पवित्र बाइबिल - Hindi Holy Bible

अध्याय   27  28  29  30  31  32  33  34  35  36  37  38  39  40  

 निर्गमन - अध्याय 27

1 फिर वेदी को बबूल की लकड़ी की, पांच हाथ लम्बी और पांच हाथ चौड़ी बनवाना; वेदी चौकोर हो, और उसकी ऊंचाई तीन हाथ की हो।

2 और उसके चारों कोनों पर चार सींग बनवाना; वे उस समेत एक ही टुकड़े के हों, और उसे पीतल से मढ़वाना।

3 और उसकी राख उठाने के पात्र, और फावडिय़ां, और कटोरे, और कांटे, और अंगीठियां बनवाना; उसका कुल सामान पीतल का बनवाना।

4 और उसके पीतल की जाली एक झंझरी बनवाना; और उसके चारों सिरों में पीतल के चार कड़े लगवाना।

5 और उस झंझरी को वेदी के चारों ओर की कंगनी के नीचे ऐसे लगवाना, कि वह वेदी की ऊंचाई के मध्य तक पहुंचे।

6 और वेदी के लिये बबूल की लकड़ी के डण्डे बनवाना, और उन्हें पीतल से मढ़वाना।

7 और डंडे कड़ों में डाले जाएं, कि जब जब वेदी उठाई जाए तब वे उसकी दोनों अलंगों पर रहें।

8 वेदी को तख्तों से खोखली बनवाना; जैसी वह इस पर्वत पर तुझे दिखाई गई है वैसी ही बनाईं जाए॥

9 फिर निवास के आंगन को बनवाना। उसकी दक्खिन अलंग के लिये तो बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े के सब पर्दों को मिलाए कि उसकी लम्बाई सौ हाथ की हो; एक अलंग पर तो इतना ही हो।

10 और उनके बीस खम्भे बनें, और इनके लिये पीतल की बीस कुसिर्यां बनें, और खम्भों के कुन्डे और उनकी पट्टियां चांदी की हों।

11 और उसी भांति आंगन की उत्तर अलंग की लम्बाई में भी सौ हाथ लम्बे पर्दे हों, और उनके भी बीस खम्भे और इनके लिये भी पीतल के बीस खाने हों; और उन खम्भों के कुन्डे और पट्टियां चांदी की हों।

12 फिर आंगन की चौड़ाई में पच्छिम की ओर पचास हाथ के पर्दे हों, उनके खम्भे दस और खाने भी दस हों।

13 और पूरब अलंग पर आंगन की चौड़ाई पचास हाथ की हो।

14 और आंगन के द्वार की एक ओर पन्द्रह हाथ के पर्दे हों, और उनके खम्भे तीन और खाने तीन हों।

15 और दूसरी ओर भी पन्द्रह हाथ के पर्दे हों, उनके भी खम्भे तीन और खाने तीन हों।

16 और आंगन के द्वार के लिये एक पर्दा बनवाना, जो नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े और बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े का कामदार बना हुआ बीस हाथ का हो, उसके खम्भे चार और खाने भी चार हों।

17 आंगन की चारों ओर के सब खम्भे चांदी की पट्टियों से जुड़े हुए हों, उनके कुन्डे चांदी के और खाने पीतल के हों।

18 आंगन की लम्बाई सौ हाथ की, और उसकी चौड़ाई बराबर पचास हाथ की और उसकी कनात की ऊंचाई पांच हाथ की हो, उसकी कनात बटी हुई सुक्ष्म सनी के कपड़े की बने, और खम्भों के खाने पीतल के हों।

19 निवास के भांति भांति के बर्तन और सब सामान और उसके सब खूंटें और आंगन के भी सब खूंटे पीतल ही के हों॥

20 फिर तू इस्त्राएलियों को आज्ञा देना, कि मेरे पास दीवट के लिये कूट के निकाला हुआ जलपाई का निर्मल तेल ले आना, जिस से दीपक नित्य जलता रहे।

21 मिलाप के तम्बू में, उस बीच वाले पर्दे से बाहर जो साक्षीपत्र के आगे होगा, हारून और उसके पुत्र दीवट सांझ से भोर तक यहोवा के साम्हने सजा कर रखें। यह विधि इस्त्राएलियों की पीढिय़ों के लिये सदैव बनी रहेगी॥

 निर्गमन - अध्याय 28

1 फिर तू इस्त्राएलियों में से अपने भाई हारून, और नादाब, अबीहू, एलीआज़ार और ईतामार नाम उसके पुत्रों को अपने समीप ले आना कि वे मेरे लिये याजक का काम करें।

2 और तू अपने भाई हारून के लिये वैभव और शोभा के निमित्त पवित्र वस्त्र बनवाना।

3 और जितनों के हृदय में बुद्धि है, जिन को मैं ने बुद्धि देनेवाली आत्मा से परिपूर्ण किया है, उन को तू हारून के वस्त्र बनाने की आज्ञा दे कि वह मेरे निमित्त याजक का काम करने के लिये पवित्र बनें।

4 और जो वस्त्र उन्हें बनाने होंगे वे ये हैं, अर्थात सीनाबन्द; और एपोद, और जामा, चार खाने का अंगरखा, पुरोहित का टोप, और कमरबन्द; ये ही पवित्र वस्त्र तेरे भाई हारून और उसके पुत्रों के लिये बनाए जाएं कि वे मेरे लिये याजक का काम करें।

5 और वे सोने और नीले और बैंजनी और लाल रंग का और सूक्ष्म सनी का कपड़ा लें॥

6 और वे एपोद को सोने, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े का और बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े का बनाएं, जो कि निपुण कढ़ाई के काम करने वाले के हाथ का काम हो।

7 और वह इस तरह से जोड़ा जाए कि उसके दोनो कन्धों के सिरे आपस में मिले रहें।

8 और एपोद पर जो काढ़ा हुआ पटुका होगा उसकी बनावट उसी के समान हो, और वे दोनों बिना जोड़ के हों, और सोने और नीले, बैंजनी और लाल रंग वाले और बटी हुई सूक्ष्म सनी वाले कपड़े के हों।

9 फिर दो सुलैमानी मणि ले कर उन पर इस्त्राएल के पुत्रों के नाम खुदवाना,

10 उनके नामों में से छ: तो एक मणि पर, और शेष छ: नाम दूसरे मणि पर, इस्त्राएल के पुत्रों की उत्पत्ति के अनुसार खुदवाना।

11 मणि खोदने वाले के काम से जैसे छापा खोदा जाता है, वैसे ही उन दो मणियों पर इस्त्राएल के पुत्रों के नाम खुदवाना; और उन को सोने के खानों में जड़वा देना।

12 और दोनों मणियों को एपोद के कन्धों पर लगवाना, वे इस्त्राएलियों के निमित्त स्मरण दिलवाने वाले मणि ठहरेंगे; अर्थात हारून उनके नाम यहोवा के आगे अपने दोनों कन्धों पर स्मरण के लिये लगाए रहे॥

13 फिर सोने के खाने बनवाना,

14 और डोरियों की नाईं गूंथे हुए दो जंजीर चोखे सोने के बनवाना; और गूंथे हुए जंजीरों को उन खानों में जड़वाना।

15 फिर न्याय की चपरास को भी कढ़ाई के काम का बनवाना; एपोद की नाईं सोने, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के और बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े की उसे बनवाना।

16 वह चौकोर और दोहरी हो, और उसकी लम्बाई और चौड़ाई एक एक बित्ते की हों।

17 और उस में चार पांति मणि जड़ाना। पहिली पांति में तो माणिक्य, पद्मराग और लालड़ी हों;

18 दूसरी पांति में मरकत, नीलमणि और हीरा;

19 तीसरी पांति में लशम, सूर्यकांत और नीलम;

20 और चौथी पांति में फीरोजा, सुलैमानी मणि और यशब हों; ये सब सोने के खानों में जड़े जाएं।

21 और इस्त्राएल के पुत्रों के जितने नाम हैं उतने मणि हों, अर्थात उनके नामों की गिनती के अनुसार बारह नाम खुदें, बारहों गोत्रों में से एक एक का नाम एक एक मणि पर ऐसे खुदे जेसे छापा खोदा जाता है।

22 फिर चपरास पर डोरियों की नाईं। गूंथे हुए चोखे सोने की जंजीर लगवाना;

23 और चपरास में सोने की दो कडिय़ां लगवाना, और दोनों कडिय़ों को चपरास के दोनो सिरों पर लगवाना।

24 और सोने के दोनों गूंथे जंजीरों को उन दोनों कडिय़ों में जो चपरास के सिरों पर होंगी लगवाना;

25 और गूंथे हुए दोनो जंजीरों के दोनों बाकी सिरों को दोनों खानों में जड़वा के एपोद के दोनों कन्धों के बंधनों पर उसके साम्हने लगवाना।

26 फिर सोने की दो और कडिय़ां बनवाकर चपरास के दोनों सिरों पर, उसकी उस कोर पर जो एपोद की भीतर की ओर होगी लगवाना।

27 फिर उनके सिवाय सोने की दो और कडिय़ां बनवाकर एपोद के दोनों कन्धों के बंधनों पर, नीचे से उनके साम्हने और उसके जोड़ के पास एपोद के काढ़े हुए पटुके के ऊपर लगवाना।

28 और चपरास अपनी कडिय़ों के द्वारा एपोद की कडिय़ों में नीले फीते से बांधी जाए, इस रीति वह एपोद के काढ़े हुए पटुके पर बनी रहे, और चपरास एपोद पर से अलग न होने पाए।

29 और जब जब हारून पवित्रस्थान में प्रवेश करे, तब तब वह न्याय की चपरास पर अपने हृदय के ऊपर इस्त्राएलियों के नामों को लगाए रहे, जिस से यहोवा के साम्हने उनका स्मरण नित्य रहे।

30 और तू न्याय की चपरास में ऊरीम और तुम्मीम को रखना, और जब जब हारून यहोवा के साम्हने प्रवेश करे, तब तब वे उसके हृदय के ऊपर हों; इस प्रकार हारून इस्त्राएलियों के न्याय पदार्थ को अपने हृदय के ऊपर यहोवा के साम्हने नित्य लगाए रहे॥

31 फिर एपोद के बागे को सम्पूर्ण नीले रंग का बनवाना।

32 और उसकी बनावट ऐसी हो कि उसके बीच में सिर डालने के लिये छेद हो, और उस छेद की चारों ओर बखतर के छेद की सी एक बुनी हुई कोर हो, कि वह फटने न पाए।

33 और उसके नीचे वाले घेरे में चारों ओर नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े के अनार बनवाना, और उनके बीच बीच चारों ओर सोने की घंटीयां लगवाना,

34 अर्थात एक सोने की घंटी और एक अनार, फिर एक सोने की घंटी और एक अनार, इसी रीति बागे के नीचे वाले घेरे में चारों ओर ऐसा ही हो।

35 और हारून एक बागे को सेवा टहल करने के समय पहिना करे, कि जब जब वह पवित्रस्थान के भीतर यहोवा के साम्हने जाए, वा बाहर निकले, तब तब उसका शब्द सुनाईं दे, नहीं तो वह मर जाएगा।

36 फिर चोखे सोने का एक टीका बनवाना, और जैसे छापे में वैसे ही उस में ये अक्षर खोदें जाएं, अर्थात यहोवा के लिये पवित्र।

37 और उसे नीले फीते से बांधना; और वह पगड़ी के साम्हने के हिस्से पर रहे।

38 और हारून के माथे पर रहे, इसलिये कि इस्त्राएली जो कुछ पवित्र ठहराएं, अर्थात जितनी पवित्र वस्तुएं भेंट में चढ़ावें उन पवित्र वस्तुओं का दोष हारून उठाए रहे, और वह नित्य उसके माथे पर रहे, जिस से यहोवा उन से प्रसन्न रहे॥

39 और अंगरखे को सूक्ष्म सनी के कपड़े का चारखाना बुनवाना, और एक पगड़ी भी सूक्ष्म सनी के कपड़े की बनवाना, और कारचोबी काम किया हुआ एक कमरबन्द भी बनवाना॥

40 फिर हारून के पुत्रों के लिये भी अंगरखे और कमरबन्द और टोपियां बनवाना; ये वस्त्र भी वैभव और शोभा के लिये बनें।

41 अपने भाई हारून और उसके पुत्रों को ये ही सब वस्त्र पहिनाकर उनका अभिषेक और संस्कार करना, और उन्हें पवित्र करना, कि वे मेरे लिये याजक का काम करें।

42 और उनके लिये सनी के कपड़े की जांघिया बनवाना जिन से उनका तन ढपा रहे; वे कमर से जांघ तक की हों;

43 और जब जब हारून वा उसके पुत्र मिलाप वाले तम्बू में प्रवेश करें, वा पवित्र स्थान में सेवा टहल करने को वेदी के पास जाएं तब तब वे उन जांघियों को पहिने रहें, न हो कि वे पापी ठहरें और मर जाएं। यह हारून के लिये और उसके बाद उसके वंश के लिये भी सदा की विधि ठहरें॥

 निर्गमन - अध्याय 29

1 और उन्हें पवित्र करने को जो काम तुझे उन से करना है, कि वे मेरे लिये याजक का काम करें वह यह है। एक निर्दोष बछड़ा और दो निर्दोष मेंढ़े लेना,

2 और अखमीरी रोटी, और तेल से सने हुए मैदे के अखमीरी फुलके, और तेल से चुपड़ी हुई अखमीरी पपडिय़ां भी लेना। ये सब गेहूं के मैदे के बनवाना।

3 इन को एक टोकरी में रखकर उस टोकरी को उस बछड़े और उन दोनों मेंढ़ो समेत समीप ले आना।

4 फिर हारून और उसके पुत्रों को मिलाप वाले तम्बू के द्वार के समीप ले आकर जल से नहलाना।

5 तब उन वस्त्रों को ले कर हारून को अंगरखा ओर एपोद का बागा पहिनाना, और एपोद और चपरास बान्धना, और एपोद का काढ़ा हुआ पटुका भी बान्धना;

6 और उसके सिर पर पगड़ी को रखना, और पगड़ी पर पवित्र मुकुट को रखना।

7 तब अभिषेक का तेल ले उसके सिर पर डालकर उसका अभिषेक करना।

8 फिर उसके पुत्रों को समीप ले आकर उन को अंगरखे पहिनाना,

9 और उसके अर्थात हारून और उसके पुत्रों के कमर बान्धना और उनके सिर पर टोपियां रखना; जिस से याजक के पद पर सदा उनका हक रहे। इसी प्रकार हारून और उसके पुत्रों का संस्कार करना।

10 और बछड़े को मिलाप वाले तम्बू के साम्हने समीप ले आना। और हारून और उसके पुत्र बछड़े के सिर पर अपने अपने हाथ रखें,

11 तब उस बछड़े को यहोवा के सम्मुख मिलाप वाले तम्बू के द्वार पर बलिदान करना,

12 और बछड़े के लोहू में से कुछ ले कर अपनी उंगली से वेदी के सींगों पर लगाना, और शेष सब लोहू को वेदी के पाए पर उंडेल देना

13 और जिस चरबी से अंतडिय़ां ढपी रहती हैं, और जो झिल्ली कलेजे के ऊपर होती है, उन को और दोनो गुर्दों को उनके ऊपर की चरबी समेत ले कर सब को वेदी पर जलाना।

14 और बछड़े का मांस, और खाल, और गोबर, छावनी से बाहर आग में जला देना; क्योंकि यह पापबलि होगा।

15 फिर एक मेढ़ा लेना, और हारून और उसके पुत्र उसके सिर पर अपने अपने हाथ रखें,

16 तब उस मेढ़ें को बलि करना, और उसका लोहू ले कर वेदी पर चारों ओर छिड़कना।

17 और उस मेढ़े को टुकड़े टुकड़े काटना, और उसकी अंतडिय़ों और पैरों को धोकर उसके टुकड़ों और सिर के ऊपर रखना,

18 तब उस पूरे मेढ़े को वेदी पर जलाना; वह तो यहोवा के लिये होमबलि होगा; वह सुखदायक सुगन्ध और यहोवा के लिये हवन होगा।

19 फिर दूसरे मेढ़े को लेना; और हारून और उसके पुत्र उसके सिर पर अपने अपने हाथ रखें,

20 तब उस मेंड़े को बलि करना, और उसके लोहू में से कुछ ले कर हारून और उसके पुत्रों के दाहिने कान के सिरे पर, और उनके दाहिने हाथ और दाहिने पांव के अंगूठों पर लगाना, और लोहू को वेदी पर चारों ओर छिड़क देना।

21 फिर वेदी पर के लोहू, और अभिषेक के तेल, इन दोनो में से कुछ कुछ ले कर हारून और उसके वस्त्रों पर, और उसके पुत्रों और उनके वस्त्रों पर भी छिड़क देना; तब वह अपने वस्त्रों समेत और उसके पुत्र भी अपने अपने वस्त्रों समेत पवित्र हो जाएंगे।

22 तब मेढ़े को संस्कारवाला जानकर उस में से चरबी और मोटी पूंछ को, और जिस चरबी से अंतडिय़ां ढपी रहती हैं उसको, और कलेजे पर की झिल्ली को, और चरबी समेत दोनों गुर्दों को, और दाहिने पुट्ठे को लेना,

23 और अखमीरी रोटी की टोकरी जो यहोवा के आगे धरी होगी उस में से भी एक रोटी, और तेल से सने हुए मैदे का एक फुलका, और एक पपड़ी ले कर,

24 इन सब को हारून और उसके पुत्रों के हाथों में रखकर हिलाए जाने की भेंट ठहराके यहोवा के आगे हिलाया जाए।

25 तब उन वस्तुओं को उनके हाथों से ले कर होमबलि की वेदी पर जला देना, जिस से वह यहोवा के साम्हने सुखदायक सुगन्ध ठहरे; वह तो यहोवा के लिये हवन होगा।

26 फिर हारून के संस्कार का जो मेंढ़ा होगा उसकी छाती को ले कर हिलाए जाने की भेंट के लिये यहोवा के आगे हिलाना; और वह तेरा भाग ठहरेगा।

27 और हारून और उसके पुत्रों के संस्कार का जो मेढ़ा होगा, उस में से हिलाए जाने की भेंटवाली छाती जो हिलाई जाएगी, और उठाए जाने का भेंटवाला पुट्ठा जो उठाया जाएगा, इन दोनों को पवित्र ठहराना।

28 और ये सदा की विधि की रीति पर इस्त्राएलियों की ओर से उसका और उसके पुत्रों का भाग ठहरे, क्योंकि ये उठाए जाने की भेंटें ठहरी हैं; और यह इस्त्राएलियों की ओर से उनके मेलबलियों में से यहोवा के लिये उठाऐ जाने की भेंट होगी।

29 और हारून के जो पवित्र वस्त्र होंगे वह उसके बाद उसके बेटे पोते आदि को मिलते रहें, जिस से उन्हीं को पहिने हुए उनका अभिषेक और संस्कार किया जाए।

30 उसके पुत्रों के जो उसके स्थान पर याजक होगा, वह जब पवित्रस्थान में सेवा टहल करने को मिलाप वाले तम्बू में पहिले आए, तब उन वस्त्रों को सात दिन तक पहिने रहें।

31 फिर याजक के संस्कार का जो मेढ़ा होगा उसे ले कर उसका मांस किसी पवित्र स्थान में पकाना;

32 तब हारून अपने पुत्रों समेत उस मेढे का मांस और टोकरी की रोटी, दोनों को मिलाप वाले तम्बू के द्वार पर खाए।

33 और जिन पदार्थों से उनका संस्कार और उन्हें पवित्र करने के लिये प्रायश्चित्त किया जाएगा उन को तो वे खाएं, परन्तु पराए कुल का कोई उन्हें न खाने पाए, क्योंकि वे पवित्र होंगे।

34 और यदि संस्कार वाले मांस वा रोटी में से कुछ बिहान तक बचा रहे, तो उस बचे हुए को आग में जलाना, वह खाया न जाए; क्योंकि वह पवित्र होगा।

35 और मैं ने तुझे जो जो आज्ञा दी हैं, उन सभों के अनुसार तू हारून और उसके पुत्रों से करना; और सात दिन तक उनका संस्कार करते रहना,

36 अर्थात पापबलि का एक बछड़ा प्रायश्चित्त के लिये प्रतिदिन चढ़ाना। और वेदी को भी प्रायश्चित्त करने के समय शुद्ध करना, और उसे पवित्र करने के लिये उसका अभिषेक करना।

37 सात दिन तक वेदी के लिये प्रायश्चित्त करके उसे पवित्र करना, और वेदी परमपवित्र ठहरेगी; और जो कुछ उससे छू जाएगा वह भी पवित्र हो जाएगा॥

38 जो तुझे वेदी पर नित्य चढ़ाना होगा वह यह है; अर्थात प्रतिदिन एक एक वर्ष के दो भेड़ी के बच्चे।

39 एक भेड़ के बच्चे को तो भोर के समय, और दूसरे भेड़ के बच्चे को गोधूलि के समय चढ़ाना।

40 और एक भेड़ के बच्चे के संग हीन की चौथाई कूटके निकाले हुए तेल से सना हुआ एपा का दसवां भाग मैदा, और अर्घ के लिये ही की चौताई दाखमधु देना।

41 और दूसरे भेड़ के बच्चे को गोधूलि के समय चढ़ाना, और उसके साथ भोर की रीति अनुसार अन्नबलि और अर्घ दोनों देना, जिस से वह सुखदायक सुगन्ध और यहोवा के लिये हवन ठहरे।

42 तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में यहोवा के आगे मिलाप वाले तम्बू के द्वार पर नित्य ऐसा ही होमबलि हुआ करे; यह वह स्थान है जिस में मैं तुम लोगों से इसलिये मिला करूंगा, कि तुझ से बातें करूं।

43 और मैं इस्त्राएलियों से वहीं मिला करूंगा, और वह तम्बू मेरे तेज से पवित्र किया जाएगा।

44 और मैं मिलाप वाले तम्बू और वेदी को पवित्र करूंगा, और हारून और उसके पुत्रों को भी पवित्र करूंगा, कि वे मेरे लिये याजक का काम करें।

45 और मैं इस्त्राएलियों के मध्य निवास करूंगा, और उनका परमेश्वर ठहरूंगा।

46 तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा उनका परमेश्वर हूं, जो उन को मिस्र देश से इसलिये निकाल ले आया, कि उनके मध्य निवास करूं; मैं ही उनका परमेश्वर यहोवा हूं॥

 निर्गमन - अध्याय 30

1 फिर धूप जलाने के लिये बबूल की लकड़ी की वेदी बनाना।

2 उसकी लम्बाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ की हो, वह चौकोर हो, और उसकी ऊंचाई दो हाथ की हो, और उसके सींग उसी टुकड़े से बनाए जाएं।

3 और वेदी के ऊपर वाले पल्ले और चारों ओर की अलंगों और सींगों को चोखे सोने से मढ़ना, और इसकी चारों ओर सोने की एक बाड़ बनाना।

4 और इसकी बाड़ के नीचे इसके दानों पल्ले पर सोने के दो दो कड़े बनाकर इसके दोनों ओर लगाना, वे इसके उठाने के डण्डों के खानों का काम देंगे।

5 और डण्डों को बबूल की लकड़ी के बनाकर उन को सोने से मढ़ना।

6 और तू उसको उस पर्दे के आगे रखना जो साक्षीपत्र के सन्दूक के साम्हने है, अर्थात प्रायश्चित्त वाले ढकने के आगे जो साक्षीपत्र के ऊपर है, वहीं मैं तुझ से मिला करूंगा।

7 और उसी वेदी पर हारून सुगन्धित धूप जलाया करे; प्रतिदिन भोर को जब वह दीपक को ठीक करे तब वह धूप को जलाए,

8 तब गोधूलि के समय जब हारून दीपकों को जलाए तब धूप जलाया करे, यह धूप यहोवा के साम्हने तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में नित्य जलाया जाए।

9 और उस वेदी पर तुम और प्रकार का धूप न जलाना, और न उस पर होमबलि और न अन्नबलि चढ़ाना; और न इस पर अर्घ देना।

10 और हारून वर्ष में एक बार इसके सींगों पर प्रायश्चित्त करे; और तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में वर्ष में एक बार प्रायश्चित्त लिया जाए; यह यहोवा के लिये परमपवित्र है॥

11 और तब यहोवा ने मूसा से कहा,

12 जब तू इस्त्राएलियों की गिनती लेने लगे, तब वे गिनने के समय जिनकी गिनती हुई हो अपने अपने प्राणों के लिये यहोवा को प्रायश्चित्त दें, जिस से जब तू उनकी गिनती कर रहा हो उस समय कोई विपत्ति उन पर न आ पड़े।

13 जितने लोग गिने जाएं वे पवित्रस्थान के शेकेल के लिये आधा शेकेल दें, यह शेकेल बीस गेरा का होता है, यहोवा की भेंट आधा शेकेल हो।

14 बीस वर्ष के वा उससे अधिक अवस्था के जितने गिने जाएं उन में से एक एक जन यहोवा की भेंट दे।

15 जब तुम्हारे प्राणों के प्रायश्चित्त के निमित्त यहोवा की भेंट दी जाए, तब न तो धनी लोग आधे शेकेल से अधिक दें, और न कंगाल लोग उससे कम दें।

16 और तू इस्त्राएलियों से प्रायश्चित्त का रूपया ले कर मिलाप वाले तम्बू के काम में लगाना; जिस से वह यहोवा के सम्मुख इस्त्राएलियों के स्मरणार्थ चिन्ह ठहरे, और उनके प्राणों का प्रायश्चित्त भी हो॥

17 और यहोवा ने मूसा से कहा,

18 धोने के लिये पीतल की एक हौदी और उसका पाया पीतल का बनाना। और उसे मिलाप वाले तम्बू और वेदी के बीच में रखकर उस में जल भर देना;

19 और उस में हारून और उसके पुत्र अपने अपने हाथ पांव धोया करें।

20 जब जब वे मिलाप वाले तम्बू में प्रवेश करें तब तब वे हाथ पांव जल से धोएं, नहीं तो मर जाएंगे; और जब जब वे वेदी के पास सेवा टहल करने, अर्थात यहोवा के लिये हव्य जलाने को आएं तब तब वे हाथ पांव धोएं, न हो कि मर जाएं।

21 यह हारून और उसके पीढ़ी पीढ़ी के वंश के लिये सदा की विधि ठहरे॥

22 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

23 तू मुख्य मुख्य सुगन्ध द्रव्य, अर्थात पवित्रस्थान के शेकेल के अनुसार पांच सौ शेकेल अपने आप निकला हुआ गन्धरस, और उसका आधा, अर्थात अढ़ाई सौ शेकेल सुगन्धित अगर,

24 और पांच सौ शेकेल तज, और एक हीन जलपाई का तेल ले कर

25 उन से अभिषेक का पवित्र तेल, अर्थात गन्धी की रीति से तैयार किया हुआ सुगन्धित तेल बनवाना; यह अभिषेक का पवित्र तेल ठहरे।

26 और उससे मिलाप वाले तम्बू का, और साक्षीपत्र के सन्दूक का,

27 और सारे सामान समेत मेज़ का, और सामान समेत दीवट का, और धूपवेदी का,

28 और सारे सामान समेत होमवेदी का, और पाए समेत हौदी का अभिषेक करना।

29 और उन को पवित्र करना, जिस से वे परमपवित्र ठहरें; और जो कुछ उन से छू जाएगा वह पवित्र हो जाएगा।

30 फिर हारून का उसके पुत्रों के साथ अभिषेक करना, और इस प्रकार उन्हें मेरे लिये याजक का काम करने के लिये पवित्र करना।

31 और इस्त्राएलियों को मेरी यह आज्ञा सुनाना, कि वह तेल तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में मेरे लिये पवित्र अभिषेक का तेल होगा।

32 वह किसी मनुष्य की देह पर न डाला जाए, और मिलावट में उसके समान और कुछ न बनाना; वह तो पवित्र होगा, वह तुम्हारे लिये पवित्र होगा।

33 जो कोई उसके समान कुछ बनाए, वा जो कोई उस में से कुछ पराए कुल वाले पर लगाए, वह अपने लोगों में से नाश किया जाए॥

34 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, बोल, नखी और कुन्दरू, ये सुगन्ध द्रव्य निर्मल लोबान समेत ले लेना, ये सब एक तौल के हों,

35 और इनका धूप अर्थात लोन मिलाकर गन्धी की रीति के अनुसार चोखा और पवित्र सुगन्ध द्रव्य बनवाना;

36 फिर उस में से कुछ पीसकर बुकनी कर डालना, तब उस में से कुछ मिलाप वाले तम्बू में साक्षीपत्र के आगे, जहां पर मैं तुझ से मिला करूंगा वहां रखना; वह तुम्हारे लिये परमपवित्र होगा।

37 और जो धूप तू बनवाएगा, मिलावट में उसके समान तुम लोग अपने लिये और कुछ न बनवाना; वह तुम्हारे आगे यहोवा के लिये पवित्र होगा।

38 जो कोई सूंघने के लिये उसके समान कुछ बनाए वह अपने लोगों में से नाश किया जाए॥

 निर्गमन - अध्याय 31

1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

2 सुन, मैं ऊरी के पुत्र बसलेल को, जो हूर का पोता और यहूदा के गोत्र का है, नाम ले कर बुलाता हूं।

3 और मैं उसको परमेश्वर की आत्मा से जो बुद्धि, प्रवीणता, ज्ञान, और सब प्रकार के कार्यों की समझ देनेवाली आत्मा है परिपूर्ण करता हूं,

4 जिस से वह कारीगरी के कार्य बुद्धि से निकाल निकाल कर सब भांति की बनावट में, अर्थात सोने, चांदी, और पीतल में,

5 और जड़ने के लिये मणि काटने में, और लकड़ी के खोदने में काम करे।

6 और सुन, मैं दान के गोत्र वाले अहीसामाक के पुत्र ओहोलीआब को उसके संग कर देता हूं; वरन जितने बुद्धिमान है उन सभों के हृदय में मैं बुद्धि देता हूं, जिस से जितनी वस्तुओं की आज्ञा मैं ने तुझे दी है उन सभों को वे बनाएं;

7 अर्थात मिलापवाला तम्बू, और साक्षीपत्र का सन्दूक, और उस पर का प्रायश्चित्तवाला ढकना, और तम्बू का सारा सामान,

8 और सामान सहित मेज़, और सारे सामान समेत चोखे सोने की दीवट, और धूपवेदी,

9 और सारे सामान सहित होमवेदी, और पाए समेत हौदी,

10 और काढ़े हुए वस्त्र, और हारून याजक के याजक वाले काम के पवित्र वस्त्र, और उसके पुत्रों के वस्त्र,

11 और अभिषेक का तेल, और पवित्र स्थान के लिये सुगन्धित धूप, इन सभों को वे उन सब आज्ञाओं के अनुसार बनाएं जो मैं ने तुझे दी हैं॥

12 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

13 तू इस्त्राएलियों से यह भी कहना, कि निश्चय तुम मेरे विश्रामदिनों को मानना, क्योंकि तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में मेरे और तुम लोगों के बीच यह एक चिन्ह ठहरा है, जिस से तुम यह बात जान रखो कि यहोवा हमारा पवित्र करनेहारा है।

14 इस कारण तुम विश्रामदिन को मानना, क्योंकि वह तुम्हारे लिये पवित्र ठहरा है; जो उसको अपवित्र करे वह निश्चय मार डाला जाए; जो कोई उस दिन में से कुछ कामकाज करे वह प्राणी अपने लोगों के बीच से नाश किया जाए।

15 छ: दिन तो काम काज किया जाए, पर सातवां दिन पर मविश्राम का दिन और यहोवा के लिये पवित्र है; इसलिये जो कोई विश्राम के दिन में कुछ काम काज करे वह निश्चय मार डाला जाए।

16 सो इस्त्राएली विश्रामदिन को माना करें, वरन पीढ़ी पीढ़ी में उसको सदा की वाचा का विषय जानकर माना करें।

17 वह मेरे और इस्त्राएलियों के बीच सदा एक चिन्ह रहेगा, क्योंकि छ: दिन में यहोवा ने आकाश और पृथ्वी को बनाया, और सातवें दिन विश्राम करके अपना जी ठण्डा किया॥

18 जब परमेश्वर मूसा से सीनै पर्वत पर ऐसी बातें कर चुका, तब उसने उसको अपनी उंगली से लिखी हुई साक्षी देनेवाली पत्थर की दोनों तख्तियां दी॥

 निर्गमन - अध्याय 32

1 जब लोगों ने देखा कि मूसा को पर्वत से उतरने में विलम्ब हो रहा है, तब वे हारून के पास इकट्ठे हो कर कहने लगे, अब हमारे लिये देवता बना, जो हमारे आगे आगे चले; क्योंकि उस पुरूष मूसा को जो हमें मिस्र देश से निकाल ले आया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ?

2 हारून ने उन से कहा, तुम्हारी स्त्रियों और बेटे बेटियों के कानों में सोने की जो बालियां है उन्हें तोड़कर उतारो, और मेरे पास ले आओ।

3 तब सब लोगों ने उनके कानों से सोने की बालियों को तोड़कर उतारा, और हारून के पास ले आए।

4 और हारून ने उन्हें उनके हाथ से लिया, और एक बछड़ा ढालकर बनाया, और टांकी से गढ़ा; तब वे कहने लगे, कि हे इस्त्राएल तेरा परमेश्वर जो तुझे मिस्र देश से छुड़ा लाया है वह यही है।

5 यह देखके हारून ने उसके आगे एक वेदी बनवाई; और यह प्रचार किया, कि कल यहोवा के लिये पर्ब्ब होगा।

6 और दूसरे दिन लोगों ने तड़के उठ कर होमबलि चढ़ाए, और मेलबलि ले आए; फिर बैठकर खाया पिया, और उठ कर खेलने लगे॥

7 तब यहोवा ने मूसा से कहा, नीचे उतर जा, क्योंकि तेरी प्रजा के लोग, जिन्हें तू मिस्र देश से निकाल ले आया है, सो बिगड़ गए हैं;

8 और जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा मैं ने उन को दी थी उसको झटपट छोड़कर उन्होंने एक बछड़ा ढालकर बना लिया, फिर उसको दण्डवत किया, और उसके लिये बलिदान भी चढ़ाया, और यह कहा है, कि हे इस्त्राएलियों तुम्हारा परमेश्वर जो तुम्हें मिस्र देश से छुड़ा ले आया है वह यही है।

9 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, मैं ने इन लोगों को देखा, और सुन, वे हठीले हैं।

10 अब मुझे मत रोक, मेरा कोप उन पर भड़क उठा है जिस से मैं उन्हें भस्म करूं; परन्तु तुझ से एक बड़ी जाति उपजाऊंगा।

11 तब मूसा अपने परमेश्वर यहोवा को यह कहके मनाने लगा, कि हे यहोवा, तेरा कोप अपनी प्रजा पर क्यों भड़का है, जिसे तू बड़े सामर्थ्य और बलवन्त हाथ के द्वारा मिस्र देश से निकाल लाया है?

12 मिस्री लोग यह क्यों कहने पाए, कि वह उन को बुरे अभिप्राय से, अर्थात पहाड़ों में घात करके धरती पर से मिटा डालने की मनसा से निकाल ले गया? तू अपने भड़के हुए कोप को शांत कर, और अपनी प्रजा को ऐसी हानि पहुचाने से फिर जा।

13 अपने दास इब्राहीम, इसहाक, और याकूब को स्मरण कर, जिन से तू ने अपनी ही किरिया खाकर यह कहा था, कि मैं तुम्हारे वंश को आकाश के तारों के तुल्य बहुत करूंगा, और यह सारा देश जिसकी मैं ने चर्चा की है तुम्हारे वंश को दूंगा, कि वह उसके अधिकारी सदैव बने रहें।

14 तब यहोवा अपनी प्रजा की हानि करने से जो उस ने कहा था पछताया॥

15 तब मूसा फिरकर साक्षी की दानों तख्तियों को हाथ में लिये हुए पहाड़ से उतर गया, उन तख्तियों के तो इधर और उधर दोनों अलंगों पर कुछ लिखा हुआ था।

16 और वे तख्तियां परमेश्वर की बनाईं हुई थीं, और उन पर जो खोदकर लिखा हुआ था वह परमेश्वर का लिखा हुआ था॥

17 जब यहोशू को लोगों के कोलाहल का शब्द सुनाईं पड़ा, तब उसने मूसा से कहा, छावनी से लड़ाई का सा शब्द सुनाईं देता है।

18 उसने कहा, वह जो शब्द है वह न तो जीतने वालों का है, और न हारने वालों का, मुझे तो गाने का शब्द सुन पड़ता है।

19 छावनी के पास आते ही मूसा को वह बछड़ा और नाचना देख पड़ा, तब मूसा का कोप भड़क उठा, और उसने तख्तियों को अपने हाथों से पर्वत के नीचे पटककर तोड़ डाला।

20 तब उसने उनके बनाए हुए बछड़े को ले कर आग में डालके फूंक दिया। और पीसकर चूर चूर कर डाला, और जल के ऊपर फेंक दिया, और इस्त्राएलियों को उसे पिलवा दिया।

21 तब मूसा हारून से कहने लगा, उन लोगों ने तुझ से क्या किया कि तू ने उन को इतने बड़े पाप में फंसाया?

22 हारून ने उत्तर दिया, मेरे प्रभु का कोप न भड़के; तू तो उन लोगों को जानता ही है कि वे बुराई में मन लगाए रहते हैं।

23 और उन्होंने मुझ से कहा, कि हमारे लिये देवता बनवा जो हमारे आगे आगे चले; क्योंकि उस पुरूष मूसा को, जो हमें मिस्र देश से छुड़ा लाया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ?

24 तब मैं ने उन से कहा, जिस जिसके पास सोने के गहनें हों, वे उन को तोड़कर उतार लाएं; और जब उन्होंने मुझ को दिया, मैं ने उन्हें आग में डाल दिया, तब यह बछड़ा निकल पड़ा

25 हारून ने उन लोगों को ऐसा निरंकुश कर दिया था कि वे अपने विरोधियों के बीच उपहास के योग्य हुए,

26 उन को निरंकुश देखकर मूसा ने छावनी के निकास पर खड़े हो कर कहा, जो कोई यहोवा की ओर का हो वह मेरे पास आए; तब सारे लेवीय उस के पास इकट्ठे हुए।

27 उसने उन से कहा, इस्त्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि अपनी अपनी जांघ पर तलवार लटका कर छावनी से एक निकास से दूसरे निकास तक घूम घूमकर अपने अपने भाइयों, संगियों, और पड़ोसियों घात करो।

28 मूसा के इस वचन के अनुसार लेवियों ने किया और उस दिन तीन हजार के अटकल लोग मारे गए।

29 फिर मूसा ने कहा, आज के दिन यहोवा के लिये अपना याजकपद का संस्कार करो, वरन अपने अपने बेटों और भाइयों के भी विरुद्ध हो कर ऐसा करो जिस से वह आज तुम को आशीष दे।

30 दूसरे दिन मूसा ने लोगों से कहा, तुम ने बड़ा ही पाप किया है। अब मैं यहोवा के पास चढ़ जाऊंगा; सम्भव है कि मैं तुम्हारे पाप का प्रायश्चित्त कर सकूं।

31 तब मूसा यहोवा के पास जा कर कहने लगा, कि हाय, हाय, उन लोगों ने सोने का देवता बनवाकर बड़ा ही पाप किया है।

32 तौभी अब तू उनका पाप क्षमा कर नहीं तो अपनी लिखी हुई पुस्तक में से मेरे नाम को काट दे।

33 यहोवा ने मूसा से कहा, जिसने मेरे विरुद्ध पाप किया है उसी का नाम मैं अपनी पुस्तक में से काट दूंगा।

34 अब तो तू जा कर उन लोगों को उस स्थान में ले चल जिसकी चर्चा मैं ने तुझ से की थी; देख मेरा दूत तेरे आगे आगे चलेगा। परन्तु जिस दिन मैं दण्ड देने लगूंगा उस दिन उन को इस पाप का भी दण्ड दूंगा।

35 और यहोवा ने उन लोगों पर विपत्ति डाली, क्योंकि हारून के बनाए हुए बछड़े को उन्हीं ने बनवाया था।

 निर्गमन - अध्याय 33

1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, तू उन लोगों को जिन्हें मिस्र देश से छुड़ा लाया है संग ले कर उस देश को जा, जिसके विषय मैं ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से शपथ खाकर कहा था, कि मैं उसे तुम्हारे वंश को दूंगा।

2 और मैं तेरे आगे आगे एक दूत को भेजूंगा, और कनानी, एमोरी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी लोगों को बरबस निकाल दूंगा।

3 तुम लोग उस देश को जाओ जिस में दूध और मधु की धारा बहती है; परन्तु तुम हठीले हो, इस कारण मैं तुम्हारे बीच में होके न चलूंगा, ऐसा न हो कि मैं मार्ग में तुम्हारा अन्त कर डालूं।

4 यह बुरा समाचार सुनकर वे लोग विलाप करने लगे; और कोई अपने गहने पहिने हुए न रहा।

5 क्योंकि यहोवा ने मूसा से कह दिया था, कि इस्त्राएलियों को मेरा यह वचन सुना, कि तुम लोग तो हठीले हो; जो मैं पल भर के लिये तुम्हारे बीच हो कर चलूं, तो तुम्हारा अन्त कर डालूंगा। इसलिये अब अपने अपने गहने अपने अंगों से उतार दो, कि मैं जानूं कि तुम्हारे साथ क्या करना चाहिए।

6 तब इस्त्राएली होरेब पर्वत से ले कर आगे को अपने गहने उतारे रहे॥

7 मूसा तम्बू को छावनी से बाहर वरन दूर खड़ा कराया करता था, और उसको मिलापवाला तम्बू कहता था। और जो कोई यहोवा को ढूंढ़ता वह उस मिलाप वाले तम्बू के पास जो छावनी के बाहर था निकल जाता था।

8 और जब जब मूसा तम्बू के पास जाता, तब तब सब लोग उठ कर अपने अपने डेरे के द्वार पर खड़े हो जाते, और जब तक मूसा उस तम्बू में प्रवेश न करता था तब तक उसकी ओर ताकते रहते थे।

9 और जब मूसा उस तम्बू में प्रवेश करता था, तब बादल का खम्भा उतर के तम्बू के द्वार पर ठहर जाता था, और यहोवा मूसा से बातें करने लगता था।

10 और सब लोग जब बादल के खम्भे को तम्बू के द्वार पर ठहरा देखते थे, तब उठ कर अपने अपने डेरे के द्वार पर से दण्डवत करते थे।

11 और यहोवा मूसा से इस प्रकार आम्हने-साम्हने बातें करता था, जिस प्रकार कोई अपने भाई से बातें करे। और मूसा तो छावनी में फिर आता था, पर यहोशू नाम एक जवान, जो नून का पुत्र और मूसा का टहलुआ था, वह तम्बू में से न निकलता था॥

12 और मूसा ने यहोवा से कहा, सुन तू मुझ से कहता है, कि इन लोगों को ले चल; परन्तु यह नहीं बताया कि तू मेरे संग किस को भेजेगा। तौभी तू ने कहा है, कि तेरा नाम मेरे चित्त में बसा है, और तुझ पर मेरे अनुग्रह की दृष्टि है।

13 और अब यदि मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो, तो मुझे अपनी गति समझा दे, जिस से जब मैं तेरा ज्ञान पाऊं तब तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे। फिर इसकी भी सुधि कर कि यह जाति तेरी प्रजा है।

14 यहोवा ने कहा, मैं आप चलूंगा और तुझे विश्राम दूंगा।

15 उसने उससे कहा, यदि तू आप न चले, तो हमें यहां से आगे न ले जा।

16 यह कैसे जाना जाए कि तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर और अपनी प्रजा पर है? क्या इस से नहीं कि तू हमारे संग संग चले, जिस से मैं और तेरी प्रजा के लोग पृथ्वी भर के सब लोगों से अलग ठहरें?

17 यहोवा ने मूसा से कहा, मैं यह काम भी जिसकी चर्चा तू ने की है करूंगा; क्योंकि मेरे अनुग्रह की दृष्टि तुझ पर है, और तेरा नाम मेरे चित्त में बसा है।

18 उसने कहा मुझे अपना तेज दिखा दे।

19 उसने कहा, मैं तेरे सम्मुख हो कर चलते हुए तुझे अपनी सारी भलाई दिखाऊंगा, और तेरे सम्मुख यहोवा नाम का प्रचार करूंगा, और जिस पर मैं अनुग्रह करना चाहूं उसी पर अनुग्रह करूंगा, और जिस पर दया करना चांहू उसी पर दया करूंगा।

20 फिर उसने कहा, तू मेरे मुख का दर्शन नहीं कर सकता; क्योंकि मनुष्य मेरे मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता।

21 फिर यहोवा ने कहा, सुन, मेरे पास एक स्थान है, तू उस चट्टान पर खड़ा हो;

22 और जब तक मेरा तेज तेरे साम्हने होके चलता रहे तब तक मैं तुझे चट्टान के दरार में रखूंगा, और जब तक मैं तेरे साम्हने हो कर न निकल जाऊं तब तक अपने हाथ से तुझे ढांपे रहूंगा;

23 फिर मैं अपना हाथ उठा लूंगा, तब तू मेरी पीठ का तो दर्शन पाएगा, परन्तु मेरे मुख का दर्शन नहीं मिलेगा॥

 निर्गमन - अध्याय 34

1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, पहिली तख्तियों के समान पत्थर की दो और तख्तियां गढ़ ले; तब जो वचन उन पहिली तख्तियों पर लिखे थे, जिन्हें तू ने तोड़ डाला, वे ही वचन मैं उन तख्तियों पर भी लिखूंगा।

2 और बिहान को तैयार रहना, और भोर को सीनै पर्वत पर चढ़कर उसकी चोटी पर मेरे साम्हने खड़ा होना।

3 और तेरे संग कोई न चढ़ पाए, वरन पर्वत भर पर कोई मनुष्य कहीं दिखाई न दे; और न भेड़-बकरी और गाय-बैल भी पर्वत के आगे चरते पाएं।

4 तब मूसा ने पहिली तख्तियों के समान दो और तख्तियां गढ़ी; और बिहान को सवेरे उठ कर अपने हाथ में पत्थर की वे दोनों तख्तियां ले कर यहोवा की आज्ञा के अनुसार पर्वत पर चढ़ गया।

5 तब यहोवा ने बादल में उतर के उसके संग वहां खड़ा हो कर यहोवा नाम का प्रचार किया।

6 और यहोवा उसके साम्हने हो कर यों प्रचार करता हुआ चला, कि यहोवा, यहोवा, ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करूणामय और सत्य,

7 हजारों पीढिय़ों तक निरन्तर करूणा करने वाला, अधर्म और अपराध और पाप का क्षमा करने वाला है, परन्तु दोषी को वह किसी प्रकार निर्दोष न ठहराएगा, वह पितरों के अधर्म का दण्ड उनके बेटों वरन पोतों और परपोतों को भी देने वाला है।

8 तब मूसा ने फुर्ती कर पृथ्वी की ओर झुककर दण्डवत की।

9 और उसने कहा, हे प्रभु, यदि तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो तो प्रभु, हम लोगों के बीच में हो कर चले, ये लोग हठीले तो हैं, तौभी हमारे अधर्म और पाप को क्षमा कर, और हमें अपना निज भाग मानके ग्रहण कर।

10 उसने कहा, सुन, मैं एक वाचा बान्धता हूं। तेरे सब लोगों के साम्हने मैं ऐसे आश्चर्य कर्म करूंगा जैसा पृथ्वी पर और सब जातियों में कभी नहीं हुए; और वे सारे लोग जिनके बीच तू रहता है यहोवा के कार्य को देखेंगे; क्योंकि जो मैं तुम लोगों से करने पर हूं वह भय योग्य काम है।

11 जो आज्ञा मैं आज तुम्हें देता हूं उसे तुम लोग मानना। देखो, मैं तुम्हारे आगे से एमोरी, कनानी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी लोगों को निकालता हूं।

12 इसलिये सावधान रहना कि जिस देश में तू जाने वाला है उसके निवासियों से वाचा न बान्धना; कहीं ऐसा न हो कि वह तेरे लिये फंदा ठहरे।

13 वरन उनकी वेदियों को गिरा देना, उनकी लाठों को तोड़ डालना, और उनकी अशेरा नाम मूतिर्यों को काट डालना;

14 क्योंकि तुम्हें किसी दूसरे को ईश्वर करके दण्डवत करने की आज्ञा नहीं, क्योंकि यहोवा जिसका नाम जलनशील है, वह जल उठने वाला ईश्वर है ही,

15 ऐसा न हो कि तू उस देश के निवासियों वाचा बान्धे, और वे अपने देवताओं के पीछे होने का व्यभिचार करें, और उनके लिये बलिदान भी करें, और कोई तुझे नेवता दे और तू भी उसके बलिपशु का प्रसाद खाए,

16 और तू उनकी बेटियों को अपने बेटों के लिये लावे, और उनकी बेटियां जो आप अपने देवताओं के पीछे होने का व्यभिचार करती है तेरे बेटों से भी अपने देवताओं के पीछे होने को व्यभिचार करवाएं।

17 तुम देवताओं की मूत्तियां ढालकर न बना लेना।

18 अखमीरी रोटी का पर्ब्ब मानना। उस में मेरी आज्ञा के अनुसार आबीब महीने के नियत समय पर सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना; क्योंकि तू मिस्र से आबीब महीने में निकल आया।

19 हर एक पहिलौठा मेरा है; और क्या बछड़ा, क्या मेम्ना, तेरे पशुओं में से जो नर पहिलौठे होंवे सब मेरे ही हैं।

20 और गदही के पहिलौठे की सन्ती मेम्ना देकर उसको छुड़ाना, यदि तू उसे छुड़ाना न चाहे तो उसकी गर्दन तोड़ देना। परन्तु अपने सब पहिलौठे बेटों को बदला देकर छुड़ाना। मुझे कोई छूछे हाथ अपना मुंह न दिखाए।

21 छ: दिन तो परिश्रम करना, परन्तु सातवें दिन विश्राम करना; वरन हल जोतने और लवने के समय में भी विश्राम करना।

22 और तू अठवारों का पर्ब्ब मानना जो पहिले लवे हुए गेहूं का पर्ब्ब कहलाता है, और वर्ष के अन्त में बटोरन का भी पर्ब्ब मानना।

23 वर्ष में तीन बार तेरे सब पुरूष इस्त्राएल के परमेश्वर प्रभु यहोवा को अपने मुंह दिखाएं।

24 मैं तो अन्यजातियों को तेरे आगे से निकाल कर तेरे सिवानों को बढ़ाऊंगा; और जब तू अपने परमेश्वर यहोवा को अपना मुंह दिखाने के लिये वर्ष में तीन बार आया करे, तब कोई तेरी भूमि का लालच न करेगा।

25 मेरे बलिदान के लोहू को खमीर सहित न चढ़ाना, और न फसह के पर्ब्ब के बलिदान में से कुछ बिहान तक रहने देना।

26 अपनी भूमि की पहिली उपज का पहिला भाग अपने परमेश्वर यहोवा के भवन में ले आना। बकरी के बच्चे को उसकी मां के दूध में ने सिझाना।

27 और यहोवा ने मूसा से कहा, ये वचन लिख ले; क्योंकि इन्हीं वचनों के अनुसार मैं तेरे और इस्त्राएल के साथ वाचा बान्धता हूं।

28 मूसा तो वहां यहोवा के संग चालीस दिन और रात रहा; और तब तक न तो उसने रोटी खाई और न पानी पिया। और उसने उन तख्तियों पर वाचा के वचन अर्थात दस आज्ञाएं लिख दीं॥

29 जब मूसा साक्षी की दोनों तख्तियां हाथ में लिये हुए सीनै पर्वत से उतरा आता था तब यहोवा के साथ बातें करने के कारण उसके चेहरे से किरणें निकल रही थी।, परन्तु वह यह नहीं जानता था कि उसके चेहरे से किरणें निकल रही हैं।

30 जब हारून और सब इस्त्राएलियों ने मूसा को देखा कि उसके चेहरे से किरणें निकलती हैं, तब वे उसके पास जाने से डर गए।

31 तब मूसा ने उन को बुलाया; और हारून मण्डली के सारे प्रधानों समेत उसके पास आया, और मूसा उन से बातें करने लगा।

32 इसके बाद सब इस्त्राएली पास आए, और जितनी आज्ञाएं यहोवा ने सीनै पर्वत पर उसके साथ बात करने के समय दी थीं, वे सब उसने उन्हें बताईं।

33 जब तक मूसा उन से बात न कर चुका तब तक अपने मुंह पर ओढ़ना डाले रहा।

34 और जब जब मूसा भीतर यहोवा से बात करने को उसके साम्हने जाता तब तब वह उस ओढ़नी को निकलते समय तक उतारे हुए रहता था; फिर बाहर आकर जो जो आज्ञा उसे मिलती उन्हें इस्त्राएलियों से कह देता था।

35 सो इस्त्राएली मूसा का चेहरा देखते थे कि उससे किरणें निकलती हैं; और जब तक वह यहोवा से बात करने को भीतर न जाता तब तक वह उस ओढ़नी को डाले रहता था॥

 निर्गमन - अध्याय 35

1 मूसा ने इस्त्राएलियों की सारी मण्डली इकट्ठी करके उन से कहा, जिन कामों के करने की आज्ञा यहोवा ने दी है वे ये हैं।

2 छ: दिन तो काम काज किया जाए, परन्तु सातवां दिन तुम्हारे लिये पवित्र और यहोवा के लिये परमविश्राम का दिन ठहरे; उस में जो कोई काम काज करे वह मार डाला जाए;

3 वरन विश्राम के दिन तुम अपने अपने घरों में आग तक न जलाना॥

4 फिर मूसा ने इस्त्राएलियों की सारी मण्डली से कहा, जिस बात की आज्ञा यहोवा ने दी है वह यह है।

5 तुम्हारे पास से यहोवा के लिये भेंट ली जाए, अर्थात जितने अपनी इच्छा से देना चाहें वे यहोवा की भेंट करके ये वस्तुएं ले आएं; अर्थात सोना, रूपा, पीतल;

6 नीले, बैंजनी और लाल रंग का कपड़ा, सूक्ष्म सनी का कपड़ा; बकरी का बाल,

7 लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ों की खालें, सुइसों की खालें; बबूल की लकड़ी,

8 उजियाला देने के लिये तेल, अभिषेक का तेल, और धूप के लिये सुगन्धद्रव्य,

9 फिर एपोद और चपरास के लिये सुलैमानी मणि और जड़ने के लिये मणि।

10 और तुम में से जितनों के हृदय में बुद्धि का प्रकाश है वे सब आकर जिस जिस वस्तु की आज्ञा यहोवा ने दी है वे सब बनाएं।

11 अर्थात तम्बू, और ओहार समेत निवास, और उसकी घुंडी, तख्ते, बेंड़े, खम्भे और कुसिर्यां;

12 फिर डण्डों समेत सन्दूक, और प्रायश्चित्त का ढकना, और बीचवाला पर्दा;

13 डण्डों और सब सामान समेत मेज़, और भेंट की रोटियां;

14 सामान और दीपकों समेत उजियाला देनेवाला दीवट, और उजियाला देने के लिये तेल;

15 डण्डों समेत धूपवेदी, अभिषेक का तेल, सुगन्धित धूप, और निवास के द्वार का पर्दा;

16 पीतल की झंझरी, डण्डों आदि सारे सामान समेत होमवेदी, पाए समेत हौदी;

17 खम्भों और उनकी कुसिर्यों समेत आंगन के पर्दे, और आंगन के द्वार के पर्दे;

18 निवास और आंगन दोनों के खूंटे, और डोरियां;

19 पवित्रस्थान में सेवा टहल करने के लिये काढ़े हुए वस्त्र, और याजक का काम करने के लिये हारून याजक के पवित्र वस्त्र, और उसके पुत्रों के वस्त्र भी॥

20 तब इस्त्राएलियों की सारी मण्डली मूसा के साम्हने से लौट गई।

21 और जितनों को उत्साह हुआ, और जितनों के मन में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई थी, वे मिलाप वाले तम्बू के काम करने और उसकी सारी सेवकाई और पवित्र वस्त्रों के बनाने के लिये यहोवा की भेंट ले आने लगे।

22 क्या स्त्री, क्या पुरूष, जितनों के मन में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई भी वे सब जुगनू, नथुनी, मुंदरी, और कंगन आदि सोने के गहने ले आने लगे, इस भांति जितने मनुष्य यहोवा के लिये सोने की भेंट के देने वाले थे वे सब उन को ले आए।

23 और जिस जिस पुरूष के पास नीले, बैंजनी वा लाल रंग का कपड़ा वा सूक्ष्म सनी का कपड़ा, वा बकरी का बाल, वा लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ों की खालें, वा सूइसों की खालें थी वे उन्हें ले आए।

24 फिर जितने चांदी, वा पीतल की भेंट के देने वाले थे वे यहोवा के लिये वैसी भेंट ले आए; और जिस जिसके पास सेवकाई के किसी काम के लिये बबूल की लकड़ी थी वे उसे ले आए।

25 और जितनी स्त्रियों के हृदय में बुद्धि का प्रकाश था वे अपने हाथों से सूत कात कातकर नीले, बैंजनी और लाल रंग के, और सूक्ष्म सनी के काते हुए सूत को ले आईं।

26 और जितनी स्त्रियों के मन में ऐसी बुद्धि का प्रकाश था उन्हो ने बकरी के बाल भी काते।

27 और प्रधान लोग एपोद और चपरास के लिये सुलैमानी मणि, और जड़ने के लिये मणि,

28 और उजियाला देने और अभिषेक और धूप के सुगन्धद्रव्य और तेल ले आये।

29 जिस जिस वस्तु के बनाने की आज्ञा यहोवा ने मूसा के द्वारा दी थी उसके लिये जो कुछ आवश्यक था, उसे वे सब पुरूष और स्त्रियां ले आई, जिनके हृदय में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई थी। इस प्रकार इस्त्राएली यहोवा के लिये अपनी ही इच्छा से भेंट ले आए॥

30 तब मूसा ने इस्त्राएलियों से कहा सुनो, यहोवा ने यहूदा के गोत्र वाले बसलेल को, जो ऊरी का पुत्र और हूर का पोता है, नाम ले कर बुलाया है।

31 और उसने उसको परमेश्वर के आत्मा से ऐसा परिपूर्ण किया हे कि सब प्रकार की बनावट के लिये उसको ऐसी बुद्धि, समझ, और ज्ञान मिला है,

32 कि वह कारीगरी की युक्तियां निकाल कर सोने, चांदी, और पीतल में,

33 और जड़ने के लिये मणि काटने में और लकड़ी के खोदने में, वरन बुद्धि से सब भांति की निकाली हुई बनावट में काम कर सके।

34 फिर यहोवा ने उसके मन में और दान के गोत्र वाले अहीसामाक के पुत्र ओहोलीआब के मन में भी शिक्षा देने की शक्ति दी है।

35 इन दोनों के हृदय को यहोवा ने ऐसी बुद्धि से परिपूर्ण किया है, कि वे खोदने और गढ़ने और नीले, बैजनी और लाल रंग के कपड़े, और सूक्ष्म सनी के कपड़े में काढ़ने और बुनने, वरन सब प्रकार की बनावट में, और बुद्धि से काम निकालने में सब भांति के काम करें॥

 निर्गमन - अध्याय 36

1 और बसलेल और ओहोलीआब और सब बुद्धिमान जिन को यहोवा ने ऐसी बुद्धि और समझ दी हो, कि वे यहोवा की सारी आज्ञाओं के अनुसार पवित्रस्थान की सेवकाई के लिये सब प्रकार का काम करना जानें, वे सब यह काम करें॥

2 तब मूसा ने बसलेल और ओहोलीआब और सब बुद्धिमानों को जिनके हृदय में यहोवा ने बुद्धि का प्रकाश दिया था, अर्थात जिस जिस को पास आकर काम करने का उत्साह हुआ था उन सभों को बुलवाया।

3 और इस्त्राएली जो जो भेंट पवित्रस्थान की सेवकाई के काम और उसके बनाने के लिये ले आए थे, उन्हें उन पुरूषों ने मूसा के हाथ से ले लिया। तब भी लोग प्रति भोर को उसके पास भेंट अपनी इच्छा से लाते रहें;

4 और जितने बुद्धिमान पवित्रस्थान का काम करते थे वे सब अपना अपना काम छोड़कर मूसा के पास आए,

5 और कहने लगे, जिस काम के करने की आज्ञा यहोवा ने दी है उसके लिये जितना चाहिये उससे अधिक वे ले आए हैं।

6 तब मूसा ने सारी छावनी में इस आज्ञा का प्रचार करवाया, कि क्या पुरूष, क्या स्त्री, कोई पवित्रस्थान के लिये और भेंट न लाए, इस प्रकार लोग और भेंट लाने से रोके गए।

7 क्योंकि सब काम बनाने के लिये जितना सामान आवश्यक था उतना वरन उससे अधिक बनाने वालों के पास आ चुका था॥

8 और काम करने वाले जितने बुद्धिमान थे उन्होंने निवास के लिये बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े के, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े के दस पटों को काढ़े हुए करूबों सहित बनाया।

9 एक एक पट की लम्बाई अट्ठाईस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हुई; सब पट एक ही नाप के बने।

10 उसने पांच पट एक दूसरे से जोड़ दिए, और फिर दूसरे पांच पट भी एक दूसरे से जोड़ दिए।

11 और जहां ये पट जोड़े गए वहां की दोनों छोरों पर उसने पीली नीली फलियां लगाईं।

12 उसने दोनों छोरों में पचास पचास फलियां इस प्रकार लगाई कि वे आम्हने-साम्हने हुई।

13 और उसने सोने की पचास घुंडियां बनाईं, और उनके द्वारा पटों को एक दूसरे से ऐसा जोड़ा कि निवास मिलकर एक हो गया।

14 फिर निवास के ऊपर के तम्बू के लिये उसने बकरी के बाल के ग्यारह पट बनाए।

15 एक एक पट की लम्बाई तीस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हुई; और ग्यारहों पट एक ही नाप के थे।

16 इन में से उसने पांच पट अलग और छ: पट अलग जोड़ दिए।

17 और जहां दोनों जोड़े गए वहां की छोरों में उसने पचास पचास फलियां लगाईं।

18 और उसने तम्बू के जोड़ने के लिये पीतल की पचास घुंडियां भी बनाईं जिस से वह एक हो जाए।

19 और उसने तम्बू के लिये लाल रंग से रंगी हुई मेंढ़ों की खालों का एक ओढ़ना और उसके ऊपर के लिये सूइसों की खालों का भी एक ओढ़ना बनाया।

20 फिर उसने निवास के लिये बबूल की लकड़ी के तख्तों को खड़े रहने के लिये बनाया।

21 एक एक तख्ते की लम्बाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ की हुई।

22 एक एक तख्ते में एक दूसरी से जोड़ी हुई दो दो चूलें बनीं, निवास के सब तख्तों के लिये उसने इसी भांति बनाईं।

23 और उसने निवास के लिये तख्तों को इस रीति से बनाया, कि दक्खिन की ओर बीस तख्ते लगे।

24 और इन बीसों तख्तों के नीचे चांदी की चालीस कुसिर्यां, अर्थात एक एक तख्ते के नीचे उसकी दो चूलों के लिये उसने दो कुसिर्यां बनाईं।

25 और निवास की दूसरी अलंग, अर्थात उत्तर की ओर के लिये भी उसने बीस तख्ते बनाए।

26 और इनके लिये भी उसने चांदी की चालीस कुसिर्यां, अर्थात एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुसिर्यां बनाईं।

27 और निवास की पिछली अलंग, अर्थात पश्चिम ओर के लिये उसने छ: तख्ते बनाए।

28 और पिछली अलंग में निवास के कोनों के लिये उसने दो तख्ते बनाए।

29 और वे नीचे से दो दो भाग के बने, और दोनों भाग ऊपर से सिरे तक उन दोनों तख्तों का ढब ऐसा ही बनाया।

30 इस प्रकार आठ तख्ते हुए, और उनकी चांदी की सोलह कुसिर्यां हुईं, अर्थात एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुसिर्यां हुईं।

31 फिर उसने बबूल की लकड़ी के बेंड़े बनाए, अर्थात निवास की एक अलंग के तख्तों के लिये पांच बेंड़े,

32 और निवास की दूसरी अलंग के तख्तों के लिये पांच बेंड़े, और निवास की जो अलंग पश्चिम ओर पिछले भाग में थी उसके लिये भी पांच बेंड़े, बनाए।

33 और उसने बीच वाले बेंड़े को तख्तों के मध्य में तम्बू के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुंचने के लिये बनाया।

34 और तख्तों को उसने सोने से मढ़ा, और बेंड़ों के घर को काम देने वाले कड़ों को सोने के बनाया, और बेंड़ों को भी सोने से मढ़ा॥

35 फिर उसने नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े का, और बटी हुई सूक्ष्म सनी वाले कपड़े का बीचवाला पर्दा बनाया; वह कढ़ाई के काम किये हुए करूबों के साथ बना।

36 और उसने उसके लिये बबूल के चार खम्भे बनाए, और उन को सोने से मढ़ा; उनकी घुंडियां सोने की बनी, और उसने उनके लिये चांदी की चार कुसिर्यां ढालीं।

37 और उसने तम्बू के द्वार के लिये नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े का, और बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े का कढ़ाई का काम किया हुआ पर्दा बनाया।

38 और उसने घुंडियों समेत उसके पांच खम्भे भी बनाए, और उनके सिरों और जोड़ने की छड़ों को सोने से मढ़ा, और उनकी पांच कुसिर्यां पीतल की बनाईं॥

 निर्गमन - अध्याय 37

1 फिर बसलेल ने बबूल की लकड़ी का सन्दूक बनाया; उसकी लम्बाई अढ़ाई हाथ, चौड़ाई डेढ़ हाथ, और ऊंचाई डेढ़ हाथ की थी।

2 और उसने उसको भीतर बाहर चोखे सोने से मढ़ा, और उसके चारों ओर सोने की बाड़ बनाई।

3 और उसके चारों पायों पर लगाने को उसने सोने के चार कड़े ढ़ाले, दो कड़े एक अलंग और दो कड़े दूसरी अलंग पर लगे।

4 फिर उसने बबूल के डण्डे बनाए, और उन्हें सोने से मढ़ा,

5 और उन को सन्दूक की दोनो अलंगों के कड़ों में डाला कि उनके बल सन्दूक उठाया जाए।

6 फिर उसने चोखे सोने के प्रायश्चित्त वाले ढकने को बनाया; उसकी लम्बाई अढ़ाई हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ की थी।

7 और उसने सोना गढ़कर दो करूब प्रायश्चित्त के ढकने के दानों सिरों पर बनाए;

8 एक करूब तो एक सिरे पर, और दूसरा करूब दूसरे सिरे पर बना; उसने उन को प्रायश्चित्त के ढकने के साथ एक ही टुकड़े के दोनों सिरों पर बनाया।

9 और करूबों के पंख ऊपर से फैले हुए बने, और उन पंखों से प्रायश्चित्त का ढकना ढपा हुआ बना, और उनके मुख आम्हने-साम्हने और प्रायश्चित्त के ढकने की ओर किए हुए बने॥

10 फिर उसने बबूल की लकड़ी की मेज़ को बनाया; उसकी लम्बाई दो हाथ, चौड़ाई एक हाथ, और ऊंचाई डेढ़ हाथ की थी;

11 और उसने उसको चोखे सोने से मढ़ा, और उस में चारों ओर सोने की एक बाड़ बनाई।

12 और उसने उसके लिये चार अंगुल चौड़ी एक पटरी, और इस पटरी के लिये चारों ओर सोने की एक बाड़ बनाईं।

13 और उसने मेज़ के लिये सोने के चार कड़े ढालकर उन चारों कोनों में लगाया, जो उसके चारों पायों पर थे।

14 वे कड़े पटरी के पास मेज़ उठाने के डण्डों के खानों का काम देने को बने।

15 और उसने मेज़ उठाने के लिये डण्डों को बबूल की लकड़ी के बनाया, और सोने से मढ़ा।

16 और उसने मेज़ पर का सामान अर्थात परात, धूपदान, कटोरे, और उंडेलने के बर्तन सब चोखे सोने के बनाए॥

17 फिर उसने चोखा सोना गढ़ के पाए और डण्डी समेत दीवट को बनाया; उसके पुष्प कोष, गांठ, और फूल सब एक ही टुकड़े के बने।

18 और दीवट से निकली हुई छ: डालियां बनीं; तीन डालियां तो उसकी एक अलंग से और तीन डालियां उसकी दूसरी अलंग से निकली हुई बनीं।

19 एक एक डाली में बादाम के फूल के सरीखे तीन तीन पुष्प कोष, एक एक गांठ, और एक एक फूल बना; दीवट से निकली हुई, उन छहों डालियों का यही ढब हुआ।

20 और दीवट की डण्डी में बादाम के फूल के सामान अपनी अपनी गांठ और फूल समेत चार पुष्प कोष बने।

21 और दीवट से निकली हुई छहों डालियों में से दो दो डालियों के नीचे एक एक गांठ दीवट के साथ एक ही टुकड़े की बनी।

22 गांठे और डालियां सब दीवट के साथ एक ही टुकड़े की बनीं; सारा दीवट गढ़े हुए चोखे सोने का और एक ही टुकड़े का बना।

23 और उसने दीवट के सातों दीपक, और गुलतराश, और गुलदान, चोखे सोने के बनाए।

24 उसने सारे सामान समेत दीवट को किक्कार भर सोने का बनाया॥

25 फिर उसने बबूल की लकड़ी की धूपवेदी भी बनाईं; उसकी लम्बाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ ही थी; वह चौकोर बनी, और उसकी ऊंचाई दो हाथ की थी; और उसके सींग उसके साथ बिना जोड़ के बने थे

26 और ऊपर वाले पल्लों, और चारों ओर की अलंगों, और सींगो समेत उसने उस वेदी को चोखे सोने से मढ़ा; और उसकी चारों ओर सोने की एक बाड़ बनाईं,

27 और उस बाड़ के नीचे उसके दोनों पल्लों पर उसने सोने के दो कड़े बनाए, जो उसके उठाने के डण्डों के खानों का काम दें।

28 और डण्डों को उसने बबूल की लकड़ी का बनाया, और सोने से मढ़ा।

29 और उसने अभिषेक का पवित्र तेल, और सुगन्धद्रव्य का धूप, गन्धी की रीति के अनुसार बनाया॥

 निर्गमन - अध्याय 38

1 फिर उसने बबूल की लकड़ी की होमवेदी भी बनाई; उसकी लम्बाई पांच हाथ और चौड़ाई पांच हाथ की थी; इस प्रकार से वह चौकोर बनी, और ऊंचाई तीन हाथ की थी।

2 और उसने उसके चारों कोनों पर उसके चार सींग बनाए, वे उसके साथ बिना जोड़ के बने; और उसने उसको पीतल से मढ़ा।

3 और उसने वेदी का सारा सामान, अर्थात उसकी हांडिय़ों, फावडिय़ों, कटोरों, कांटों, और करछों को बनाया। उसका सारा सामान उसने पीतल का बनाया।

4 और वेदी के लिये उसके चारों ओर की कंगनी के तले उसने पीतल की जाली की एक झंझरी बनाईं, वह नीचे से वेदी की ऊंचाई के मध्य तक पहुंची।

5 और उसने पीतल की झंझरी के चारों कोनों के लिये चार कड़े ढाले, जो डण्डों के खानों का काम दें।

6 फिर उसने डण्डों को बबूल की लकड़ी का बनाया, और पीतल से मढ़ा।

7 तब उसने डण्डों को वेदी की अलंगों के कड़ों में वेदी के उठाने के लिये डाल दिया। वेदी को उसने तख्तों से खोखली बनाया॥

8 और उसे ने हौदी और उसका पाया दोनों पीतल के बनाए, यह मिलाप वाले तम्बू के द्वार पर सेवा करने वाली महिलाओं के दर्पणों के लिये पीतल के बनाए गए॥

9 फिर उसने आंगन बनाया; और दक्खिन अलंग के लिये आंगन के पर्दे बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े के थे, और सब मिलाकर सौ हाथ लम्बे थे;

10 उनके लिये बीस खम्भे, और इनकी पीतल की बीस कुसिर्यां बनी; और खम्भों की घुंडियां और जोड़ने की छड़ें चांदी की बनीं।

11 और उत्तर अलंग के लिये बीस खम्भे, और इनकी पीतल की बीस ही कुसिर्यां बनीं, और खम्भों की घुंडियां और जोड़ने की छड़ें चांदी की बनी।

12 और पश्चिम अलंग के लिये सब पर्दे मिलाकर पचास हाथ के थे; उनके लिये दस खम्भे, और दस ही उनकी कुसिर्यां थीं, और खम्भों की घुंडियां और जोड़ने की छड़ें चांदी की थीं।

13 और पूरब अलंग में भी वह पचास हाथ के थे।

14 आंगन के द्वार के एक ओर के लिये पंद्रह हाथ के पर्दे बने; और उनके लिये तीन खम्भे और तीन कुसिर्यां थी।

15 और आंगन के द्वार की दूसरी ओर भी वैसा ही बना था; और आंगन के दरवाजे के इधर और उधर पंद्रह पंद्रह हाथ के पर्दे बने थे; और उनके लिये तीन ही खम्भे, और तीन ही तीन इनकी कुसिर्यां भी थीं।

16 आंगन की चारों ओर सब पर्दे सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े के बने हुए थे।

17 और खम्भों की कुसिर्यां पीतल की, और घुंडियां और छड़े चांदी की बनी, और उनके सिरे चांदी से मढ़े गए, और आंगन के सब खम्भे चांदी के छड़ों से जोड़े गए थे।

18 आंगन के द्वार के पर्दे पर बेल बूटे का काम किया हुआ था, और वह नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े का; और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े के बने थे; और उसकी लम्बाई बीस हाथ की थी, और उसकी ऊंचाई आंगन की कनात की चौड़ाई के सामान पांच हाथ की बनी।

19 और उनके लिये चार खम्भे, और खम्भों की चार ही कुसिर्यां पीतल की बनीं, उनकी घुंडियां चांदी की बनीं, और उनके सिरे चांदी से मढ़े गए, और उनकी छड़ें चांदी की बनीं।

20 और निवास और आंगन की चारों ओर के सब खूंटे पीतल के बने थे॥

21 साक्षीपत्र के निवास का सामान जो लेवियों की सेवकाई के लिये बना; और जिसकी गिनती हारून याजक के पुत्र ईतामार के द्वारा मूसा के कहने से हुई थी, उसका वर्णन यह है।

22 जिस जिस वस्तु के बनाने की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी उसको यहूदा के गोत्र वाले बसलेल ने, जो हूर का पोता और ऊरी का पुत्र था, बना दिया।

23 और उसके संग दान के गोत्र वाले, अहीसामाक के पुत्र, ओहोलीआब था, जो खोदने और काढ़ने वाला और नीले, बैंजनी और लाल रंग के और सूक्ष्म सनी के कपड़े में कारचोब करने वाला निपुण कारीगर था॥

24 पवित्रस्थान के सारे काम में जो भेंट का सोना लगा वह उनतीस किक्कार, और पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से सात सौ तीन शेकेल था।

25 और मण्डली के गिने हुए लोगों की भेंट की चांदी सौ किक्कार, और पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से सत्तरह सौ पचहत्तर शेकेल थी।

26 अर्थात जितने बीस बरस के और उससे अधिक अवस्था के गिने गए थे, वे छ: लाख तीन हज़ार साढ़े पांच सौ पुरूष थे, और एक एक जन की ओर से पवित्रस्थान के शेकेल के अनुसार आधा शेकेल, जो एक बेका होता है मिला।

27 और वह सौ किक्कार चांदी पवित्रस्थान और बीच वाले पर्दे दोनों की कुसिर्यों के ढालने में लग गई; सौ किक्कार से सौ कुसिर्यां बनीं, एक एक कुर्सी एक किक्कार की बनी।

28 और सत्तरह सौ पचहत्तर शेकेल जो बच गए उन से खम्भों की चोटियां मढ़ी गईं, और उनकी छड़ें भी बनाईं गई।

29 और भेंट का पीतल सत्तर किक्कार और दो हज़ार चार सौ शेकेल था;

30 उससे मिलाप वाले तम्बू के द्वार की कुसिर्यां, और पीतल की वेदी, पीतल की झंझरी, और वेदी का सारा सामान;

31 और आंगन के चारों ओर की कुसिर्यां, और आंगन की चारों ओर के खूंटे भी बनाए गए॥

 निर्गमन - अध्याय 39

1 फिर उन्होंने नीले, बैंजनी और लाल रंग के काढ़े हुए कपड़े पवित्र स्थान की सेवकाई के लिये, और हारून के लिये भी पवित्र वस्त्र बनाए; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी॥

2 और उसने एपोद को सोने, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े का और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े का बनाया।

3 और उन्होंने सोना पीट-पीटकर उसके पत्तर बनाए, फिर पत्तरों को काट-काटकर तार बनाए, और तारों को नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े में, और सूक्ष्म सनी के कपड़े में कढ़ाई की बनावट से मिला दिया।

4 एपोद के जोड़ने को उन्होंने उसके कन्धों पर के बन्धन बनाए, वह तो अपने दोनों सिरों से जोड़ा गया।

5 और उसके कसने के लिये जो काढ़ा हुआ पटुका उस पर बना, वह उसके साथ बिना जोड़ का, और उसी की बनावट के अनुसार, अर्थात सोने और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े का, और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े का बना; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी॥

6 और उन्होंने सुलैमानी मणि काटकर उनमें इस्त्राएल के पुत्रों के नाम जैसा छापा खोदा जाता है वैसे ही खोदे, और सोने के खानों में जड़ दिए।

7 और उसने उन को एपोद के कन्धे के बन्धनों पर लगाया, जिस से इस्त्राएलियों के लिये स्मरण कराने वाले मणि ठहरें; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी॥

8 और उसने चपरास को एपोद की नाईं सोने की, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े की, और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े में बेल बूटे का काम किया हुआ बनाया।

9 चपरास तो चौकोर बनी; और उन्हो ने उसको दोहरा बनाया, और वह दोहरा हो कर एक बित्ता लम्बा और एक बित्ता चौड़ा बना।

10 और उन्होंने उस में चार पांति मणि जड़े। पहिली पांति में तो माणिक्य, पद्मराग, और लालड़ी जडे गए;

11 और दूसरी पांति में मरकत, नीलमणि, और हीरा,

12 और तीसरी पांति में लशम, सूर्यकान्त, और नीलम;

13 और चौथी पांति में फीरोजा, सुलैमानी मणि, और यशब जड़े; ये सब अलग अलग सोने के खानों में जड़े गए।

14 और ये मणि इस्त्राएल के पुत्रों के नाम की गिनती के अनुसार बारह थे; बारहों गोत्रों में से एक एक का नाम जैसा छापा खोदा जाता है वैसा ही खोदा गया।

15 और उन्होंने चपरास पर डोरियों की नाईं गूंथे हुए चोखे सोने की जंजीर बनाकर लगाई;

16 फिर उन्होंने सोने के दो खाने, और सोने की दो कडिय़ां बनाकर दोनों कडिय़ों को चपरास के दोनों सिरों पर लगाया;

17 तब उन्होंने सोने की दोनों गूंथी हुई जंजीरो को चपरास के सिरों पर की दोनों कडिय़ों में लगाया।

18 और गूंथी हुई दोनों जंजीरों के दोनों बाकी सिरों उन्होंने दोनों खानों में जड़के, एपोद के साम्हने दोनों कन्धों के बन्धनों पर लगाया।

19 और उन्होंने सोने की और दो कडिय़ां बनाकर चपरास के दोनों सिरों पर उसकी उस कोर पर, जो एपोद की भीतरी भाग में थी, लगाईं।

20 और उन्होंने सोने की दो और कडिय़ां भी बनाकर एपोद के दोनों कन्धों के बन्धनों पर नीचे से उसके साम्हने, और जोड़ के पास, एपोद के काढ़े हुए पटुके के ऊपर लगाईं।

21 तब उन्होंने चपरास को उसकी कडिय़ों के द्वारा एपोद की कडिय़ों में नीले फीते से ऐसा बान्धा, कि वह एपोद के काढ़े हुए पटुके के ऊपर रहे, और चपरास एपोद से अलग न होने पाए; जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी॥

22 फिर एपोद का बागा सम्पूर्ण नीले रंग का बनाया गया।

23 और उसकी बनावट ऐसी हुई कि उसके बीच बखतर के छेद के समान एक छेद बना, और छेद के चारों ओर एक कोर बनी, कि वह फटने न पाए।

24 और उन्होंने उसके नीचे वाले घेरे में नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े के अनार बनाए।

25 और उन्होंने चोखे सोने की घंटियां भी बनाकर बागे के नीचे वाले घेरे के चारों ओर अनारों के बीचोंबीच लगाईं;

26 अर्थात बागे के नीचे वाले घेरे की चारों ओर एक सोने की घंटी, और एक अनार लगाया गया कि उन्हें पहिने हुए सेवा टहल करें; जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी॥

27 फिर उन्होंने हारून, और उसके पुत्रों के लिये बुनी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े के अंगरखे,

28 और सूक्ष्म सनी के कपड़े की पगड़ी, और सूक्ष्म सनी के कपड़े की सुन्दर टोपियां, और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े की जांघिया,

29 और सूक्ष्म बटी हुई सनी के कपड़े की और नीले, बैंजनी और लाल रंग की कारचोबी काम की हुई पगड़ी; इन सभों को जिस तरह यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी वैसा ही बनाया॥

30 फिर उन्होंने पवित्र मुकुट की पटरी चोखे सोने की बनाईं; और जैसे छापे में वैसे ही उस में ये अक्षर खोदे गए, अर्थात यहोवा के लिये पवित्र।

31 और उन्होंने उस में नीला फीता लगाया, जिस से वह ऊपर पगड़ी पर रहे, जिस तरह यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी॥

32 इस प्रकार मिलाप वाले तम्बू के निवास का सब काम समाप्त हुआ, और जिस जिस काम की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी, इस्त्राएलियों ने उसी के अनुसार किया॥

33 तब वे निवास को मूसा के पास ले आए, अर्थात घुंडियां, तख्ते, बेंड़े, खम्भे, कुसिर्यां आदि सारे सामान समेत तम्बू;

34 और लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ों की खालों का ओढ़ना, और सूइसों की खालों का ओढ़ना, और बीच का पर्दा;

35 डण्डों सहित साक्षीपत्र का सन्दूक, और प्रायश्चित्त का ढकना;

36 सारे सामान समेत मेज़, और भेंट की रोटी;

37 सारे सामान सहित दीवट, और उसकी सजावट के दीपक और उजियाला देने के लिये तेल;

38 सोने की वेदी, और अभिषेक का तेल, और सुगन्धित धूप, और तम्बू के द्वार का पर्दा;

39 पीतल की झंझरी, डण्डों, और सारे सामान समेत पीतल की वेदी; और पाए समेत हौदी;

40 खम्भों, और कुसिर्यों समेत आंगन के पर्दे, और आंगन के द्वार का पर्दा, और डोरियां, और खूंटे, और मिलापवाले तम्बू के निवास की सेवकाई का सारा सामान;

41 पवित्रस्थान में सेवा टहल करने के लिये बेल बूटा काढ़े हुए वस्त्र, और हारून याजक के पवित्र वस्त्र, और उसके पुत्रों के वस्त्र जिन्हें पहिनकर उन्हें याजक का काम करना था।

42 अर्थात जो जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थीं उन्हीं के अनुसार इस्त्राएलियों ने सब काम किया।

43 तब मूसा ने सारे काम का निरीक्षण करके देखा, कि उन्होंने यहोवा की आज्ञा के अनुसार सब कुछ किया है। और मूसा ने उन को आशीर्वाद दिया॥

 निर्गमन - अध्याय 40

1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

2 पहिले महीने के पहिले दिन को तू मिलाप वाले तम्बू के निवास को खड़ा करा देना।

3 और उस में साक्षीपत्र के सन्दूक को रखकर बीच वाले पर्दे की ओट में करा देना।

4 और मेज़ को भीतर ले जा कर जो कुछ उस पर सजाना है उसे सजवा देना; तब दीवट को भीतर ले जाकर उसके दीपकों को जला देना

5 और साक्षीपत्र के सन्दूक के साम्हने सोने की वेदी को जो धूप के लिये है उसे रखना, और निवास के द्वार के पर्दे को लगा देना।

6 और मिलाप वाले तम्बू के निवास के द्वार के साम्हने होमवेदी को रखना।

7 और मिलाप वाले तम्बू और वेदी के बीच हौदी को रखके उस में जल भरना।

8 और चारों ओर के आंगन की कनात को खड़ा करना, और उस आंगन के द्वार पर पर्दे को लटका देना।

9 और अभिषेक का तेल ले कर निवास को और जो कुछ उस में होगा सब कुछ का अभिषेक करना, और सारे सामान समेत उसको पवित्र करना; तब वह पवित्र ठहरेगा।

10 और सब सामान समेत होमवेदी का अभिषेक करके उसको पवित्र करना; तब वह परमपवित्र ठहरेगी।

11 और पाए समेत हौदी का भी अभिषेक करके उसे पवित्र करना।

12 और हारून और उसके पुत्रों को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर ले जा कर जल से नहलाना,

13 और हारून को पवित्र वस्त्र पहिनाना, और उसका अभिषेक करके उसको पवित्र करना, कि वह मेरे लिये याजक का काम करे।

14 और उसके पुत्रों को ले जा कर अंगरखे पहिनाना,

15 और जैसे तू उनके पिता का अभिषेक करे वैसे ही उनका भी अभिषेक करना, कि वे मेरे लिये याजक का काम करें; और उनका अभिषेक उनकी पीढ़ी पीढ़ी के लिये उनके सदा के याजकपद का चिन्ह ठहरेगा।

16 और मूसा ने जो जो आज्ञा यहोवा ने उसको दी थी उसी के अनुसार किया॥

17 और दूसरे बरस के पहिले महीने के पहिले दिन को निवास खड़ा किया गया।

18 और मूसा ने निवास को खड़ा करवाया, और उसकी कुसिर्यां धर उसके तख्ते लगाके उन में बेंड़े डाले, और उसके खम्भों को खड़ा किया;

19 और उसने निवास के ऊपर तम्बू को फैलाया, और तम्बू के ऊपर उसने ओढ़ने को लगाया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।

20 और उसने साक्षीपत्र को ले कर सन्दूक में रखा, और सन्दूक में डण्डों को लगाके उसके ऊपर प्रायश्चित्त के ढकने को धर दिया;

21 और उसने सन्दूक को निवास में पहुंचवाया, और बीच वाले पर्दे को लटकवा के साक्षीपत्र के सन्दूक को उसके अन्दर किया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।

22 और उसने मिलाप वाले तम्बू में निवास की उत्तर अलंग पर बीच के पर्दे से बाहर मेज़ को लगवाया,

23 और उस पर उन ने यहोवा के सम्मुख रोटी सजाकर रखी; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।

24 और उसने मिलाप वाले तम्बू में मेज़ के साम्हने निवास की दक्खिन अलंग पर दीवट को रखा,

25 और उसने दीपकों को यहोवा के सम्मुख जला दिया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।

26 और उसने मिलाप वाले तम्बू में बीच के पर्दे के साम्हने सोने की वेदी को रखा,

27 और उसने उस पर सुगन्धित धूप जलाया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।

28 और उसने निवास के द्वार पर पर्दे को लगाया।

29 और मिलापवाले तम्बू के निवास के द्वार पर होमबलि और अन्नबलि को चढ़ाया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।

30 और उसने मिलापवाले तम्बू और वेदी के बीच हौदी को रखकर उस में धोने के लिये जल डाला,

31 और मूसा और हारून और उसके पुत्रों ने उस में अपने अपने हाथ पांव धोए;

32 और जब जब वे मिलापवाले तम्बू में वा वेदी के पास जाते थे तब तब वे हाथ पांव धोते थे; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।

33 और उसने निवास की चारों ओर और वेदी के आसपास आंगन की कनात को खड़ा करवाया, और आंगन के द्वार के पर्दे को लटका दिया। इस प्रकार मूसा ने सब काम को पूरा कर समाप्त किया॥

34 तब बादल मिलापवाले तम्बू पर छा गया, और यहोवा का तेज निवासस्थान में भर गया।

35 और बादल जो मिलाप वाले तम्बू पर ठहर गया, और यहोवा का तेज जो निवासस्थान में भर गया, इस कारण मूसा उस मे प्रवेश न कर सका।

36 और इस्त्राएलियों की सारी यात्रा में ऐसा होता था, कि जब जब वह बादल निवास के ऊपर उठ जाता तब तब वे कूच करते थे।

37 और यदि वह न उठता, तो जिस दिन तक वह न उठता था उस दिन तक वे कूच नहीं करते थे।

38 इस्त्राएल के घराने की सारी यात्रा में दिन को तो यहोवा का बादल निवास पर, और रात को उसी बादल में आग उन सभों को दिखाई दिया करती थी॥

 

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