में से जिनके बीच मैं रहता हूं, किसी को न ले आएगा।

4 परन्तु तू मेरे देश में मेरे ही कुटुम्बियों के पास जा कर मेरे पुत्र इसहाक के लिये एक पत्नी ले आएगा।

5 दास ने उससे कहा, कदाचित वह स्त्री इस देश में मेरे साथ आना न चाहे; तो क्या मुझे तेरे पुत्र को उस देश में जहां से तू आया है ले जाना पड़ेगा?

6 इब्राहीम ने उससे कहा, चौकस रह, मेरे पुत्र को वहां कभी न ले जाना।

7 स्वर्ग का परमेश्वर यहोवा, जिसने मुझे मेरे पिता के घर से और मेरी जन्मभूमि से ले आकर मुझ से शपथ खाकर कहा, कि मैं यह देश तेरे वंश को दूंगा; वही अपना दूत तेरे आगे आगे भेजेगा, कि तू मेरे पुत्र के लिये वहां से एक स्त्री ले आए।

8 और यदि वह स्त्री तेरे साथ आना न चाहे तब तो तू मेरी इस शपथ से छूट जाएगा: पर मेरे पुत्र को वहां न ले जाना।

9 तब उस दास ने अपने स्वामी इब्राहीम की जांघ के नीचे अपना हाथ रखकर उससे इसी विषय की शपथ खाई।

10 तब वह दास अपने स्वामी के ऊंटो में से दस ऊंट छांटकर उसके सब उत्तम उत्तम पदार्थों में से कुछ कुछ ले कर चला: और मसोपोटामिया में नाहोर के नगर के पास पहुंचा।

11 और उसने ऊंटों को नगर के बाहर एक कुएं के पास बैठाया, वह संध्या का समय था, जिस समय स्त्रियां जल भरने के लिये निकलती हैं।

12 सो वह कहने लगा, हे मेरे स्वामी इब्राहीम के परमेश्वर, यहोवा, आज मेरे कार्य को सिद्ध कर, और मेरे स्वामी इब्राहीम पर करूणा कर।

13 देख मैं जल के इस सोते के पास खड़ा हूं; और नगरवासियों की बेटियां जल भरने के लिये निकली आती हैं:

14 सो ऐसा होने दे, कि जिस कन्या से मैं कहूं, कि अपना घड़ा मेरी ओर झुका, कि मैं पीऊं; और वह कहे, कि ले, पी ले, पीछे मैं तेरे ऊंटो को भी पीलाऊंगी: सो वही हो जिसे तू ने अपने दास इसहाक के लिये ठहराया हो; इसी रीति मैं जान लूंगा कि तू ने मेरे स्वामी पर करूणा की है।

15 और ऐसा हुआ कि जब वह कह ही रहा था कि रिबका, जो इब्राहीम के भाई नाहोर के जन्माये मिल्का के पुत्र, बतूएल की बेटी थी, वह कन्धे पर घड़ा लिये हुए आई।

16 वह अति सुन्दर, और कुमारी थी, और किसी पुरूष का मुंह न देखा था: वह कुएं में सोते के पास उतर गई, और अपना घड़ा भर के फिर ऊपर आई।

17 तब वह दास उससे भेंट करने को दौड़ा, और कहा, अपने घड़े में से थोड़ा पानी मुझे पिला दे।

18 उसने कहा, हे मेरे प्रभु, ले, पी ले: और उसने फुर्ती से घड़ा उतार कर हाथ में लिये लिये उसको पिला दिया।

19 जब वह उसको पिला चुकी, तक कहा, मैं तेरे ऊंटों के लिये भी तब तक पानी भर भर लाऊंगी, जब तक वे पी न चुकें।

20 तब वह फुर्ती से अपने घड़े का जल हौदे में उण्डेल कर फिर कुएं पर भरने को दौड़ गई; और उसके सब ऊंटों के लिये पानी भर दिया।

21 और वह पुरूष उसकी ओर चुपचाप अचम्भे के साथ ताकता हुआ यह सोचता था, कि यहोवा ने मेरी यात्रा को सफल किया है कि नहीं।

22 जब ऊंट पी चुके, तब उस पुरूष ने आध तोले सोने का एक नथ निकाल कर उसको दिया, और दस तोले सोने के कंगन उसके हाथों में पहिना दिए;

23 और पूछा, तू किस की बेटी है? यह मुझ को बता दे। क्या तेरे पिता के घर में हमारे टिकने के लिये स्थान है?

24 उसने उत्तर दिया, मैं तो नाहोर के जन्माए मिल्का के पुत्र बतूएल की बेटी हूं।

25 फिर उस ने उस से कहा, हमारे यहां पुआल और चारा बहुत है, और टिकने के लिये स्थान भी है।

26 तब उस पुरूष ने सिर झुका कर यहोवा को दण्डवत करके कहा,

27 धन्य है मेरे स्वामी इब्राहीम का परमेश्वर यहोवा, कि उसने अपनी करूणा और सच्चाई को मेरे स्वामी पर से हटा नहीं लिया: यहोवा ने मुझ को ठीक मार्ग पर चला कर मेरे स्वामी के भाई बन्धुओं के घर पर पहुचा दिया है।

28 और उस कन्या ने दौड़ कर अपनी माता के घर में यह सारा वृत्तान्त कह सुनाया।

29 तब लाबान जो रिबका का भाई था, सो बाहर कुएं के निकट उस पुरूष के पास दौड़ा गया।

30 और ऐसा हुआ कि जब उसने वह नथ और अपनी बहिन रिबका के हाथों में वे कंगन भी देखे, और उसकी यह बात भी सुनी, कि उस पुरूष ने मुझ से ऐसी बातें कहीं; तब वह उस पुरूष के पास गया; और क्या देखा, कि वह सोते के निकट ऊंटों के पास खड़ा है।

31 उसने कहा, हे यहोवा की ओर से धन्य पुरूष भीतर आ: तू क्यों बाहर खड़ा है? मैं ने घर को, और ऊंटो के लिये भी स्थान तैयार किया है।

32 और वह पुरूष घर में गया; और लाबान ने ऊंटों की काठियां खोल कर पुआल और चारा दिया; और उसके, और उसके संगी जनो के पांव धोने को जल दिया।

33 तब इब्राहीम के दास के आगे जलपान के लिये कुछ रखा गया: पर उसने कहा मैं जब तक अपना प्रयोजन न कह दूं, तब तक कुछ न खाऊंगा। लाबान ने कहा, कह दे।

34 तब उसने कहा, मैं तो इब्राहीम का दास हूं।

35 और यहोवा ने मेरे स्वामी को बड़ी आशीष दी है; सो वह महान पुरूष हो गया है; और उसने उसको भेड़-बकरी, गाय-बैल, सोना-रूपा, दास-दासियां, ऊंट और गदहे दिए हैं।

36 और मेरे स्वामी की पत्नी सारा के बुढ़ापे में उससे एक पुत्र उत्पन्न हुआ है। और उस पुत्र को इब्राहीम ने अपना सब कुछ दे दिया है।

37 और मेरे स्वामी ने मुझे यह शपथ खिलाई, कि मैं उसके पुत्र के लिये कनानियों की लड़कियों में से जिन के देश में वह रहता है, कोई स्त्री न ले आऊंगा।

38 मैं उसके पिता के घर, और कुल के लोगों के पास जा कर उसके पुत्र के लिये एक स्त्री ले आऊंगा।

39 तब मैं ने अपने स्वामी से कहा, कदाचित वह स्त्री मेरे पीछे न आए।

40 तब उसने मुझ से कहा, यहोवा, जिसके साम्हने मैं चलता आया हूं, वह तेरे संग अपने दूत को भेज कर तेरी यात्रा को सफल करेगा; सो तू मेरे कुल, और मेरे पिता के घराने में से मेरे पुत्र के लिये एक स्त्री ले आ सकेगा।

41 तू तब ही मेरी इस शपथ से छूटेगा, जब तू मेरे कुल के लोगों के पास पहुंचेगा; अर्थात यदि वे मुझे कोई स्त्री न दें, तो तू मेरी शपथ से छूटेगा।

42 सो मैं आज उस कुएं के निकट आकर कहने लगा, हे मेरे स्वामी इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा, यदि तू मेरी इस यात्रा को सफल करता हो:

43 तो देख मैं जल के इस कुएं के निकट खड़ा हूं; सो ऐसा हो, कि जो कुमारी जल भरने के लिये निकल आए, और मैं उससे कहूं, अपने घड़े में से मुझे थोड़ा पानी पिला;

44 और वह मुझ से कहे, पी ले और मैं तेरे ऊंटो के पीने के लिये भी पानी भर दूंगी: वह वही स्त्री हो जिस को तू ने मेरे स्वामी के पुत्र के लिये ठहराया हो।

45 मैं मन ही मन यह कह ही रहा था, कि देख रिबका कन्धे पर घड़ा लिये हुए निकल आई; फिर वह सोते के पास उतर के भरने लगी: और मैं ने उससे कहा, मुझे पिला दे।

46 और उसने फुर्ती से अपने घड़े को कन्धे पर से उतार के कहा, ले, पी ले, पीछे मैं तेरे ऊंटों को भी पिलाऊंगी: सो मैं ने पी लिया, और उसने ऊंटों को भी पिला दिया।

47 तब मैं ने उससे पूछा, कि तू किस की बेटी है? और उसने कहा, मैं तो नाहोर के जन्माए मिल्का के पुत्र बतूएल की बेटी हूं: तब मैं ने उसकी नाक में वह नथ, और उसके हाथों में वे कंगन पहिना दिए।

48 फिर मैं ने सिर झुका कर यहोवा को दण्डवत किया, और अपने स्वामी इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा को धन्य कहा, क्योंकि उसने मुझे ठीक मार्ग से पहुंचाया कि मैं अपने स्वामी के पुत्र के लिये उसकी भतीजी को ले जाऊं।

49 सो अब, यदि तू मेरे स्वामी के साथ कृपा और सच्चाई का व्यवहार करना चाहते हो, तो मुझ से कहो: और यदि नहीं चाहते हो, तौभी मुझ से कह दो; ताकि मैं दाहिनी ओर, वा बाईं ओर फिर जाऊं।

50 तब लाबान और बतूएल ने उत्तर दिया, यह बात यहोवा की ओर से हुई है: सो हम लोग तुझ से न तो भला कह सकते हैं न बुरा।

51 देख, रिबका तेरे साम्हने है, उसको ले जा, और वह यहोवा के वचन के अनुसार, तेरे स्वामी के पुत्र की पत्नी हो जाए।

52 उनका यह वचन सुनकर, इब्राहीम के दास ने भूमि पर गिर के यहोवा को दण्डवत किया।

53 फिर उस दास ने सोने और रूपे के गहने, और वस्त्र निकाल कर रिबका को दिए: और उसके भाई और माता को भी उसने अनमोल अनमोल वस्तुएं दी।

54 तब उसने अपने संगी जनों समेत भोजन किया, और रात वहीं बिताई: और तड़के उठ कर कहा, मुझ को अपने स्वामी के पास जाने के लिये विदा करो।

55 रिबका के भाई और माता ने कहा, कन्या को हमारे पास कुछ दिन, अर्थात कम से कम दस दिन रहने दे; फिर उसके पश्चात वह चली जाएगी।

56 उसने उन से कहा, यहोवा ने जो मेरी यात्रा को सफल किया है; सो तुम मुझे मत रोको अब मुझे विदा कर दो, कि मैं अपने स्वामी के पास जाऊं।

57 उन्होंने कहा, हम कन्या को बुला कर पूछते हैं, और देखेंगे, कि वह क्या कहती है।

58 सो उन्होंने रिबका को बुला कर उससे पूछा, क्या तू इस मनुष्य के संग जाएगी? उसने कहा, हां मैं जाऊंगी।

59 तब उन्होंने अपनी बहिन रिबका, और उसकी धाय और इब्राहीम के दास, और उसके साथी सभों को विदा किया।

60 और उन्होंने रिबका को आशीर्वाद दे के कहा, हे हमारी बहिन, तू हजारों लाखों की आदिमाता हो, और तेरा वंश अपने बैरियों के नगरों का अधिकारी हो।

61 इस पर रिबका अपनी सहेलियों समेत चली; और ऊंट पर चढ़ के उस पुरूष के पीछे हो ली: सो वह दास रिबका को साथ ले कर चल दिया।

62 इसहाक जो दक्खिन देश में रहता था, सो लहैरोई नाम कुएं से हो कर चला आता था।

63 और सांझ के समय वह मैदान में ध्यान करने के लिये निकला था: और उसने आंखे उठा कर क्या देखा, कि ऊंट चले आ रहे हैं।

64 और रिबका ने भी आंख उठा कर इसहाक को देखा, और देखते ही ऊंट पर से उतर पड़ी

65 तब उसने दास से पूछा, जो पुरूष मैदान पर हम से मिलने को चला आता है, सो कौन है? दास ने कहा, वह तो मेरा स्वामी है। तब रिबका ने घूंघट ले कर अपने मुंह को ढ़ाप लिया।

66 और दास ने इसहाक से अपना सारा वृत्तान्त वर्णन किया।

67 तब इसहाक रिबका को अपनी माता सारा के तम्बू में ले आया, और उसको ब्याह कर उससे प्रेम किया: और इसहाक को माता की मृत्यु के पश्चात शान्ति हुई॥

 उत्पत्ति - अध्याय 25

1 तब इब्राहीम ने एक और पत्नी ब्याह ली जिसका नाम कतूरा था।

2 और उससे जिम्रान, योक्षान, मदना, मिद्यान, यिशबाक, और शूह उत्पन्न हुए।

3 और योक्षान से शबा और ददान उत्पन्न हुए। और ददान के वंश में अश्शूरी, लतूशी, और लुम्मी लोग हुए।

4 और मिद्यान के पुत्र एपा, एपेर, हनोक, अबीदा, और एल्दा हुए, से सब कतूरा के सन्तान हुए।

5 इसहाक को तो इब्राहीम ने अपना सब कुछ दिया।

6 पर अपनी रखेलियों के पुत्रों को, कुछ कुछ दे कर अपने जीते जी अपने पुत्र इसहाक के पास से पूरब देश में भेज दिया।

7 इब्राहीम की सारी अवस्था एक सौ पचहत्तर वर्ष की हुई।

8 और इब्राहीम का दीर्घायु होने के कारण अर्थात पूरे बुढ़ापे की अवस्था में प्राण छूट गया। और वह अपने लोगों में जा मिला।

9 और उसके पुत्र इसहाक और इश्माएल ने, हित्ती सोहर के पुत्र एप्रोन की मम्रे के सम्मुख वाली भूमि में, जो मकपेला की गुफा थी, उस में उसको मिट्टी दी गई।

10 अर्थात जो भूमि इब्राहीम ने हित्तियों से मोल ली थी: उसी में इब्राहीम, और उस की पत्नी सारा, दोनों को मिट्टी दी गई।

11 इब्राहीम के मरने के पश्चात परमेश्वर ने उसके पुत्र इसहाक को जो लहैरोई नाम कुएं के पास रहता था आशीष दी॥

12 इब्राहीम का पुत्र इश्माएल जो सारा की लौंडी हाजिरा मिस्री से उत्पन्न हुआ था, उसकी यह वंशावली है।

13 इश्माएल के पुत्रों के नाम और वंशावली यह है: अर्थात इश्माएल का जेठा पुत्र नबायोत, फिर केदार, अद्बेल, मिबसाम,

14 मिश्मा, दूमा, मस्सा,

15 हदर, तेमा, यतूर, नपीश, और केदमा।

16 इश्माएल के पुत्र ये ही हुए, और इन्हीं के नामों के अनुसार इनके गांवों, और छावनियों के नाम भी पड़े; और ये ही बारह अपने अपने कुल के प्रधान हुए।

17 इश्माएल की सारी अवस्था एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई: तब उसके प्राण छूट गए, और वह अपने लोगों में जा मिला।

18 और उसके वंश हवीला से शूर तक, जो मिस्र के सम्मुख अश्शूर् के मार्ग में है, बस गए। और उनका भाग उनके सब भाई बन्धुओं के सम्मुख पड़ा॥

19 इब्राहीम के पुत्र इसहाक की वंशावली यह है: इब्राहीम से इसहाक उत्पन्न हुआ।

20 और इसहाक ने चालीस वर्ष का हो कर रिबका को, जो पद्दनराम के वासी, अरामी बतूएल की बेटी, और अरामी लाबान की बहिन भी, ब्याह लिया।

21 इसहाक की पत्नी तो बांझ थी, सो उस ने उस के निमित्त यहोवा से बिनती की: और यहोवा ने उसकी बिनती सुनी, सो उसकी पत्नी रिबका गर्भवती हुई।

22 और लड़के उसके गर्भ में आपस में लिपट के एक दूसरे को मारने लगे: तब उसने कहा, मेरी जो ऐसी ही दशा रहेगी तो मैं क्योंकर जीवित रहूंगी? और वह यहोवा की इच्छा पूछने को गई।

23 तब यहोवा ने उससे कहा तेरे गर्भ में दो जातियां हैं, और तेरी कोख से निकलते ही दो राज्य के लोग अलग अलग होंगे, और एक राज्य के लोग दूसरे से अधिक सामर्थी होंगे और बड़ा बेटा छोटे के आधीन होगा।

24 जब उसके पुत्र उत्पन्न होने का समय आया, तब क्या प्रगट हुआ, कि उसके गर्भ में जुड़वें बालक हैं।

25 और पहिला जो उत्पन्न हुआ सो लाल निकला, और उसका सारा शरीर कम्बल के समान रोममय था; सो उसका नाम ऐसाव रखा गया।

26 पीछे उसका भाई अपने हाथ से ऐसाव की एड़ी पकड़े हुए उत्पन्न हुआ; और उसका नाम याकूब रखा गया। और जब रिबका ने उन को जन्म दिया तब इसहाक साठ वर्ष का था।

27 फिर वे लड़के बढ़ने लगे और ऐसाव तो वनवासी हो कर चतुर शिकार खेलने वाला हो गया, पर याकूब सीधा मनुष्य था, और तम्बुओं में रहा करता था।

28 और इसहाक तो ऐसाव के अहेर का मांस खाया करता था, इसलिये वह उससे प्रीति रखता था: पर रिबका याकूब से प्रीति रखती थी॥

29 याकूब भोजन के लिये कुछ दाल पका रहा था: और ऐसाव मैदान से थका हुआ आया।

30 तब ऐसाव ने याकूब से कहा, वह जो लाल वस्तु है, उसी लाल वस्तु में से मुझे कुछ खिला, क्योंकि मैं थका हूं। इसी कारण उसका नाम एदोम भी पड़ा।

31 याकूब ने कहा, अपना पहिलौठे का अधिकार आज मेरे हाथ बेच दे।

32 ऐसाव ने कहा, देख, मैं तो अभी मरने पर हूं: सो पहिलौठे के अधिकार से मेरा क्या लाभ होगा?

33 याकूब ने कहा, मुझ से अभी शपथ खा: सो उसने उससे शपथ खाई: और अपना पहिलौठे का अधिकार याकूब के हाथ बेच डाला।

34 इस पर याकूब ने ऐसाव को रोटी और पकाई हुई मसूर की दाल दी; और उसने खाया पिया, तब उठ कर चला गया। यों ऐसाव ने अपना पहिलौठे का अधिकार तुच्छ जाना॥

 उत्पत्ति - अध्याय 26

1 और उस देश में अकाल पड़ा, वह उस पहिले अकाल से अलग था जो इब्राहीम के दिनों में पड़ा था। सो इसहाक गरार को पलिश्तियों के राजा अबीमेलेक के पास गया।

2 वहां यहोवा ने उसको दर्शन देकर कहा, मिस्र में मत जा; जो देश मैं तुझे बताऊं उसी में रह।

3 तू इसी देश में रह, और मैं तेरे संग रहूंगा, और तुझे आशीष दूंगा; और ये सब देश मैं तुझ को, और तेरे वंश को दूंगा; और जो शपथ मैं ने तेरे पिता इब्राहीम से खाई थी, उसे मैं पूरी करूंगा।

4 और मैं तेरे वंश को आकाश के तारागण के समान करूंगा। और मैं तेरे वंश को ये सब देश दूंगा, और पृथ्वी की सारी जातियां तेरे वंश के कारण अपने को धन्य मानेंगी।

5 क्योंकि इब्राहीम ने मेरी मानी, और जो मैं ने उसे सौंपा था उसको और मेरी आज्ञाओं विधियों, और व्यवस्था का पालन किया।

6 सो इसहाक गरार में रह गया।

7 जब उस स्थान के लोगों ने उसकी पत्नी के विषय में पूछा, तब उसने यह सोच कर कि यदि मैं उसको अपनी पत्नी कहूं, तो यहां के लोग रिबका के कारण जो परमसुन्दरी है मुझ को मार डालेंगे, उत्तर दिया, वह तो मेरी बहिन है।

8 जब उसको वहां रहते बहुत दिन बीत गए, तब एक दिन पलिश्तियों के राजा अबीमेलेक ने खिड़की में से झांक के क्या देखा, कि इसहाक अपनी पत्नी रिबका के साथ क्रीड़ा कर रहा है।

9 तब अबीमेलेक ने इसहाक को बुलवा कर कहा, वह तो निश्चय तेरी पत्नी है; फिर तू ने क्योंकर उसको अपनी बहिन कहा? इसहाक ने उत्तर दिया, मैं ने सोचा था, कि ऐसा न हो कि उसके कारण मेरी मृत्यु हो।

10 अबीमेलेक ने कहा, तू ने हम से यह क्या किया? ऐसे तो प्रजा में से कोई तेरी पत्नी के साथ सहज से कुकर्म कर सकता, और तू हम को पाप में फंसाता।

11 और अबीमेलेक ने अपनी सारी प्रजा को आज्ञा दी, कि जो कोई उस पुरूष को वा उस स्त्री को छूएगा, सो निश्चय मार डाला जाएगा।

12 फिर इसहाक ने उस देश में जोता बोया, और उसी वर्ष में सौ गुणा फल पाया: और यहोवा ने उसको आशीष दी।

13 और वह बढ़ा और उसकी उन्नति होती चली गई, यहां तक कि वह अति महान पुरूष हो गया।

14 जब उसके भेड़-बकरी, गाय-बैल, और बहुत से दास-दासियां हुई, तब पलिश्ती उससे डाह करने लगे।

15 सो जितने कुओं को उसके पिता इब्राहीम के दासों ने इब्राहीम के जीते जी खोदा था, उन को पलिश्तियों ने मिट्टी से भर दिया।

16 तब अबीमेलेक ने इसहाक से कहा, हमारे पास से चला जा; क्योंकि तू हम से बहुत सामर्थी हो गया है।

17 सो इसहाक वहां से चला गया, और गरार के नाले में तम्बू खड़ा करके वहां रहने लगा।

18 तब जो कुएं उसके पिता इब्राहीम के दिनों में खोदे गए थे, और इब्राहीम के मरने के पीछे पलिश्तियों ने भर दिए थे, उन को इसहाक ने फिर से खुदवाया; और उनके वे ही नाम रखे, जो उसके पिता ने रखे थे।

19 फिर इसहाक के दासों को नाले में खोदते खोदते बहते जल का एक सोता मिला।

20 तब गरारी चरवाहों ने इसहाक के चरवाहों से झगड़ा किया, और कहा, कि यह जल हमारा है। सो उसने उस कुएं का नाम एसेक रखा इसलिये कि वे उससे झगड़े थे।

21 फिर उन्होंने दूसरा कुआं खोदा; और उन्होंने उसके लिये भी झगड़ा किया, सो उसने उसका नाम सित्रा रखा।

22 तब उसने वहां से कूच करके एक और कुआं खुदवाया; और उसके लिये उन्होंने झगड़ा न किया; सो उसने उसका नाम यह कह कर रहोबोत रखा, कि अब तो यहोवा ने हमारे लिये बहुत स्थान दिया है, और हम इस देश में फूलें-फलेंगे।

23 वहां से वह बेर्शेबा को गया।

24 और उसी दिन यहोवा ने रात को उसे दर्शन देकर कहा, मैं तेरे पिता इब्राहीम का परमेश्वर हूं; मत डर, क्योंकि मैं तेरे साथ हूं, और अपने दास इब्राहीम के कारण तुझे आशीष दूंगा, और तेरा वंश बढ़ाऊंगा

25 तब उसने वहां एक वेदी बनाई, और यहोवा से प्रार्थना की, और अपना तम्बू वहीं खड़ा किया; और वहां इसहाक के दासों ने एक कुआं खोदा।

26 तब अबीमेलेक अपने मित्र अहुज्जत, और अपने सेनापति पीकोल को संग ले कर, गरार से उसके पास गया।

27 इसहाक ने उन से कहा, तुम ने मुझ से बैर करके अपने बीच से निकाल दिया था; सो अब मेरे पास क्यों आए हो?

28 उन्होंने कहा, हम ने तो प्रत्यक्ष देखा है, कि यहोवा तेरे साथ रहता है: सो हम ने सोचा, कि तू तो यहोवा की ओर से धन्य है, सो हमारे तेरे बीच में शपथ खाई जाए, और हम तुझ से इस विषय की वाचा बन्धाएं;

29 कि जैसे हम ने तुझे नहीं छूआ, वरन तेरे साथ निरी भलाई की है, और तुझ को कुशल क्षेम से विदा किया, उसके अनुसार तू भी हम से कोई बुराई न करेगा।

30 तब उसने उनकी जेवनार की, और उन्होंने खाया पिया।

31 बिहान को उन सभों ने तड़के उठ कर आपस में शपथ खाई; तब इसहाक ने उन को विदा किया, और वे कुशल क्षेम से उसके पास से चले गए।

32 उसी दिन इसहाक के दासों ने आकर अपने उस खोदे हुए कुएं का वृत्तान्त सुना के कहा, कि हम को जल का एक सोता मिला है।

33 तब उसने उसका नाम शिबा रखा: इसी कारण उस नगर का नाम आज तक बेर्शेबा पड़ा है॥

34 जब ऐसाव चालीस वर्ष का हुआ, तब उसने हित्ती बेरी की बेटी यहूदीत, और हित्ती एलोन की बेटी बाशमत को ब्याह लिया।

35 और इन स्त्रियों के कारण इसहाक और रिबका के मन को खेद हुआ॥

 उत्पत्ति - अध्याय 27

1 जब इसहाक बूढ़ा हो गया, और उसकी आंखें ऐसी धुंधली पड़ गईं, कि उसको सूझता न था, तब उसने अपने जेठे पुत्र ऐसाव को बुला कर कहा, हे मेरे पुत्र; उसने कहा, क्या आज्ञा।

2 उसने कहा, सुन, मैं तो बूढ़ा हो गया हूं, और नहीं जानता कि मेरी मृत्यु का दिन कब होगा:

3 सो अब तू अपना तरकश और धनुष आदि हथियार ले कर मैदान में जा, और मेरे लिये हिरन का अहेर कर ले आ।

4 तब मेरी रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बना कर मेरे पास ले आना, कि मैं उसे खा कर मरने से पहले तुझे जी भर के आशीर्वाद दूं।

5 तब ऐसाव अहेर करने को मैदान में गया। जब इसहाक ऐसाव से यह बात कह रहा था, तब रिबका सुन रही थी।

6 सो उसने अपने पुत्र याकूब से कहा सुन, मैं ने तेरे पिता को तेरे भाई ऐसाव से यह कहते सुना,

7 कि तू मेरे लिये अहेर कर के उसका स्वादिष्ट भोजन बना, कि मैं उसे खा कर तुझे यहोवा के आगे मरने से पहिले आशीर्वाद दूं

8 सो अब, हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और यह आज्ञा मान,

9 कि बकरियों के पास जा कर बकरियों के दो अच्छे अच्छे बच्चे ले आ; और मैं तेरे पिता के लिये उसकी रूचि के अनुसार उन के मांस का स्वादिष्ट भोजन बनाऊंगी।

10 तब तू उसको अपने पिता के पास ले जाना, कि वह उसे खा कर मरने से पहिले तुझ को आशीर्वाद दे।

11 याकूब ने अपनी माता रिबका से कहा, सुन, मेरा भाई ऐसाव तो रोंआर पुरूष है, और मैं रोमहीन पुरूष हूं।

12 कदाचित मेरा पिता मुझे टटोलने लगे, तो मैं उसकी दृष्टि में ठग ठहरूंगा; और आशीष के बदले शाप ही कमाऊंगा।

13 उसकी माता ने उससे कहा, हे मेरे, पुत्र, शाप तुझ पर नहीं मुझी पर पड़े, तू केवल मेरी सुन, और जा कर वे बच्चे मेरे पास ले आ।

14 तब याकूब जा कर उन को अपनी माता के पास ले आया, और माता ने उसके पिता की रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बना दिया।

15 तब रिबका ने अपने पहिलौठे पुत्र ऐसाव के सुन्दर वस्त्र, जो उसके पास घर में थे, ले कर अपने लहुरे पुत्र याकूब को पहिना दिए।

16 और बकरियों के बच्चों की खालों को उसके हाथों में और उसके चिकने गले में लपेट दिया।

17 और वह स्वादिष्ट भोजन और अपनी बनाई हुई रोटी भी अपने पुत्र याकूब के हाथ में दे दी।

18 सो वह अपने पिता के पास गया, और कहा, हे मेरे पिता: उसने कहा क्या बात है? हे मेरे पुत्र, तू कौन है?

19 याकूब ने अपने पिता से कहा, मैं तेरा जेठा पुत्र ऐसाव हूं। मैं ने तेरी आज्ञा के अनुसार किया है; सो उठ और बैठ कर मेरे अहेर के मांस में से खा, कि तू जी से मुझे आशीर्वाद दे।

20 इसहाक ने अपने पुत्र से कहा, हे मेरे पुत्र, क्या कारण है कि वह तुझे इतनी जल्दी मिल गया? उसने यह उत्तर दिया, कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने उसको मेरे साम्हने कर दिया।

21 फिर इसहाक ने याकूब से कहा, हे मेरे पुत्र, निकट आ, मैं तुझे टटोल कर जानूं, कि तू सचमुच मेरा पुत्र ऐसाव है या नहीं।

22 तब याकूब अपने पिता इसहाक के निकट गया, और उसने उसको टटोल कर कहा, बोल तो याकूब का सा है, पर हाथ ऐसाव ही के से जान पड़ते हैं।

23 और उसने उसको नहीं चीन्हा, क्योंकि उसके हाथ उसके भाई के से रोंआर थे। सो उस ने उसको आशीर्वाद दिया

24 और उसने पूछा, क्या तू सचमुच मेरा पुत्र ऐसाव है? उसने कहा हां मैं हूं।

25 तब उसने कहा, भोजन को मेरे निकट ले आ, कि मैं, अपने पुत्र के अहेर के मांस में से खाकर, तुझे जी से आशीर्वाद दूं। तब वह उसको उसके निकट ले आया, और उसने खाया; और वह उसके पास दाखमधु भी लाया, और उसने पिया।

26 तब उसके पिता इसहाक ने उससे कहा, हे मेरे पुत्र निकट आकर मुझे चूम।

27 उसने निकट जा कर उसको चूमा। और उसने उसके वस्त्रों की सुगन्ध पाकर उसको य़ह आशीर्वाद दिया, कि देख, मेरे पुत्र का सुगन्ध जो ऐसे खेत का सा है जिस पर यहोवा ने आशीष दी हो:

28 सो परमेश्वर तुझे आकाश से ओस, और भूमि की उत्तम से उत्तम उपज, और बहुत सा अनाज और नया दाखमधु दे:

29 राज्य राज्य के लोग तेरे आधीन हों, और देश देश के लोग तुझे दण्डवत करें: तू अपने भाइयों का स्वामी हो, और तेरी माता के पुत्र तुझे दण्डवत करें: जो तुझे शाप दें सो आप ही स्रापित हों, और जो तुझे आशीर्वाद दें सो आशीष पाएं॥

30 यह आशीर्वाद इसहाक याकूब को दे ही चुका, और याकूब अपने पिता इसहाक के साम्हने से निकला ही था, कि ऐसाव अहेर ले कर आ पहुंचा।

31 तब वह भी स्वादिष्ट भोजन बना कर अपने पिता के पास ले आया, और उस से कहा, हे मेरे पिता, उठ कर अपने पुत्र के अहेर का मांस खा, ताकि मुझे जी से आशीर्वाद दे।

32 उसके पिता इसहाक ने पूछा, तू कौन है? उसने कहा, मैं तेरा जेठा पुत्र ऐसाव हूं।

33 तब इसहाक ने अत्यन्त थरथर कांपते हुए कहा, फिर वह कौन था जो अहेर करके मेरे पास ले आया था, और मैं ने तेरे आने से पहिले सब में से कुछ कुछ खा लिया और उसको आशीर्वाद दिया? वरन उसको आशीष लगी भी रहेगी।

34 अपने पिता की यह बात सुनते ही ऐसाव ने अत्यन्त ऊंचे और दु:ख भरे स्वर से चिल्लाकर अपने पिता से कहा, हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे।

35 उसने कहा, तेरा भाई धूर्तता से आया, और तेरे आशीर्वाद को लेके चला गया।

36 उसने कहा, क्या उसका नाम याकूब यथार्थ नहीं रखा गया? उसने मुझे दो बार अड़ंगा मारा, मेरा पहिलौठे का अधिकार तो उसने ले ही लिया था: और अब देख, उसने मेरा आशीर्वाद भी ले लिया है: फिर उसने कहा, क्या तू ने मेरे लिये भी कोई आशीर्वाद नहीं सोच रखा है?

37 इसहाक ने ऐसाव को उत्तर देकर कहा, सुन, मैं ने उसको तेरा स्वामी ठहराया, और उसके सब भाइयों को उसके आधीन कर दिया, और अनाज और नया दाखमधु देकर उसको पुष्ट किया है: सो अब, हे मेरे पुत्र, मैं तेरे लिये क्या करूं?

38 ऐसाव ने अपने पिता से कहा हे मेरे पिता, क्या तेरे मन में एक ही आशीर्वाद है? हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे: यों कह कर ऐसाव फूट फूट के रोया।

39 उसके पिता इसहाक ने उससे कहा, सुन, तेरा निवास उपजाऊ भूमि पर हो, और ऊपर से आकाश की ओस उस पर पड़े॥

40 और तू अपनी तलवार के बल से जीवित रहे, और अपने भाई के आधीन तो होए, पर जब तू स्वाधीन हो जाएगा, तब उसके जूए को अपने कन्धे पर से तोड़ फेंके।

41 ऐसाव ने तो याकूब से अपने पिता के दिए हुए आशीर्वाद के कारण बैर रखा; सो उसने सोचा, कि मेरे पिता के अन्तकाल का दिन निकट है, फिर मैं अपने भाई याकूब को घात करूंगा।

42 जब रिबका को अपने पहिलौठे पुत्र ऐसाव की ये बातें बताई गईं, तब उसने अपने लहुरे पुत्र याकूब को बुला कर कहा, सुन, तेरा भाई ऐसाव तुझे घात करने के लिये अपने मन को धीरज दे रहा है।

43 सो अब, हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और हारान को मेरे भाई लाबान के पास भाग जा ;

44 और थोड़े दिन तक, अर्थात जब तक तेरे भाई का क्रोध न उतरे तब तक उसी के पास रहना।

45 फिर जब तेरे भाई का क्रोध तुझ पर से उतरे, और जो काम तू ने उस से किया है उसको वह भूल जाए; तब मैं तुझे वहां से बुलवा भेजूंगी: ऐसा क्यों हो कि एक ही दिन में मुझे तुम दोनों से रहित होना पड़े?

46 फिर रिबका ने इसहाक से कहा, हित्ती लड़कियों के कारण मैं अपने प्राण से घिन करती हूं; सो यदि ऐसी हित्ती लड़कियों में से, जैसी इस देश की लड़कियां हैं, याकूब भी एक को कहीं ब्याह ले, तो मेरे जीवन में क्या लाभ होगा?

 उत्पत्ति - अध्याय 28

1 तब इसहाक ने याकूब को बुलाकर आशीर्वाद दिया, और आज्ञा दी, कि तू किसी कनानी लड़की को न ब्याह लेना।

2 पद्दनराम में अपने नाना बतूएल के घर जा कर वहां अपने मामा लाबान की एक बेटी को ब्याह लेना।

3 और सर्वशक्तिमान ईश्वर तुझे आशीष दे, और फुला-फला कर बढ़ाए, और तू राज्य राज्य की मण्डली का मूल हो।

4 और वह तुझे और तेरे वंश को भी इब्राहीम की सी आशीष दे, कि तू यह देश जिस में तू परदेशी हो कर रहता है, और जिसे परमेश्वर ने इब्राहीम को दिया था, उसका अधिकारी हो जाए।

5 और इसहाक ने याकूब को विदा किया, और वह पद्दनराम को अरामी बतूएल के उस पुत्र लाबान के पास चला, जो याकूब और ऐसाव की माता रिबका का भाई था।

6 जब इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद देकर पद्दनराम भेज दिया, कि वह वहीं से पत्नी ब्याह लाए, और उसको आशीर्वाद देने के समय यह आज्ञा भी दी, कि तू किसी कनानी लड़की को ब्याह न लेना;

7 और याकूब माता पिता की मान कर पद्दनराम को चल दिया;

8 तब ऐसाव यह सब देख के और यह भी सोच कर, कि कनानी लड़कियां मेरे पिता इसहाक को बुरी लगती हैं,

9 इब्राहीम के पुत्र इश्माएल के पास गया, और इश्माएल की बेटी महलत को, जो नबायोत की बहिन थी, ब्याह कर अपनी पत्नियों में मिला लिया॥

10 सो याकूब बेर्शेबा से निकल कर हारान की ओर चला।

11 और उसने किसी स्थान में पहुंच कर रात वहीं बिताने का विचार किया, क्योंकि सूर्य अस्त हो गया था; सो उसने उस स्थान के पत्थरों में से एक पत्थर ले अपना तकिया बना कर रखा, और उसी स्थान में सो गया।

12 तब उसने स्वप्न में क्या देखा, कि एक सीढ़ी पृथ्वी पर खड़ी है, और उसका सिरा स्वर्ग तक पहुंचा है: और परमेश्वर के दूत उस पर से चढ़ते उतरते हैं।

13 और यहोवा उसके ऊपर खड़ा हो कर कहता है, कि मैं यहोवा, तेरे दादा इब्राहीम का परमेश्वर, और इसहाक का भी परमेश्वर हूं: जिस भूमि पर तू पड़ा है, उसे मैं तुझ को और तेरे वंश को दूंगा।

14 और तेरा वंश भूमि की धूल के किनकों के समान बहुत होगा, और पच्छिम, पूरब, उत्तर, दक्खिन, चारों ओर फैलता जाएगा: और तेरे और तेरे वंश के द्वारा पृथ्वी के सारे कुल आशीष पाएंगे।

15 और सुन, मैं तेरे संग रहूंगा, और जहां कहीं तू जाए वहां तेरी रक्षा करूंगा, और तुझे इस देश में लौटा ले आऊंगा: मैं अपने कहे हुए को जब तक पूरा न कर लूं तब तक तुझ को न छोडूंगा।

16 तब याकूब जाग उठा, और कहने लगा; निश्चय इस स्थान में यहोवा है; और मैं इस बात को न जानता था।

17 और भय खा कर उसने कहा, यह स्थान क्या ही भयानक है! यह तो परमेश्वर के भवन को छोड़ और कुछ नहीं हो सकता; वरन यह स्वर्ग का फाटक ही होगा।

18 भोर को याकूब तड़के उठा, और अपने तकिए का पत्थर ले कर उसका खम्भा खड़ा किया, और उसके सिरे पर तेल डाल दिया।

19 और उसने उस स्थान का नाम बेतेल रखा; पर उस नगर का नाम पहिले लूज था।

20 और याकूब ने यह मन्नत मानी, कि यदि परमेश्वर मेरे संग रहकर इस यात्रा में मेरी रक्षा करे, और मुझे खाने के लिये रोटी, और पहिनने के लिये कपड़ा दे,

21 और मैं अपने पिता के घर में कुशल क्षेम से लौट आऊं: तो यहोवा मेरा परमेश्वर ठहरेगा।

22 और यह पत्थर, जिसका मैं ने खम्भा खड़ा किया है, परमेश्वर का भवन ठहरेगा: और जो कुछ तू मुझे दे उसका दशमांश मैं अवश्य ही तुझे दिया करूंगा॥

 उत्पत्ति - अध्याय 29

1 फिर याकूब ने अपना मार्ग लिया, और पूर्व्वियों के देश में आया।

2 और उसने दृष्टि करके क्या देखा, कि मैदान में एक कुंआ है, और उसके पास भेड़-बकरियों के तीन झुण्ड बैठे हुए हैं; क्योंकि जो पत्थर उस कुएं के मुंह पर धरा रहता था, जिस में से झुण्डों को जल पिलाया जाता था, वह भारी था।

3 और जब सब झुण्ड वहां इकट्ठे हो जाते तब चरवाहे उस पत्थर को कुएं के मुंह पर से लुढ़का कर भेड़-बकरियों को पानी पिलाते, और फिर पत्थर को कुएं के मुंह पर ज्यों का त्यों रख देते थे।

4 सो याकूब ने चरवाहों से पूछा, हे मेरे भाइयो, तुम कहां के हो? उन्होंने कहा, हम हारान के हैं।

5 तब उसने उन से पूछा, क्या तुम नाहोर के पोते लाबान को जानते हो? उन्होंने कहा, हां, हम उसे जानते हैं।

6 फिर उसने उन से पूछा, क्या वह कुशल से है? उन्होंने कहा, हां, कुशल से तो है और वह देख, उसकी बेटी राहेल भेड़-बकरियों को लिये हुए चली आती है।

7 उसने कहा, देखो, अभी तो दिन बहुत है, पशुओं के इकट्ठे होने का समय नहीं: सो भेड़-बकरियों को जल पिलाकर फिर ले जा कर चराओ।

8 उन्होंने कहा, हम अभी ऐसा नहीं कर सकते, जब सब झुण्ड इकट्ठे होते हैं तब पत्थर कुएं के मुंह से लुढ़काया जाता है, और तब हम भेड़-बकरियों को पानी पिलाते हैं।

9 उनकी यह बातचीत हो रही थी, कि राहेल जो पशु चराया करती थी, सो अपने पिता की भेड़-बकरियों को लिये हुए आ गई।

10 अपने मामा लाबान की बेटी राहेल को, और उसकी भेड़-बकरियों को भी देख कर याकूब ने निकट जा कर कुएं के मुंह पर से पत्थर को लुढ़का कर अपने मामा लाबान की भेड़-बकरियों को पानी पिलाया।

11 तब याकूब ने राहेल को चूमा, और ऊंचे स्वर से रोया।

12 और याकूब ने राहेल को बता दिया, कि मैं तेरा फुफेरा भाई हूं, अर्थात रिबका का पुत्र हूं: तब उसने दौड़ के अपने पिता से कह दिया।

13 अपने भानजे याकूब का समाचार पाते ही लाबान उससे भेंट करने को दौड़ा, और उसको गले लगाकर चूमा, फिर अपने घर ले आया। और याकूब ने लाबान से अपना सब वृत्तान्त वर्णन किया।

14 तब लाबान ने याकूब से कहा, तू तो सचमुच मेरी हड्डी और मांस है। सो याकूब एक महीना भर उसके साथ रहा।

15 तब लाबान ने याकूब से कहा, भाईबन्धु होने के कारण तुझ से सेंतमेंत सेवा कराना मुझे उचित नहीं है, सो कह मैं तुझे सेवा के बदले क्या दूं?

16 लाबान के दो बेटियां थी, जिन में से बड़ी का नाम लिआ: और छोटी का राहेल था।

17 लिआ: के तो धुन्धली आंखे थी, पर राहेल रूपवती और सुन्दर थी।

18 सो याकूब ने, जो राहेल से प्रीति रखता था, कहा, मैं तेरी छोटी बेटी राहेल के लिये सात बरस तेरी सेवा करूंगा।

19 लाबान ने कहा, उसे पराए पुरूष को देने से तुझ को देना उत्तम होगा; सो मेरे पास रह।

20 सो याकूब ने राहेल के लिये सात बरस सेवा की; और वे उसको राहेल की प्रीति के कारण थोड़े ही दिनों के बराबर जान पड़े।

21 तब याकूब ने लाबान से कहा, मेरी पत्नी मुझे दे, और मैं उसके पास जाऊंगा, क्योंकि मेरा समय पूरा हो गया है।

22 सो लाबान ने उस स्थान के सब मनुष्यों को बुला कर इकट्ठा किया, और उनकी जेवनार की।

23 सांझ के समय वह अपनी बेटी लिआ: को याकूब के पास ले गया, और वह उसके पास गया।

24 और लाबान ने अपनी बेटी लिआ: को उसकी लौंडी होने के लिये अपनी लौंडी जिल्पा दी।

25 भोर को मालूम हुआ कि यह तो लिआ है, सो उसने लाबान से कहा यह तू ने मुझ से क्या किया है? मैं ने तेरे साथ रहकर जो तेरी सेवा की, सो क्या राहेल के लिये नहीं की? फिर तू ने मुझ से क्यों ऐसा छल किया है?

26 लाबान ने कहा, हमारे यहां ऐसी रीति नहीं, कि जेठी से पहिले दूसरी का विवाह कर दें।

27 इसका सप्ताह तो पूरा कर; फिर दूसरी भी तुझे उस सेवा के लिये मिलेगी जो तू मेरे साथ रह कर और सात वर्ष तक करेगा।

28 सो याकूब ने ऐसा ही किया, और लिआ: के सप्ताह को पूरा किया; तब लाबान ने उसे अपनी बेटी राहेल को भी दिया, कि वह उसकी पत्नी हो।

29 और लाबान ने अपनी बेटी राहेल की लौंडी होने के लिये अपनी लौंडी बिल्हा को दिया।

30 तब याकूब राहेल के पास भी गया, और उसकी प्रीति लिआ: से अधिक उसी पर हुई, और उसने लाबान के साथ रहकर सात वर्ष और उसकी सेवा की॥

31 जब यहोवा ने देखा, कि लिआ: अप्रिय हुई, तब उसने उसकी कोख खोली, पर राहेल बांझ रही।

32 सो लिआ: गर्भवती हुई, और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, और उसने यह कहकर उसका नाम रूबेन रखा, कि यहोवा ने मेरे दु:ख पर दृष्टि की है: सो अब मेरा पति मुझ से प्रीति रखेगा।

33 फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और उसने यह कहा कि यह सुनके, कि मैं अप्रिय हूं यहोवा ने मुझे यह भी पुत्र दिया: इसलिये उसने उसका नाम शिमोन रखा।

34 फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और उसने कहा, अब की बार तो मेरा पति मुझ से मिल जाएगा, क्योंकि उससे मेरे तीन पुत्र उत्पन्न हुए: इसलिये उसका नाम लेवी रखा गया।

35 और फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक और पुत्र उत्पन्न हुआ; और उसने कहा, अब की बार तो मैं यहोवा का धन्यवाद करूंगी, इसलिये उसने उसका नाम यहूदा रखा; तब उसकी कोख बन्द हो गई॥

 उत्पत्ति - अध्याय 30

1 जब राहेल ने देखा, कि याकूब के लिये मुझ से कोई सन्तान नहीं होता, तब वह अपनी बहिन से डाह करने लगी: और याकूब से कहा, मुझे भी सन्तान दे, नहीं तो मर जाऊंगी।

2 तब याकूब ने राहेल से क्रोधित हो कर कहा, क्या मैं परमेश्वर हूं? तेरी कोख तो उसी ने बन्द कर रखी है।

3 राहेल ने कहा, अच्छा, मेरी लौंडी बिल्हा हाजिर है: उसी के पास जा, वह मेरे घुटनों पर जनेगी, और उसके द्वारा मेरा भी घर बसेगा।

4 तो उसने उसे अपनी लौंडी बिल्हा को दिया, कि वह उसकी पत्नी हो; और याकूब उसके पास गया।

5 और बिल्हा गर्भवती हुई और याकूब से उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ।

6 और राहेल ने कहा, परमेश्वर ने मेरा न्याय चुकाया और मेरी सुन कर मुझे एक पुत्र दिया: इसलिये उसने उसका नाम दान रखा।

7 और राहेल की लौंडी बिल्हा फिर गर्भवती हुई और याकूब से एक पुत्र और उत्पन्न हुआ।

8 तब राहेल ने कहा, मैं ने अपनी बहिन के साथ बड़े बल से लिपट कर मल्लयुद्ध किया और अब जीत गई: सो उसने उसका नाम नप्ताली रखा।

9 जब लिआ: ने देखा कि मैं जनने से रहित हो गई हूं, तब उसने अपनी लौंडी जिल्पा को ले कर याकूब की पत्नी होने के लिये दे दिया।

10 और लिआ: की लौंडी जिल्पा के भी याकूब से एक पुत्र उत्पन्न हुआ।

11 तब लिआ: ने कहा, अहो भाग्य! सो उसने उसका नाम गाद रखा।

12 फिर लिआ: की लौंडी जिल्पा के याकूब से एक और पुत्र उत्पन्न हुआ।

13 तब लिआ: ने कहा, मैं धन्य हूं; निश्चय स्त्रियां मुझे धन्य कहेंगी: सो उसने उसका नाम आशेर रखा।

14 गेहूं की कटनी के दिनों में रूबेन को मैदान में दूदाफल मिले, और वह उन को अपनी माता लिआ: के पास ले गया, तब राहेल ने लिआ: से कहा, अपने पुत्र के दूदाफलों में से कुछ मुझे दे।

15 उसने उससे कहा, तू ने जो मेरे पति को ले लिया है सो क्या छोटी बात है? अब क्या तू मेरे पुत्र के दूदाफल भी लेने चाहती है? राहेल ने कहा, अच्छा, तेरे पुत्र के दूदाफलों के बदले वह आज रात को तेरे संग सोएगा।

16 सो सांझ को जब याकूब मैदान से आ रहा था, तब लिआ: उससे भेंट करने को निकली, और कहा, तुझे मेरे ही पास आना होगा, क्योंकि मैं ने अपने पुत्र के दूदाफल देकर तुझे सचमुच मोल लिया। तब वह उस रात को उसी के संग सोया।

17 तब परमेश्वर ने लिआ: की सुनी, सो वह गर्भवती हुई और याकूब से उसके पांचवां पुत्र उत्पन्न हुआ।

18 तब लिआ: ने कहा, में ने जो अपने पति को अपनी लौंडी दी, इसलिये परमेश्वर ने मुझे मेरी मजूरी दी है: सो उसने उसका नाम इस्साकार रखा।

19 और लिआ: फिर गर्भवती हुई और याकूब से उसके छठवां पुत्र उत्पन्न हुआ।

20 तब लिआ: ने कहा, परमेश्वर ने मुझे अच्छा दान दिया है; अब की बार मेरा पति मेरे संग बना रहेगा, क्योंकि मेरे उससे छ: पुत्र उत्पन्न चुके हैं: से उसने उसका नाम जबूलून रखा।

21 तत्पश्चात् उसके एक बेटी भी हुई, और उसने उसका नाम दीना रखा।

22 और परमेश्वर ने राहेल की भी सुधि ली, और उसकी सुनकर उसकी कोख खोली।

23 सो वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; सो उसने कहा, परमेश्वर ने मेरी नामधराई को दूर कर दिया है।

24 सो उसने यह कह कर उसका नाम यूसुफ रखा, कि परमेश्वर मुझे एक पुत्र और भी देगा।

25 जब राहेल से यूसुफ उत्पन्न हुआ, तब याकूब ने लाबान से कहा, मुझे विदा कर, कि मैं अपने देश और स्थान को जाऊं।

26 मेरी स्त्रियां और मेरे लड़के-बाले, जिनके लिये मैं ने तेरी सेवा की है, उन्हें मुझे दे, कि मैं चला जाऊं; तू तो जानता है कि मैं ने तेरी कैसी सेवा की है।

27 लाबान ने उससे कहा, यदि तेरी दृष्टि में मैं ने अनुग्रह पाया है, तो रह जा: क्योंकि मैं ने अनुभव से जान लिया है, कि यहोवा ने तेरे कारण से मुझे आशीष दी है।

28 फिर उसने कहा, तू ठीक बता कि मैं तुझ को क्या दूं, और मैं उसे दूंगा।

29 उसने उससे कहा तू जानता है कि मैं ने तेरी कैसी सेवा की, और तेरे पशु मेरे पास किस प्रकार से रहे।

30 मेरे आने से पहिले वे कितने थे, और अब कितने हो गए हैं; और यहोवा ने मेरे आने पर तुझे तो आशीष दी है: पर मैं अपने घर का काम कब करने पाऊंगा?

31 उसने फिर कहा, मैं तुझे क्या दूं? याकूब ने कहा, तू मुझे कुछ न दे; यदि तू मेरे लिये एक काम करे, तो मैं फिर तेरी भेड़-बकरियों को चराऊंगा, और उनकी रक्षा करूंगा।

32 मैं आज तेरी सब भेड़-बकरियों के बीच हो कर निकलूंगा, और जो भेड़ वा बकरी चित्तीवाली वा चित्कबरी हो, और जो भेड़ काली हो, और जो बकरी चित्कबरी वा चित्तीवाली हों, उन्हें मैं अलग कर रखूंगा: और मेरी मजदूरी में वे ही ठहरेंगी।

33 और जब आगे को मेरी मजदूरी की चर्चा तेरे साम्हने चले, तब धर्म की यही साक्षी होगी; अर्थात बकरियों में से जो कोई न चित्तीवाली न चित्कबरी हो, और भेड़ों में से जो कोई काली न हो, सो यदि मेरे पास निकलें, तो चोरी की ठहरेंगी।

34 तब लाबान ने कहा, तेरे कहने के अनुसार हो।

35 सो उसने उसी दिन सब धारी वाले और चित्कबरे बकरों, और सब चित्तीवाली और चित्कबरी बकरियों को, अर्थात जिन में कुछ उजलापन था, उन को और सब काली भेड़ों को भी अलग करके अपने पुत्रों के हाथ सौंप दिया।

36 और उसने अपने और याकूब के बीच में तीन दिन के मार्ग का अन्तर ठहराया: सो याकूब लाबान की भेड़-बकरियों को चराने लगा।

37 और याकूब ने चिनार, और बादाम, और अर्मोन वृक्षों की हरी हरी छडिय़ां ले कर, उनके छिलके कहीं कहीं छील के, उन्हें धारीदार बना दिया, ऐसी कि उन छडिय़ों की सफेदी दिखाई देने लगी।

38 और तब छीली हुई छडिय़ों को भेड़-बकरियों के साम्हने उनके पानी पीने के कठौतों में खड़ा किया; और जब वे पानी पीने के लिये आई तब गाभिन हो गई।

39 और छडिय़ों के साम्हने गाभिन हो कर, भेड़-बकरियां धारीवाले, चित्तीवाले और चित्कबरे बच्चे जनीं।

40 तब याकूब ने भेड़ों के बच्चों को अलग अलग किया, और लाबान की भेड़-बकरियों के मुंह को चित्तीवाले और सब काले बच्चों की ओर कर दिया; और अपने झुण्ड़ों को उन से अलग रखा, और लाबान की भेड़-बकरियों से मिलने न दिया।

41 और जब जब बलवन्त भेड़-बकरियां गाभिन होती थी, तब तब याकूब उन छडिय़ों को कठौतों में उनके साम्हने रख देता था; जिस से वे छडिय़ों को देखती हुई गाभिन हो जाएं।

42 पर जब निर्बल भेड़-बकरियां गाभिन होती थीं, तब वह उन्हें उनके आगे नहीं रखता था। इस से निर्बल निर्बल लाबान की रही, और बलवन्त बलवन्त याकूब की हो गई।

43 सो वह पुरूष अत्यन्त धनाढय हो गया, और उसके बहुत सी भेड़-बकरियां, और लौंडियां और दास और ऊंट और गदहे हो गए॥

 उत्पत्ति - अध्याय 31

1 फिर लाबान के पुत्रों की ये बातें याकूब के सुनने में आई, कि याकूब ने हमारे पिता का सब कुछ छीन लिया है, और हमारे पिता के धन के कारण उसकी यह प्रतिष्ठा है।

2 और याकूब ने लाबान के मुखड़े पर दृष्टि की और ताड़ लिया, कि वह उसके प्रति पहले के समान नहीं है।

3 तब यहोवा ने याकूब से कहा, अपने पितरों के देश और अपनी जन्मभूमि को लौट जा, और मैं तेरे संग रहूंगा।

4 तब याकूब ने राहेल और लिआ: को, मैदान में अपनी भेड़-बकरियों के पास, बुलवा कर कहा,

5 तुम्हारे पिता के मुखड़े से मुझे समझ पड़ता है, कि वह तो मुझे पहिले की नाईं अब नहीं देखता; पर मेरे पिता का परमेश्वर मेरे संग है।

6 और तुम भी जानती हो, कि मैं ने तुम्हारे पिता की सेवा शक्ति भर की है।

7 और तुम्हारे पिता ने मुझ से छल करके मेरी मजदूरी को दस बार बदल दिया; परन्तु परमेश्वर ने उसको मेरी हानि करने नहीं दिया।

8 जब उसने कहा, कि चित्तीवाले बच्चे तेरी मजदूरी ठहरेंगे, तब सब भेड़-बकरियां चित्तीवाले ही जनने लगीं, और जब उसने कहा, कि धारीवाले बच्चे तेरी मजदूरी ठहरेंगे, तब सब भेड़-बकरियां धारीवाले जनने लगीं।

9 इस रीति से परमेश्वर ने तुम्हारे पिता के पशु ले कर मुझ को दे दिए।

10 भेड़-बकरियोंके गाभिन होने के समय मैं ने स्वप्न में क्या देखा, कि जो बकरे बकरियों पर चढ़ रहे हैं, सो धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले है।

11 और परमेश्वर के दूत ने स्वप्न में मुझ से कहा, हे याकूब: मैं ने कहा, क्या आज्ञा।

12 उसने कहा, आंखे उठा कर उन सब बकरों को, जो बकरियों पर चढ़ रहे हैं, देख, कि वे धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले हैं; क्योंकि जो कुछ लाबान तुझ से करता है, सो मैं ने देखा है।

13 मैं उस बेतेल का ईश्वर हूं, जहां तू ने एक खम्भे पर तेल डाल दिया, और मेरी मन्नत मानी थी: अब चल, इस देश से निकल कर अपनी जन्मभूमि को लौट जा।

14 तब राहेल और लिआ: ने उससे कहा, क्या हमारे पिता के घर में अब भी हमारा कुछ भाग वा अंश बचा है?

15 क्या हम उसकी दृष्टि में पराये न ठहरीं? देख, उसने हम को तो बेच डाला, और हमारे रूपे को खा बैठा है।

16 सो परमेश्वर ने हमारे पिता का जितना धन ले लिया है, सो हमारा, और हमारे लड़केबालों का है: अब जो कुछ परमेश्वर ने तुझ से कहा सो कर।

17 तब याकूब ने अपने लड़के बालों और स्त्रियों को ऊंटों पर चढ़ाया;

18 और जितने पशुओं को वह पद्दनराम में इकट्ठा करके धनाढय हो गया था, सब को कनान में अपने पिता इसहाक के पास जाने की मनसा से, साथ ले गया।

19 लाबान तो अपनी भेड़ों का ऊन कतरने के लिये चला गया था। और राहेल अपने पिता के गृहदेवताओं को चुरा ले गई।

20 सो याकूब लाबान अरामी के पास से चोरी से चला गया, उसको न बताया कि मैं भागा जाता हूं।

21 वह अपना सब कुछ ले कर भागा: और महानद के पार उतर कर अपना मुंह गिलाद के पहाड़ी देश की ओर किया॥

22 तीसरे दिन लाबान को समाचार मिला, कि याकूब भाग गया है।

23 सो उसने अपने भाइयों को साथ ले कर उसका सात दिन तक पीछा किया, और गिलाद के पहाड़ी देश में उसको जा पकड़ा।

24 तब परमेश्वर ने रात के स्वप्न में आरामी लाबान के पास आकर कहा, सावधान रह, तू याकूब से न तो भला कहना और न बुरा।

25 और लाबान याकूब के पास पहुंच गया, याकूब तो अपना तम्बू गिलाद नाम पहाड़ी देश में खड़ा किए पड़ा था: और लाबान ने भी अपने भाइयों के साथ अपना तम्बू उसी पहाड़ी देश में खड़ा किया।

26 तब लाबान याकूब से कहने लगा, तू ने यह क्या किया, कि मेरे पास से चोरी से चला आया, और मेरी बेटियों को ऐसा ले आया, जैसा कोई तलवार के बल से बन्दी बनाए गए?

27 तू क्यों चुपके से भाग आया, और मुझ से बिना कुछ कहे मेरे पास से चोरी से चला आया; नहीं तो मैं तुझे आनन्द के साथ मृदंग और वीणा बजवाते, और गीत गवाते विदा करता?

28 तू ने तो मुझे अपने बेटे बेटियों को चूमने तक न दिया? तू ने मूर्खता की है।

29 तुम लोगों की हानि करने की शक्ति मेरे हाथ में तो है; पर तुम्हारे पिता के परमेश्वर ने मुझ से बीती हुई रात में कहा, सावधान रह, याकूब से न तो भला कहना और न बुरा।

30 भला अब तू अपने पिता के घर का बड़ा अभिलाषी हो कर चला आया तो चला आया, पर मेरे देवताओं को तू क्यों चुरा ले आया है?

31 याकूब ने लाबान को उत्तर दिया, मैं यह सोचकर डर गया था: कि कहीं तू अपनी बेटियों को मुझ से छीन न ले।

32 जिस किसी के पास तू अपने देवताओं को पाए, सो जीता न बचेगा। मेरे पास तेरा जो कुछ निकले, सो भाई-बन्धुओं के साम्हने पहिचान कर ले ले। क्योंकि याकूब न जानता था कि राहेल गृहदेवताओं को चुरा ले आई है।

33 यह सुनकर लाबान, याकूब और लिआ: और दोनों दासियों के तम्बुओं मे गया; और कुछ न मिला। तब लिआ: के तम्बू में से निकल कर राहेल के तम्बू में गया।

34 राहेल तो गृहदेवताओं को ऊंट की काठी में रखके उन पर बैठी थी। सो लाबान ने उसके सारे तम्बू में टटोलने पर भी उन्हें न पाया।

35 राहेल ने अपने पिता से कहा, हे मेरे प्रभु; इस से अप्रसन्न न हो, कि मैं तेरे साम्हने नहीं उठी; क्योंकि मैं स्त्रीधर्म से हूं। सो उसके ढूंढ़ ढांढ़ करने पर भी गृहदेवता उसको न मिले।

36 तब याकूब क्रोधित हो कर लाबान से झगड़ने लगा, और कहा, मेरा क्या अपराध है? मेरा क्या पाप है, कि तू ने इतना क्रोधित हो कर मेरा पीछा किया है?

37 तू ने जो मेरी सारी सामग्री को टटोल कर देखा, सो तुझ को सारी सामग्री में से क्या मिला? कुछ मिला हो तो उसको यहां अपने और मेरे भाइयों के सामहने रख दे, और वे हम दोनों के बीच न्याय करें।

38 इन बीस वर्षों से मैं तेरे पास रहा; उन में न तो तेरी भेड़-बकरियों के गर्भ गिरे, और न तेरे मेढ़ों का मांस मैं ने कभी खाया।

39 जिसे बनैले जन्तुओं ने फाड़ डाला उसको मैं तेरे पास न लाता था, उसकी हानि मैं ही उठाता था; चाहे दिन को चोरी जाता चाहे रात को, तू मुझ ही से उसको ले लेता था।

40 मेरी तो यह दशा थी, कि दिन को तो घाम और रात को पाला मुझे खा गया; और नीन्द मेरी आंखों से भाग जाती थी।

41 बीस वर्ष तक मैं तेरे घर में रहो; चौदह वर्ष तो मैं ने तेरी दोनो बेटियों के लिये, और छ: वर्ष तेरी भेड़-बकरियों के लिये सेवा की: और तू ने मेरी मजदूरी को दस बार बदल डाला।

42 मेरे पिता का परमेश्वर अर्थात इब्राहीम का परमेश्वर, जिसका भय इसहाक भी मानता है, यदि मेरी ओर न होता, तो निश्चय तू अब मुझे छूछे हाथ जाने देता। मेरे दु:ख और मेरे हाथों के परिश्रम को देखकर परमेश्वर ने बीती हुई रात में तुझे डपटा।

43 लाबान ले याकूब से कहा, ये बेटियों तो मेरी ही हैं, और ये पुत्र भी मेरे ही हैं, और ये भेड़-बकरियां भी मेरी ही हैं, और जो कुछ तुझे देख पड़ता है सो सब मेरा ही है: और अब मैं अपनी इन बेटियों वा इनके सन्तान से क्या कर सकता हूं?

44 अब आ मैं और तू दोनों आपस में वाचा बान्धें, और वह मेरे और तेरे बीच साक्षी ठहरी रहे।

45 तब याकूब ने एक पत्थर ले कर उसका खम्भा खड़ा किया।

46 तब याकूब ने अपने भाई-बन्धुओं से कहा, पत्थर इकट्ठा करो; यह सुन कर उन्होंने पत्थर इकट्ठा करके एक ढेर लगाया और वहीं ढेर के पास उन्होंने भोजन किया।

47 उस ढेर का नाम लाबान ने तो यज्र सहादुया, पर याकूब ने जिलियाद रखा।

48 लाबान ने कहा, कि यह ढेर आज से मेरे और तेरे बीच साक्षी रहेगा। इस कारण उसका नाम जिलियाद रखा गया,

49 और मिजपा भी; क्योंकि उसने कहा, कि जब हम उस दूसरे से दूर रहें तब यहोवा मेरी और तेरी देखभाल करता रहे।

50 यदि तू मेरी बेटियों को दु:ख दे, वा उनके सिवाय और स्त्रियां ब्याह ले, तो हमारे साथ कोई मनुष्य तो न रहेगा; पर देख मेरे तेरे बीच में परमेश्वर साक्षी रहेगा।

51 फिर लाबान ने याकूब से कहा, इस ढेर को देख और इस खम्भे को भी देख, जिन को मैं ने अपने और तेरे बीच में खड़ा किया है।

52 यह ढेर और यह खम्भा दोनों इस बात के साक्षी रहें, कि हानि करने की मनसा से न तो मैं इस ढेर को लांघ कर तेरे पास जाऊंगा, न तू इस ढेर और इस खम्भे को लांघ कर मेरे पास आएगा।

53 इब्राहीम और नाहोर और उनके पिता; तीनों का जो परमेश्वर है, सो हम दोनो के बीच न्याय करे। तब याकूब ने उसकी शपथ खाई जिसका भय उसका पिता इसहाक मानता था।

54 और याकूब ने उस पहाड़ पर मेलबलि चढ़ाया, और अपने भाई-बन्धुओं को भोजन करने के लिये बुलाया, सो उन्होंने भोजन करके पहाड़ पर रात बिताई।

55 बिहान को लाबान तड़के उठा, और अपने बेटे बेटियों को चूम कर और आशीर्वाद देकर चल दिया, और अपने स्थान को लौट गया।

 उत्पत्ति - अध्याय 32

1 और याकूब ने भी अपना मार्ग लिया और परमेश्वर के दूत उसे आ मिले।

2 उन को देखते ही याकूब ने कहा, यह तो परमेश्वर का दल है सो उसने उस स्थान का नाम महनैम रखा॥

3 तब याकूब ने सेईर देश में, अर्थात एदोम देश में, अपने भाई ऐसाव के पास अपने आगे दूत भेज दिए।

4 और उसने उन्हें यह आज्ञा दी, कि मेरे प्रभु ऐसाव से यों कहना; कि तेरा दास याकूब तुझ से यों कहता है, कि मैं लाबान के यहां परदेशी हो कर अब तक रहा;

5 और मेरे पास गाय-बैल, गदहे, भेड़-बकरियां, और दास-दासियां है: सो मैं ने अपने प्रभु के पास इसलिये संदेशा भेजा है, कि तेरी अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो।

6 वे दूत याकूब के पास लौट के कहने लगे, हम तेरे भाई ऐसाव के पास गए थे, और वह भी तुझ से भेंट करने को चार सौ पुरूष संग लिये हुए चला आता है।

7 तब याकूब निपट डर गया, और संकट में पड़ा: और यह सोच कर, अपने संग वालों के, और भेड़-बकरियों, और गाय-बैलों, और ऊंटो के भी अलग अलग दो दल कर लिये,

8 कि यदि ऐसाव आकर पहिले दल को मारने लगे, तो दूसरा दल भाग कर बच जाएगा।

9 फिर याकूब ने कहा, हे यहोवा, हे मेरे दादा इब्राहीम के परमेश्वर, तू ने तो मुझ से कहा, कि अपने देश और जन्म भूमि में लौट जा, और मैं तेरी भलाई करूंगा:

10 तू ने जो जो काम अपनी करूणा और सच्चाई से अपने दास के साथ किए हैं, कि मैं जो अपनी छड़ी ही ले कर इस यरदन नदी के पार उतर आया, सो अब मेरे दो दल हो गए हैं, तेरे ऐसे ऐसे कामों में से मैं एक के भी योग्य तो नहीं हूं।

11 मेरी विनती सुन कर मुझे मेरे भाई ऐसाव के हाथ से बचा: मैं तो उससे डरता हूं, कहीं ऐसा ने हो कि वह आकर मुझे और मां समेत लड़कों को भी मार डाले।

12 तू ने तो कहा है, कि मैं निश्चय तेरी भलाई करूंगा, और तेरे वंश को समुद्र की बालू के किनकों के समान बहुत करूंगा, जो बहुतायत के मारे गिने नहीं जो सकते।

13 और उसने उस दिन की रात वहीं बिताई; और जो कुछ उसके पास था उस में से अपने भाई ऐसाव की भेंट के लिये छांट छांट कर निकाला;

14 अर्थात दो सौ बकरियां, और बीस बकरे, और दो सौ भेड़ें, और बीस मेढ़े,

15 और बच्चों समेत दूध देने वाली तीस ऊंटनियां, और चालीस गायें, और दस बैल, और बीस गदहियां और उनके दस बच्चे।

16 इन को उसने झुण्ड झुण्ड करके, अपने दासों को सौंप कर उन से कहा, मेरे आगे बढ़ जाओ; और झुण्डों के बीच बीच में अन्तर रखो।

17 फिर उसने अगले झुण्ड के रखवाले को यह आज्ञा दी, कि जब मेरा भाई ऐसाव तुझे मिले, और पूछने लगे, कि तू किस का दास है, और कहां जाता है, और ये जो तेरे आगे आगे हैं, सो किस के हैं?

18 तब कहना, कि यह तेरे दास याकूब के हैं। हे मेरे प्रभु ऐसाव, ये भेंट के लिये तेरे पास भेजे गए हैं, और वह आप भी हमारे पीछे पीछे आ रहा है।

19 और उसने दूसरे और तीसरे रखवालों को भी, वरन उस सभों को जो झुण्डों के पीछे पीछे थे ऐसी ही आज्ञा दी, कि जब ऐसाव तुम को मिले तब इसी प्रकार उससे कहना।

20 और यह भी कहना, कि तेरा दास याकूब हमारे पीछे पीछे आ रहा है। क्योंकि उसने यह सोचा, कि यह भेंट जो मेरे आगे आगे जाती है, इसके द्वारा मैं उसके क्रोध को शान्त करके तब उसका दर्शन करूंगा; हो सकता है वह मुझ से प्रसन्न हो जाए।

21 सो वह भेंट याकूब से पहिले पार उतर गई, और वह आप उस रात को छावनी में रहा॥

22 उसी रात को वह उठा और अपनी दोनों स्त्रियों, और दोनों लौंडियों, और ग्यारहों लड़कों को संग ले कर घाट से यब्बोक नदी के पार उतर गया।

23 और उसने उन्हें उस नदी के पार उतार दिया वरन अपना सब कुछ पार उतार दिया।

24 और याकूब आप अकेला रह गया; तब कोई पुरूष आकर पह फटने तक उससे मल्लयुद्ध करता रहा।

25 जब उसने देखा, कि मैं याकूब पर प्रबल नहीं होता, तब उसकी जांघ की नस को छूआ; सो याकूब की जांघ की नस उससे मल्लयुद्ध करते ही करते चढ़ गई।

26 तब उसने कहा, मुझे जाने दे, क्योंकि भोर हुआ चाहता है; याकूब ने कहा जब तक तू मुझे आशीर्वाद न दे, तब तक मैं तुझे जाने न दूंगा।

27 और उसने याकूब से पूछा, तेरा नाम क्या है? उसने कहा याकूब।

28 उसने कहा तेरा नाम अब याकूब नहीं, परन्तु इस्राएल होगा, क्योंकि तू परमेश्वर से और मनुष्यों से भी युद्ध कर के प्रबल हुआ है।

29 याकूब ने कहा, मैं बिनती करता हूं, मुझे अपना नाम बता। उसने कहा, तू मेरा नाम क्यों पूछता है? तब उसने उसको वहीं आशीर्वाद दिया।

30 तब याकूब ने यह कह कर उस स्थान का नाम पनीएल रखा: कि परमेश्वर को आम्हने साम्हने देखने पर भी मेरा प्राण बच गया है।

31 पनूएल के पास से चलते चलते सूर्य उदय हो गया, और वह जांघ से लंगड़ाता था।

32 इस्राएली जो पशुओं की जांघ की जोड़ वाले जंघानस को आज के दिन तक नहीं खाते, इसका कारण यही है, कि उस पुरूष ने याकूब की जांघ की जोड़ में जंघानस को छूआ था॥

 उत्पत्ति - अध्याय 33

1 और याकूब ने आंखें उठा कर यह देखा, कि ऐसाव चार सौ पुरूष संग लिये हुए चला जाता है। तब उसने लड़के बालों को अलग अलग बांट कर लिआ, और राहेल, और दोनों लौंडियों को सौंप दिया।

2 और उसने सब के आगे लड़कों समेत लौंडियों को उसके पीछे लड़कों समेत लिआ: को, और सब के पीछे राहेल और यूसुफ को रखा,

3 और आप उन सब के आगे बढ़ा, और सात बार भूमि पर गिर के दण्डवत की, और अपने भाई के पास पहुंचा।

4 तब ऐसाव उससे भेंट करने को दौड़ा, और उसको हृदय से लगा कर, गले से लिपट कर चूमा: फिर वे दोनों रो पड़े।

5 तब उसने आंखे उठा कर स्त्रियों और लड़के बालों को देखा; और पूछा, ये जो तेरे साथ हैं सो कौन हैं? उसने कहा, ये तेरे दास के लड़के हैं, जिन्हें परमेश्वर ने अनुग्रह कर के मुझ को दिया है।

6 तब लड़कों समेत लौंडियों ने निकट आकर दण्डवत की।

7 फिर लड़कों समेत लिआ: निकट आई, और उन्होंने भी दण्डवत की: पीछे यूसुफ और राहेल ने भी निकट आकर दण्डवत की।

8 तब उसने पूछा, तेरा यह बड़ा दल जो मुझ को मिला, उसका क्या प्रयोजन है? उसने कहा, यह कि मेरे प्रभु की अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो।

9 ऐसाव ने कहा, हे मेरे भाई, मेरे पास तो बहुत है; जो कुछ तेरा है सो तेरा ही रहे।

10 याकूब ने कहा, नहीं नहीं, यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो मेरी भेंट ग्रहण कर: क्योंकि मैं ने तेरा दर्शन पाकर, मानो परमेश्वर का दर्शन पाया है, और तू मुझ से प्रसन्न हुआ है।

11 सो यह भेंट, जो तुझे भेजी गई है, ग्रहण कर: क्योंकि परमेश्वर ने मुझ पर अनुग्रह किया है, और मेरे पास बहुत है। जब उसने उस को दबाया, तब उस ने भेंट को ग्रहण किया।

12 फिर ऐसाव ने कहा, आ, हम बढ़ चलें: और मैं तेरे आगे आगे चलूंगा।

13 याकूब ने कहा, हे मेरे प्रभु, तू जानता ही है कि मेरे साथ सुकुमार लड़के, और दूध देने हारी भेड़-बकरियां और गायें है; यदि ऐसे पशु एक दिन भी अधिक हांके जाएं, तो सब के सब मर जाएंगे।

14 सो मेरा प्रभु अपने दास के आगे बढ़ जाए, और मैं इन पशुओं की गति के अनुसार, जो मेरे आगे है, और लड़के बालों की गति के अनुसार धीरे धीरे चल कर सेईर में अपने प्रभु के पास पहुंचूंगा।

15 ऐसाव ने कहा, तो अपने संग वालों में से मैं कई एक तेरे साथ छोड़ जाऊं। उसने कहा, यह क्यों? इतना ही बहुत है, कि मेरे प्रभु की अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे।

16 तब ऐसाव ने उसी दिन सेईर जाने को अपना मार्ग लिया।

17 और याकूब वहां से कूच कर के सुक्कोत को गया, और वहां अपने लिये एक घर, और पशुओं के लिये झोंपड़े बनाए: इसी कारण उस स्थान का नाम सुक्कोत पड़ा॥

18 और याकूब जो पद्दनराम से आया था, सो कनान देश के शकेम नगर के पास कुशल क्षेम से पहुंच कर नगर के साम्हने डेरे खड़े किए।

19 और भूमि के जिस खण्ड पर उसने अपना तम्बू खड़ा किया, उसको उसने शकेम के पिता हमोर के पुत्रों के हाथ से एक सौ कसीतों में मोल लिया।

20 और वहां उसने एक वेदी बना कर उसका नाम एलेलोहे इस्राएल रखा॥

 उत्पत्ति - अध्याय 34

1 और लिआ: की बेटी दीना, जो याकूब से उत्पन्न हुई थी, उस देश की लड़कियों से भेंट करने को निकली।

2 तब उस देश के प्रधान हित्ती हमोर के पुत्र शकेम ने उसे देखा, और उसे ले जा कर उसके साथ कुकर्म करके उसको भ्रष्ट कर डाला।

3 तब उसका मन याकूब की बेटी दीना से लग गया, और उसने उस कन्या से प्रेम की बातें की, और उससे प्रेम करने लगा।

4 और शकेम ने अपने पिता हमोर से कहा, मुझे इस लड़की को मेरी पत्नी होने के लिये दिला दे।

5 और याकूब ने सुना, कि शकेम ने मेरी बेटी दीना को अशुद्ध कर डाला है, पर उसके पुत्र उस समय पशुओं के संग मैदान में थे, सो वह उनके आने तक चुप रहा।

6 और शकेम का पिता हमोर निकल कर याकूब से बातचीत करने के लिये उसके पास गया।

7 और याकूब के पुत्र सुनते ही मैदान से बहुत उदास और क्रोधित हो कर आए: क्योंकि शकेम ने याकूब की बेटी के साथ कुकर्म करके इस्राएल के घराने से मूर्खता का ऐसा काम किया था, जिसका करना अनुचित था।

8 हमोर ने उन सब से कहा, मेरे पुत्र शकेम का मन तुम्हारी बेटी पर बहुत लगा है, सो उसे उसकी पत्नी होने के लिये उसको दे दो।

9 और हमारे साथ ब्याह किया करो; अपनी बेटियां हम को दिया करो, और हमारी बेटियों को आप लिया करो।

10 और हमारे संग बसे रहो: और यह देश तुम्हारे सामने पड़ा है; इस में रह कर लेनदेन करो, और इसकी भूमि को अपने लिये ले लो।

11 और शकेम ने भी दीना के पिता और भाइयों से कहा, यदि मुझ पर तुम लोगों की अनुग्रह की दृष्टि हो, तो जो कुछ तुम मुझ से कहो, सो मैं दूंगा।

12 तुम मुझ से कितना ही मूल्य वा बदला क्यों न मांगो, तौभी मैं तुम्हारे कहे के अनुसार दूंगा: परन्तु उस कन्या को पत्नी होने के लिये मुझे दो।

13 तब यह सोच कर, कि शकेम ने हमारी बहिन दीना को अशुद्ध किया है, याकूब के पुत्रों ने शकेम और उसके पिता हमोर को छल के साथ यह उत्तर दिया,

14 कि हम ऐसा काम नहीं कर सकते, कि किसी खतना रहित पुरूष को अपनी बहिन दें; क्योंकि इस से हमारी नामधराई होगी:

15 इस बात पर तो हम तुम्हारी मान लेंगे, कि हमारी नाईं तुम में से हर एक पुरूष का खतना किया जाए।

16 तब हम अपनी बेटियां तुम्हें ब्याह देंगे, और तुम्हारी बेटियां ब्याह लेंगे, और तुम्हारे संग बसे भी रहेंगे, और हम दोनों एक ही समुदाय के मनुष्य हो जाएंगे।

17 पर यदि तुम हमारी बात न मान कर अपना खतना न कराओगे, तो हम अपनी लड़की को लेके यहां से चले जाएंगे।

18 उनकी इस बात पर हमोर और उसका पुत्र शकेम प्रसन्न हुए।

19 और वह जवान, जो याकूब की बेटी को बहुत चाहता था, इस काम को करने में उसने विलम्ब न किया। वह तो अपने पिता के सारे घराने में अधिक प्रतिष्ठित था।

20 सो हमोर और उसका पुत्र शकेम अपने नगर के फाटक के निकट जा कर नगरवासियों को यों समझाने लगे;

21 कि वे मनुष्य तो हमारे संग मेल से रहना चाहते हैं; सो उन्हें इस देश में रह के लेनदेन करने दो; देखो, यह देश उनके लिये भी बहुत है; फिर हम लोग उनकी बेटियों को ब्याह लें, और अपनी बेटियों को उन्हें दिया करें।

22 वे लोग केवल इस बात पर हमारे संग रहने और एक ही समुदाय के मनुष्य हो जाने को प्रसन्न हैं, कि उनकी नाईं हमारे सब पुरूषों का भी खतना किया जाए।

23 क्या उनकी भेड़-बकरियां, और गाय-बैल वरन उनके सारे पशु और धन सम्पत्ति हमारी न हो जाएगी? इतना ही करें कि हम लोग उनकी बात मान लें, तो वे हमारे संग रहेंगे।

24 सो जितने उस नगर के फाटक से निकलते थे, उन सभों ने हमोर की और उसके पुत्र शकेम की बात मानी; और हर एक पुरूष का खतना किया गया, जितने उस नगर के फाटक से निकलते थे।

25 तीसरे दिन, जब वे लोग पीड़ित पड़े थे, तब ऐसा हुआ कि शिमोन और लेवी नाम याकूब के दो पुत्रों ने, जो दीना के भाई थे, अपनी अपनी तलवार ले उस नगर में निधड़क घुस कर सब पुरूषों को घात किया।

26 और हमोर और उसके पुत्र शकेम को उन्होंने तलवार से मार डाला, और दीना को शकेम के घर से निकाल ले गए।

27 और याकूब के पुत्रों ने घात कर डालने पर भी चढ़ कर नगर को इसलिये लूट लिया, कि उस में उनकी बहिन अशुद्ध की गई थी।

28 उन्होंने भेड़-बकरी, और गाय-बैल, और गदहे, और नगर और मैदान में जितना धन था ले लिया।

29 उस सब को, और उनके बाल-बच्चों, और स्त्रियों को भी हर ले गए, वरन घर घर में जो कुछ था, उसको भी उन्होंने लूट लिया।

30 तब याकूब ने शिमोन और लेवी से कहा, तुम ने जो उस देश के निवासी कनानियोंऔर परिज्जियों के मन में मेरी ओर घृणा उत्पन्न कराई है, इस से तुम ने मुझे संकट में डाला है, क्योंकि मेरे साथ तो थोड़े की लोग हैं, सो अब वे इकट्ठे हो कर मुझ पर चढ़ेंगे, और मुझे मार डालेंगे, सो मैं अपने घराने समेत सत्यानाश हो जाऊंगा।

31 उन्होंने कहा, क्या वह हमारी बहिन के साथ वेश्या की नाईं बर्ताव करे?

 उत्पत्ति - अध्याय 35

1 तब परमेश्वर ने याकूब से कहा, यहां से कूच करके बेतेल को जा, और वहीं रह: और वहां ईश्वर के लिये वेदी बना, जिसने तुझे उस समय दर्शन दिया, जब तू अपने भाई ऐसाव के डर से भागा जाता था।

2 तब याकूब ने अपने घराने से, और उन सब से भी जो उसके संग थे, कहा, तुम्हारे बीच में जो पराए देवता हैं, उन्हें निकाल फेंको ; और अपने अपने को शुद्ध करो, और अपने वस्त्र बदल डालो;

3 और आओ, हम यहां से कूच करके बेतेल को जाएं; वहां मैं ईश्वर के लिये एक वेदी बनाऊंगा, जिसने संकट के दिन मेरी सुन ली, और जिस मार्ग से मैं चलता था, उस में मेरे संग रहा।

4 सो जितने पराए देवता उनके पास थे, और जितने कुण्डल उनके कानोंमें थे, उन सभों को उन्होंने याकूब को दिया; और उसने उन को उस सिन्दूर वृक्ष के नीचे, जो शकेम के पास है, गाड़ दिया।

5 तब उन्होंने कूच किया: और उनके चारों ओर के नगर निवासियों के मन में परमेश्वर की ओर से ऐसा भय समा गया, कि उन्होंने याकूब के पुत्रों का पीछा न किया।

6 सो याकूब उन सब समेत, जो उसके संग थे, कनान देश के लूज नगर को आया। वह नगर बेतेल भी कहलाता है।

7 वहां उसने एक वेदी बनाईं, और उस स्थान का नाम एलबेतेल रखा; क्योंकि जब वह अपने भाई के डर से भागा जाता था तब परमेश्वर उस पर वहीं प्रगट हुआ था।

8 और रिबका की दूध पिलानेहारी धाय दबोरा मर गई, और बेतेल के नीचे सिन्दूर वृक्ष के तले उसको मिट्टी दी गई, और उस सिन्दूर वृक्ष का नाम अल्लोनबक्कूत रखा गया॥

9 फिर याकूब के पद्दनराम से आने के पश्चात परमेश्वर ने दूसरी बार उसको दर्शन देकर आशीष दी।

10 और परमेश्वर ने उससे कहा, अब तक तो तेरा नाम याकूब रहा है; पर आगे को तेरा नाम याकूब न रहेगा, तू इस्राएल कहलाएगा:

11 फिर परमेश्वर ने उससे कहा, मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर हूं: तू फूले-फले और बढ़े; और तुझ से एक जाति वरन जातियों की एक मण्डली भी उत्पन्न होगी, और तेरे वंश में राजा उत्पन्न होंगे।

12 और जो देश मैं ने इब्राहीम और इसहाक को दिया है, वही देश तुझे देता हूं, और तेरे पीछे तेरे वंश को भी दूंगा।

13 तब परमेश्वर उस स्थान में, जहां उसने याकूब से बातें की, उनके पास से ऊपर चढ़ गया।

14 और जिस स्थान में परमेश्वर ने याकूब से बातें की, वहां याकूब ने पत्थर का एक खम्बा खड़ा किया, और उस पर अर्घ देकर तेल डाल दिया।

15 और जहां परमेश्वर ने याकूब से बातें की, उस स्थान का नाम उसने बेतेल रखा।

16 फिर उन्होंने बेतेल से कूच किया; और एप्राता थोड़ी ही दूर रह गया था, कि राहेल को बच्चा जनने की बड़ी पीड़ा आने लगी।

17 जब उसको बड़ी बड़ी पीड़ा उठती थी तब धाय ने उससे कहा, मत डर; अब की भी तेरे बेटा ही होगा।

18 तब ऐसा हुआ, कि वह मर गई, और प्राण निकलते निकलते उसने उस बेटे को नाम बेनोनी रखा: पर उसके पिता ने उसका नाम बिन्यामीन रखा।

19 यों राहेल मर गई, और एप्राता, अर्थात बेतलेहेम के मार्ग में, उसको मिट्टी दी गई।

20 और याकूब ने उसकी कब्र पर एक खम्भा खड़ा किया: राहेल की कब्र का वही खम्भा आज तक बना है।

21 फिर इस्राएल ने कूच किया, और एदेर नाम गुम्मट के आगे बढ़कर अपना तम्बू खड़ा किया।

22 जब इस्राएल उस देश में बसा था, तब एक दिन ऐसा हुआ, कि रूबेन ने जा कर अपने पिता की रखेली बिल्हा के साथ कुकर्म किया: और यह बात इस्राएल को मालूम हो गई॥

23 याकूब के बारह पुत्र हुए। उन में से लिआ: के पुत्र ये थे; अर्थात याकूब का जेठा, रूबेन, फिर शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, और जबूलून।

24 और राहेल के पुत्र ये थे; अर्थात यूसुफ, और बिन्यामीन।

25 और राहेल की लौन्डी बिल्हा के पुत्र ये थे; अर्थात दान, और नप्ताली।

26 और लिआ: की लौन्डी जिल्पा के पुत्र ये थे: अर्थात गाद, और आशेर; याकूब के ये ही पुत्र हुए, जो उससे पद्दनराम में उत्पन्न हुए॥

27 और याकूब मम्रे में, जो करियतअर्बा, अर्थात हब्रोन है, जहां इब्राहीम और इसहाक परदेशी हो कर रहे थे, अपने पिता इसहाक के पास आया।

28 इसहाक की अवस्था एक सौ अस्सी बरस की हुई।

29 और इसहाक का प्राण छूट गया, और वह मर गया, और वह बूढ़ा और पूरी आयु का हो कर अपने लोगों में जा मिला: और उसके पुत्र ऐसाव और याकूब ने उसको मिट्टी दी॥

 

#@#